यूपी भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का 3 साल का कार्यकाल पूरा हो गया है। बीते 9 महीने से नए अध्यक्ष की नियुक्ति का इंतजार है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि नए अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने से संगठन के कामकाज से लेकर पंचायत चुनाव की तैयारियों पर नेगेटिव असर पड़ रहा है। नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर जो उत्साह था, वह अब मायूसी में बदलता जा रहा है। जिस तरह यह मामला टल रहा है, निकट भविष्य में कब नियुक्ति होगी, यह कहना भी मुश्किल नजर आ रहा है। अब बिहार चुनाव के बाद ही नए नाम की घोषणा हो सकती है। जनवरी के पहले सप्ताह में भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री बीएल संतोष ने पार्टी की बैठक में 15 जनवरी, 2025 तक नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा की बात कही थी। लेकिन, जिलाध्यक्षों का चुनाव ही मार्च के दूसरे सप्ताह तक हो पाया। 98 में से 70 जिलाध्यक्ष नियुक्त होने के बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के लिए कोरम पूरा हो चुका है। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े भी लखनऊ आए थे। यहां उन्होंने सीएम योगी, डिप्टी सीएम केशव मौर्य, ब्रजेश पाठक और प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह से प्रदेश अध्यक्ष के नाम को लेकर रायशुमारी की थी। जानकारों के मुताबिक, तावड़े ने पार्टी और सरकार के सभी प्रमुख लोगों से बातचीत के बाद पैनल तैयार किया है। इसमें जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह, राज्यसभा सदस्य डॉ. दिनेश शर्मा और प्रदेश महामंत्री एवं एमएलसी गोविंद नारायण शुक्ला का नाम शामिल है। तावड़े ने केंद्रीय नेतृत्व को करीब 2 महीने पहले अपना फीडबैक और पैनल भी सौंप दिया। उसके बावजूद केंद्रीय नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष चुनाव के नाम तय नहीं कर सका। नए अध्यक्ष नहीं बनने से 6 काम प्रभावित हो रहे 1- संगठन का काम रुका
सूत्रों के मुताबिक, नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होने से जिलों से लेकर प्रदेश तक संगठन का कामकाज प्रभावित हो रहा है। पार्टी के अभियान और कार्यक्रमों में कार्यकर्ता-पदाधिकारी उतनी दिलचस्पी नहीं ले रहे, जितनी पहले लेते थे। पार्टी के 6 क्षेत्रों के क्षेत्रीय अध्यक्षों के राजनीतिक भविष्य पर भी सवालिया निशान लगने से वो भी संगठन के कामकाज में महज रस्म अदायगी कर रहे। पार्टी के एक पदाधिकारी ने बताया कि बीते दिनों चलाया गया पौधारोपण कार्यक्रम पार्टी स्तर से महज औपचारिकता साबित हुआ। मोदी सरकार के 11 साल पूरे होने पर जिलों में हुए कार्यक्रमों में भी कार्यकर्ताओं की उपस्थिति और उत्साह देखने को कम मिला। यही वजह है, पीएम मोदी के जन्मदिन से महात्मा गांधी की जयंती तक चलने वाले सेवा पखवाड़े की कमान सीएम योगी ने अपने हाथ में ली है। योगी ने 8 सितंबर की रात अपने आवास पर सरकार और संगठन की संयुक्त बैठक लेकर सेवा पखवाड़े को सफल बनाने का रोडमैप दिया। 2 – राजनीतिक नियुक्तियां भी अटकीं
नए प्रदेश अध्यक्ष के इंतजार में निगम, आयोग और बोर्डों में राजनीतिक नियुक्तियां भी अटकी हैं। बीते दिनों हुई नियुक्तियों को लेकर सवाल खड़े होने के बाद यह तय हुआ है कि अब नए अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद ही राजनीतिक नियुक्तियां की जाएंगी। 3- अंधकार में 28 जिलाध्यक्षों का भविष्य
भाजपा के 28 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति पर भी नया प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद ही निर्णय होगा। ऐसे में 28 जिलों के जिलाध्यक्ष भी असमंजस में हैं कि उन्हें फिर मौका मिलेगा या उनकी जगह कोई नया अध्यक्ष बनेगा। फतेहपुर के जिलाध्यक्ष मुखलाल पाल जांच में दोषी पाए जा चुके हैं। उनकी जगह भी नया जिलाध्यक्ष नियुक्त होना है। युवती के साथ फोटो वायरल होने के बाद हटाए गए गोंडा के जिलाध्यक्ष अमर किशोर कश्यप की जगह भी नया जिलाध्यक्ष नियुक्त होना है। 4- राष्ट्रीय अध्यक्ष से पहले घोषित होंगे नाम
भाजपा के एक रणनीतिकार ने बताया कि यूपी को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव से पहले नया अध्यक्ष मिल जाएगा। राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव में पीएम मोदी और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह प्रस्तावक हो सकते हैं। प्रस्तावक बनने के लिए दोनों का राष्ट्रीय परिषद का सदस्य नियुक्त होना जरूरी है। प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ ही यूपी से 80 राष्ट्रीय परिषद के सदस्यों की नियुक्ति भी होगी। लिहाजा, अगर कोई जल्दबाजी नहीं हुई तो यूपी बीजेपी का अध्यक्ष का चुनाव राष्ट्रीय अध्यक्ष से पहले होगा। 5- कार्यकर्ताओं की परेशानी ज्यादा
