टीचर्स डे स्पेशल…गोरखपुर के गुरु की कहानी:जीवन किया समर्पित, पहचाना टैलेंट तो बच्चे बने डॉक्टर, इंजीनियर और फुनसुख वांगड़ू

टीचर्स डे स्पेशल…गोरखपुर के गुरु की कहानी:जीवन किया समर्पित, पहचाना टैलेंट तो बच्चे बने डॉक्टर, इंजीनियर और फुनसुख वांगड़ू

मां-बाप के बाद बच्चों के जीवन में गुरु का अहम रोल होता है। पैरेंट्स बच्चों को हाथ पकड़कर चलना सिखाते हैं। गुरु बच्चों को सही रास्ता दिखाते हैं। जिससे सही गलत की पहचान कर बच्चे खुद के टैलेंट से उज्ज्वल भविष्य बनाते हैं। आइए जानते हैं टीचर्स डे के अवसर पर गोरखपुर के गुरुओं की कहानी, जिन्होंने अपना जीवन स्टूडेंट्स की लाइफ सेट करने में समर्पित किया। तब स्टूडेंट्स ने भी आईएएस, पीसीएस, डॉक्टर, इंजीनियर और साइंटिस्ट फुनसुख वांगड़ू की तरह बनकर दिखाया। खुद के साथ ही गोरखपुर का मान बढ़ाया। गोरखपुर को दिया पहला इंग्लिश मीडियम स्कूल गोरखपुर में एक समय एक भी इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं हुआ करता था। वर्ष 1978 में पहली बार गोरखपुर में ऐसा स्कूल सेंट पॉल्स के रूप में मिला। जहां बच्चे अच्छी हिंदी के साथ ही इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई कर सकते थे। गिरीश चंद्रा और निर्मला चंद्रा ने मिलकर चरगांवा में आईसीएससई बोर्ड से मान्यता लेकर स्कूल खोला। उस समय जब यहां अच्छी पढ़ाई के लिए बच्चों को लखनऊ, दिल्ली और नैनीताल भेजा जाता था। तब समय सेंट पॉल्स स्कूल खुलने से पैरेंट्स की बच्चों के प्रति चिंता कम हुई। वे विश्वास के साथ सेंट पॉल्स स्कूल में बच्चों का एडमिशन कराने लगे। वहीं गिरीश चंद्रा और निर्मला चंद्रा ने पैसे पर ध्यान नहीं दिया। गरीब घर के तेज बच्चों को भी अपने यहां निशुल्क एडमिशन दिया। ताकि वे बच्चे आगे बढ़कर स्कूल के साथ ही गोरखपुर का मान बढ़ाएं। गिरीश चंद्रा और निर्मला चंद्रा ने अपना पूरा जीवन स्कूल और अच्छी शिक्षा देने में समर्पित कर दिया। इसका अच्छा रिजल्ट भी आया। यहां के बच्चे विदेशों में भी देश का नाम बुलंद कर रहे हैं। अच्छी पढ़ाई की बदौलत उन्होंने जीवन में सफलता हासिल की। गोरखपुर में सभी स्कूल गिरीश चंद्रा को अपना आज भी गुरु मानते हैं। उनका मार्गदर्शन भी समय-समय पर लेते रहते हैं। आरपीएम के अजय शाही के प्रयास से बच्चाें ने पाई सफलता गोरखपुर में आरपीएम एकेडमी ने बेहतर की शिक्षा की बदौलत जिले में अलग पहचान बनाई है।आरपीएम एकेडमी के डायरेक्टर के अजय शाही ने खुद को स्कूल के लिए समर्पित किया। हजारों बच्चों की जिम्मेदारी के बावजूद हर बच्चे पर विशेष रूप से ध्यान देने के उनके प्रयास ने हर साल इस स्कूल में बच्चों को टाॅपर बनाया है। यहां एडमिशन कराने के बाद पैरेंट्स को भी अब यह यकीन हो जाता है कि उनके बच्चों का भविष्य सुरक्षित हाथों में है। प्लेवे में एडमिशन लेने के बाद से 12वीं की परीक्षा और उसके बाद