दिशोम गुरु शिबू सोरेन मंगलवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। पैतृक गांव नेमरा में टेका नदी घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार हुआ। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें मुखाग्नि दी। इस दौरान जनसैलाब उमड़ पड़ा। नम आंखों से लोगों ने अपने प्रिय नेता को विदाई दी। गुरुजी के घर से श्मशान घाट तक शिबू सोरेन अमर रहे के नारे गूंजते रहे। हेमंत व बसंत सोरेन पार्थिव शरीर लेकर शाम चार बजे जैसे ही श्मशान घाट पहुंचे, मूसलाधार बारिश शुरू हो गई। मानो आसमान भी रो रहा हो। लेकिन मुखाग्नि देने के कुछ देर बाद ही बारिश बंद हो गई। इससे पहले मंगलवार सुबह मोरहाबादी स्थित आवास पर भाजपा नेता चंपाई सोरेन, टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन, आप सांसद संजय सिंह और पप्पू यादव समेत कई नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। इसके बाद पार्थिव शरीर विधानसभा ले जाया गया। वहां राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद, विाायक, पूर्व सांसद, पूर्व विधायक और वरिष्ठ अधिकारियों ने उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद उनकी अंतिम यात्रा नेमरा के लिए शुरू हुई। रास्ते में सड़क के दोनों ओर लोगों की कतार लगी थी। वे अपने नेता की अंतिम दर्शन के लिए आतुर दिखे। रास्ते में जगह-जगह लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। इरफान, पप्पू यादव और जेएमएम आर्मी ने उठाई मांग- गुरुजी को भारत र| दें स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी, पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव और जेएमएम आर्मी ने गुरुजी को भारत र| देने की मांग की। इन्होंने कहा कि आदिवासी अस्मिता और संघर्ष के प्रतीक दिशोम गुरु शिबू सोरेन को भारत र| से सम्मानित किया जाए। जेएमएम आर्मी ने पीएम के नाम सोशल मीडिया में लिखा- भारत र| गुरुजी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। जिस खटिया पर सोते थे शिबू सोरेन, उसी पर श्मशान घाट तक ले गए पार्थिव शरीर गुरुजी जिस खटिया पर सोते थे, उसी खटिया पर पार्थिव शरीर को श्मशान घाट ले जाया गया। बाद में पार्थिव शरीर को अर्थी पर लिटाया गया। आदिवासी और संथाल में परंपरा है कि जिस खटिया या चौकी पर सोते हैं, उसपर लिटाकर ही उन्हें श्मशान घाट तक ले जाया जाता है। उधर, पैतृक घर से अंतिम विदाई के दौरान घर में नगाड़ा बजता रहा। मेरे सिर से सिर्फ पिता का साया नहीं गया, झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया… मैं जीवन के सबसे कठिन दिनों से गुजर रहा हूं। मेरे सिर से सिर्फ पिता का साया नहीं गया, झारखंड की आत्मा का स्तंभ चला गया। मैं उन्हें सिर्फ ‘बाबा’ नहीं कहता था, वे मेरे पथ प्रदर्शक थे। मेरे विचारों की जड़ें थे और उस जंगल जैसी छाया थे, जिसने लाखों झारखंडियों को धूप और अन्याय से बचाया। मेरे बाबा की शुरुआत बहुत साधारण थी। नेमरा गांव के उस छोटे से घर में जन्मे, जहां गरीबी थी, भूख थी, पर हिम्मत थी। बचपन में ही उन्होंने अपने पिता को खो दिया। जमींदारों के शोषण ने उन्हें एक ऐसी आग दी जिसने उन्हें पूरी जिंदगी संघर्षशील बना दिया। मैंने उन्हें देखा है…हल चलाते हुए, लोगों के बीच बैठते हुए। वे सिर्फ भाषण नहीं देते थे, लोगों का दुःख जीते थे। बचपन में जब मैं उनसे पूछता था- बाबा, आपको लोग दिशोम गुरु क्यों कहते हैं? इस पर वे मुस्कुराकर कहते.. क्योंकि बेटा, मैंने सिर्फ उनका दुख समझा और उनकी लड़ाई अपनी बना ली। वो उपाधि न किसी किताब में लिखी गई थी, न संसद ने दी। यह झारखंड की जनता के दिलों से निकली थी। ‘दिशोम’ मतलब समाज,‘गुरु’ मतलब जो रास्ता दिखाए। सच कहूं तो बाबा ने हमें सिर्फ रास्ता नहीं दिखाया, हमें चलना सिखाया। बचपन में मैंने उन्हें सिर्फ संघर्ष करते देखा। बड़े बड़ों से टक्कर लेते देखा। मैं डरता था, पर बाबा कभी नहीं डरे। वे कहते थे, अगर अन्याय के खिलाफ खड़ा होना अपराध है, तो मैं बार-बार दोषी बनूंगा।” बाबा का संघर्ष कोई किताब नहीं समझा सकती। वो उनके पसीने में, उनकी आवाज़ में और उनकी चप्पल से ढंकी फटी एड़ी में था। जब झारखंड राज्य बना, तो उनका सपना साकार हुआ। पर उन्होंने कभी सत्ता को उपलब्धि नहीं माना। उन्होंने कहा…ये राज्य मेरे लिए कुर्सी नहीं, यह मेरे लोगों की पहचान है।” -शेष पेज 11 पर हेमंत ने लिखा भावुक पोस्ट जननायक शिबू सोरेन का पार्थिव शरीर नेमरा पहुंचते ही पूरा गांव गमगीन हो गया। हर आंखें नम हो गईं। सभी लोग अपने प्रिय नेता के अंतिम दर्शन के लिए आतुर दिखे। जहां तक नजर जा रही थी, लोग ही लोग थे। भारी बारिश के बीच भी लोग हाथ जोड़े उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते रहे। शिबू सोरेन के अंतिम संस्कार के बीच मूसलाधार बारिश हो रही थी। लोग भीगते रहे, लेकिन वहां से टस से मस नहीं हुए। पैतृक गांव नेमरा में टेका नदी श्मशान घाट पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार, हेमंत सोरेन ने दी मुखाग्नि पार्थिव शरीर घाट पर पहुंचते ही बारिश शुरू, मुखाग्नि देते ही बंद…
अम्बर रोया, धरती नि:शब्द, पंचतत्व में विलीन गुरुजी
