झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले की दो आदिवासी बेटियों ने दुनिया के मंच पर भारत का परचम लहराया है। कोमलता बिरुली और पारसी हेम्ब्रम ने नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में आयोजित होमलेस फुटबॉल प्रतियोगिता में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया। यह टूर्नामेंट 23 से 30 अगस्त तक चला, जिसमें दुनिया के 48 देशों की टीमें शामिल हुईं। हर साल होमलेस वर्ल्ड कप फाउंडेशन इस आयोजन की मेजबानी करता है। इसका मकसद समाज के वंचित वर्ग और बेघर लोगों को खेल के जरिए पहचान दिलाना और उन्हें सशक्त बनाना है। चक्रधरपुर स्टेशन पर हुआ भव्य स्वागत लंबी यात्रा के बाद बुधवार को दोनों खिलाड़ी चक्रधरपुर रेलवे स्टेशन पहुंचे। यहां पहले से इंतजार कर रहे स्थानीय लोग, परिजन और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने उनका फूल-मालाओं से जोरदार स्वागत किया। स्टेशन पर माहौल बिल्कुल त्योहार जैसा था। लोग गर्व से झारखंड की बेटियां जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। यह क्षण न केवल खिलाड़ियों और उनके परिवार के लिए, बल्कि पूरे जिले के लिए ऐतिहासिक साबित हुआ। कोमलता ने बताई समाज की हकीकत कोमलता बिरुली तांतनगर प्रखंड की रहने वाली हैं। उन्होंने लौटने के बाद कहा कि आदिवासी समाज में आज भी लड़कियों को खेल और शिक्षा की पूरी आजादी नहीं मिल पाती। कई बार उन्हें कम उम्र में ही शादी के बंधन में बांध दिया जाता है। उन्होंने माना कि अगर लड़कियों को अवसर और परिवार का सहयोग मिले तो वे किसी भी क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकती हैं। कोमलता ने अपनी सफलता को उन तमाम आदिवासी बेटियों को समर्पित किया जो सपने देखती हैं लेकिन सामाजिक दबाव के कारण आगे नहीं बढ़ पातीं। पारसी हेम्ब्रम का युवाओं को नशा से दूर रहने का संदेश जगन्नाथपुर प्रखंड के डेबरासाई निवासी पारसी हेम्ब्रम ने आदिवासी युवाओं से खास अपील की। उन्होंने कहा कि नशे से दूर रहकर अगर युवा खेल और शिक्षा पर ध्यान दें तो उनकी जिंदगी बदल सकती है। पारसी का मानना है कि सरकारी सहयोग और सुविधाएं मिलने पर आदिवासी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने में सक्षम हैं। उन्होंने एकजुट संस्था का आभार जताया, जिसने कठिन परिस्थितियों में भी उनका साथ दिया और आगे बढ़ने का हौसला दिया। समाज के लिए बनीं प्रेरणा कोमलता बिरुली और पारसी हेम्ब्रम की यह उपलब्धि सिर्फ व्यक्तिगत नहीं बल्कि पूरे झारखंड और आदिवासी समाज के लिए गर्व का विषय है। उन्होंने साबित कर दिया कि इच्छाशक्ति और मेहनत से हर बाधा को पार किया जा सकता है। अब स्थानीय लोगों की उम्मीदें हैं कि सरकार और खेल विभाग उनकी इस उपलब्धि को पहचान दिलाए और उन्हें आगे बढ़ने के लिए मंच दे।
पश्चिमी सिंहभूम की दो आदिवासी बेटियों का कमाल:नॉर्वे में होमलेस वर्ल्ड कप में भारत का किया प्रतिनिधित्व, 48 देशों के बीच दिखाया दम