बेहतर प्लेसमेंट तक हर बच्चे पर विशेष ध्यान दिया जाता है। स्कूल में समय-समय पर वर्कशॉप का आयोजन बच्चों को कुछ नया सिखाने के लिए किया जाता है। ब्रिलियंट हो या कमजोर दोनों पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है। कमजोर बच्चों के लिए स्पेशल क्लास की व्यवस्था की जाती है। जिसकी अजय शाही खुद मॉनिटरिंग करते हैं। हर स्टूडेंट के टैलेंट को पहचानने पर विशेष ध्यान देने के लिए टीचर्स को भी समझाते हैं। बच्चा किस फिल्ड में अच्छा कर सकता है, इसको विभिन्न activities के माध्यम से पता किया जाता है। अजय शाही का कहना है कि उनके लिए एक-एक बच्चा महत्व रखता है। इसके लिए टीचर्स और पैरेंट्स से हमेशा संपर्क में रहते हैं। उनकी इस मेहनत का ही नतीजा है कि इस स्कूल से पढ़े हुए स्टूडेंट्स आज अलग-अलग फिल्ड में शहर का नाम रोशन कर रहे है। इनमें IAS रितिका दुबे, डॉ आलोक सिंह, SDM प्रवीण यादव, लेफ्टिनेंट अंशुमान और CBI ऑफिसर अनुस्वर शाही शामिल हैं। इसके अलावा नीट और आईआईटी में हर साल हजारों बच्चों का चयन इस स्कूल से होता है। शहर में 6 ब्रांच हैं, जहां 12 हजार से अधिक बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। स्टेपिंग स्टोन के राजीव गुप्ता ने पहचाना टैलेंट वहीं गोरखपुर के स्टेपिंग इंटर कॉलेज के डायरेक्टर राजीव गुप्ता ने अपना पूरा कॅरियर स्कूल को समर्पित कर दिया। उन्होंने कमजोर स्टूडेंट्स के लिए अलग तरीका अपनाया और तेज स्टूडेंट्स को अलग आइडिया का इस्तेमाल किया। कमजाेर और तेज दोनों ही बच्चों पर उनका फोकस रहता है। उनका मानना है कि अगर अच्छी गाइडेंस मिल जाय तो बच्चों को सही दिशा मिल जाती है। जिससे वे बेहतर कर पातें हैं। इसी सोच के साथ उनके स्कूल में पढ़ रहे एक-एक स्टूडेंट्स के पीछे मेहनत करते हैं। प्रेक्टिकल वर्क से लेकर तकनीकी एजुकेशन पर स्पेशल फोकस करके उन्होंने स्टूडेंट्स को आगे बढ़ाया है। बच्चों के बौद्धिक क्षमता और टैलेंट को पहचानने पर हमेशा जोर देते हैं। यही वजह है कि यहां के बच्चे देश विदेश में परचम लहरा रहे हैं। अच्छी जॉब के साथ ही खेलकूद में भी शहर का नाम रोशन कर रहे हैं। 25 साल पहले शुरू किए गए इस स्कूल की अब शहर भर में तीन ब्रांच हैं। राजीव गुप्ता का कहना है कि मैं खुद को तब सफल मानता हूं, जब कोई कमजोर बच्चा अच्छा करके दिखाता है। एबीसी स्कूल ने देश को दिया वैज्ञानिक गोरखपुर में एबीसी पब्लिक स्कूल ने देश को डॉक्टर, इंजीनियर के साथ ही राहुल सिंह जैसा वैज्ञानिक भी दिया है। डाएरेक्टर हेमंत मिश्रा ने 1996 में सिर्फ 40 स्टूडेंट्स के साथ एक स्कूल खोला। आज इस स्कूल में करीब 6000 बच्चे अपना भविष्य संवार रहे हैं। उन्होंने अपने स्कूल में पढ़ाने का अंदाज कुछ अलग ही रखा। हेमंत मिश्रा 29 सालों से अपना अधिकतर समय स्कूल पर ही लगाया है। टैलेंटेड बच्चों के साथ साथ कमजोर बच्चों को समझना, उन्हें