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, यूपी में भाजपा की मौजूदा स्थिति में कार्यकर्ताओं की परेशानी बढ़ गई है। वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का हटना और नए अध्यक्ष की नियुक्ति होना तय है। कार्यकर्ता बीते 9 महीने से यह तय नहीं कर पा रहे कि उन्हें किसके साथ जुड़ना है? राजनीति की कौन-सी दिशा तय करनी है? पार्टी के अग्रिम मोर्चों, प्रकोष्ठ और विभागों का भी पुनर्गठन होना है। हजारों की संख्या में कार्यकर्ताओं का इनमें समायोजन भी होना है। 6- पंचायत चुनाव पर असर पड़ेगा
वर्तमान अध्यक्ष के राजनीतिक दायित्व और अधिकार में कमी नहीं आई है। समस्या केवल यह है कि मंडल से लेकर प्रदेश स्तर पर जो संगठनात्मक या राजनीतिक नियुक्तियां होनी हैं, वहां इसका असर पड़ रहा है। संगठन और सरकार में नियुक्तियों के इंतजार में मंडल से लेकर क्षेत्र स्तर के दावेदार मायूस होकर घर बैठ गए हैं। इससे पंचायत चुनाव की तैयारी पर प्रतिकूल प्रभाव जरूर पड़ेगा। भाजपा के नेतृत्व को यह पता भी है। इसलिए कहा जा सकता है कि उन्होंने कोई वैकल्पिक व्यवस्था कर रखी होगी। लखनऊ से दिल्ली तक लग रही दौड़
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के इंतजार में अध्यक्ष पद के दावेदारों की लखनऊ से दिल्ली तक दौड़ थम नहीं रही है। जलशक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह, पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह, एमएलसी विद्यासागर सोनकर, राज्यसभा सदस्य बाबूराम निषाद, पूर्व मंत्री रामशंकर कठेरिया, पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी सहित अन्य दावेदार लगातार आरएसएस दफ्तर और भाजपा मुख्यालय में दस्तक देकर अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं। भूपेंद्र चौधरी ने पूरा किया कार्यकाल
भाजपा के नए अध्यक्ष की नियुक्ति इस तरह टलती जा रही है कि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने अपना 3 साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है। सूत्रों के मुताबिक, भूपेंद्र चौधरी को 2022 में महज एक साल के लिए अध्यक्ष बनाया गया था। लेकिन, उसके बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल धीरे-धीरे बढ़ता चला गया। फिर लोकसभा चुनाव- 2024 के कारण मामला अटक गया। इसके बाद संगठनात्मक चुनाव के कारण नियुक्ति अटकी रही। ऐसे में चौधरी ने भी 3 साल का कार्यकाल पूरा कर रिकार्ड बना लिया है। भाजपा में बीते दो दशक में केवल स्वतंत्र देव सिंह और भूपेंद्र चौधरी ने ही 3 साल का कार्यकाल पूरा किया है। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक आनंद राय मानते हैं- भाजपा में लगातार कार्यक्रम चल रहे हैं। जो कार्यक्रम केंद्र से मिल रहे, वह पूरे किए जा रहे हैं। लेकिन, प्रदेश अध्यक्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद नए अध्यक्ष की नियुक्ति को लेकर रोज अटकलें लग रही हैं। मामला लगातार टलता जा रहा है। ऐसे में कार्यकर्ता की जिज्ञासा मायूसी में बदलने लगती है। गांवों में पंचायत चुनाव की तैयारी शुरू होने लगी है। ऐसे में जो दावेदार हैं, वह मायूस हैं कि कब नए अध्यक्ष की नियुक्ति हो। जिससे वो उनसे संपर्क और संबंध बनाकर अपना टिकट पक्का कर सकें। ————————– ये खबर भी पढ़ें… पिता गिरमिटिया मजदूर, बेटा मॉरीशस का पीएम:काशी में मोदी के साथ पहली बैठक; जानिए भारत और मॉरीशस के रिश्तों के बारे में मॉरीशस के पीएम नवीनचंद्र रामगुलाम 9 से 15 सितंबर तक भारत यात्रा पर रहेंगे। इसी बीच 10 सितंबर को वो वाराणसी भी जाएंगे। ऐसा पहली बार होगा, जब मॉरीशस का कोई प्रधानमंत्री काशी में पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक करेगा। नवीनचंद्र रामगुलाम उन्हीं गिरमिटिया मजदूर परिवार से आते हैं, जिनके पूर्वजों को एग्रीमेंट कराकर अंग्रेज मॉरीशस ले गए थे। गिरमिटिया मजदूर क्यों कहा जाता है ? कैसे मॉरीशस की सत्ता में गिरमिटिया मजदूर काबिज हुए? भारत और मॉरीशस के बीच कैसा है ऐतिहासिक रिश्ता? पढ़िए पूरी खबर…
बिहार चुनाव के बाद मिलेगा यूपी भाजपा को अध्यक्ष:28 जिलाध्यक्षों के नाम अटके, पंचायत चुनाव की तैयारी भी नहीं हो रही