मेहनत करने के लिए प्रोत्साहित करना और आसान तरीके से चीजों को सिखाने की उनकी कला ने समान्य बच्चों के भी भविष्य को बदलकर रख देती है। हर बच्चों पर वो खुद ध्यान देते हैं। हमेशा उनकी काउंसलिंग करते रहते हैं। एडमिशन लेने से लेकर उनकी अच्छी प्लेसमेंट, हर बात की फिक्र करते हैं। यही कारण है कि वह हमेशा स्टूडेंट्स के फेवरेट रहते हैं। कई स्टूडेंट्स तो उन्हें अपना गुरु ही नहीं बल्कि अपने पैरेंट्स की तरह सम्मान करते हैं। हजारों स्टूडेंट के भविष्य के प्रति उनका समर्पण आज सफल हो गया है। इस स्कूल से पढ़े हुए बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर से लेकर आईएएस,आईपीएस ऑफिसर के साथ ही वैज्ञानिक बनकर देश की सेवा कर रहे हैं। जिनमें गुलशन प्रजापति बीपीसीएल में अधिकारी, डॉ. आकाश जायसवाल- बीआरडी मेडिकल कॉलेज गोरखपुर, डॉ. नीलांश जायसवाल- मेडिकल कॉलेज कानपुर, डॉ. अस्मिता जायसवाल-राम मनोहर लोहिया मेडिकल कॉलेज, लखनऊ, शिवा त्रिपाठी पीसीएस अधिकारी और आलोक तिवारी IAS के रूप में कार्यरत हैं। वर्तमान में इस स्कूल के तीन ब्रांच गोरखपुर, लखनऊ और देवरिया में हैं। यहां से पढ़कर निकले वैज्ञानिक राहुल सिंह देश के लिए बड़े प्रपोजल पर काम कर रहे हैं। शहर में बनाई द पिलर्स स्कूल की अलग पहचान गोरखपुर के सिविल लाइन में स्थित द पिलर्स स्कूल की शहर में अलग पहचान है। हर साल गोरखपुर को यह स्कूल हाई स्कूल और इंटर में टॉपर भी देता है। इसका क्रेडिट स्कूल प्रिंसिपल उषा बतरिया को जाता है।उन्होंने 8 साल से अपना जीवन स्कूल और यहां पढ़ने वाले बच्चों को समर्पित कर दिया। उनका ऐसा व्यक्तित्व है जो अपने अनुभव से स्टूडेंट्स को बेहतर दिशा देता है। उनका हमेशा यही प्रयास रहता है कि उनके स्कूल का हर बच्चा अपने जीवन में सफल हो। उन्होंने हमेशा टीचर्स को इस बात के लिए प्रेरित किया है। इसके अलावा लगातार बच्चों के पैरेंट्स से भी संपर्क करती हैं। बच्चों का टैलेंट, उनकी रुचि, वो किस फिल्ड में आगे जा सकते हैं इसको पहचानने के लिए खुद बच्चों से मिलती रहती हैं। उन्हें मोटिवेट करना, स्कूल में करीकुलम एक्टिविटी से लेकर तकनीकी को बढ़ावा देना ही उनका उद्देश्य है। उनका मानना है कि सर्वांगीण विकास बच्चों के लिए जरूरी है। उनके इसी प्रयास की वज़ह से इस स्कूल में पढ़े स्टूडेंट्स अधिकारी और डॉक्टर के रूप में देश की सेवा में योगदान दे रहे हैं। जिनमें अमृतेश त्रिपाठी- मेडिकल प्रांजल – आईआईटी, सौरभ सिंह यादव- डीआरडीओ, अमृतेश त्रिपाठी- MBBS केजीएमयू लखनऊ, रश्मिता मिश्रा -एमबीबीएस, शानू गुप्ता- एमबीबीएस BRD मेडिकल कॉलेज गोरखपुर में कार्यरत हैं। इसके अलावा हर साल इस स्कूल के स्टूडेंट्स जिला टॉप करते हैं। जिनमे अदिति मिश्रा- डिस्ट्रिक्ट टॉपर, याशी राय, सेकेंड डिस्ट्रिक्ट टॉपर और अन्य शामिल हैं।

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