नैनीताल में 123वें नंदा देवी महोत्सव के लिए रविवार तड़के करीब दो बजे से ही आचार्य भगवती प्रसाद जोशी ने पद्मश्री अनूप साह के सपत्नीक यजमानत्व में माता नंदा-सुनंदा की प्राण-प्रतिष्ठा की पूजा कराई, जबकि करीब 3 बजे से ही पंडाल के आगे महिला श्रद्धालुओं का जुटना और करीब साढ़े तीन बजे से ही माता नंदा-सुनंदा के भजन-कीर्तन करना प्रारंभ कर दिया था।
इसके बाद लोगों में अटूट आस्था व श्रद्धा बरसाने वाली मां नंदा-सुनंदा पवित्र कदली वृक्षों से ‘प्राकृत पर्वताकार’ रूप में आज सुबह ब्रह्ममूहूर्त में लगभग साढ़े 4 बजे पर माता के कपाट खोले गए। माता जैसे ही प्रकट हुईं, श्रद्धालुओं के जयकारे से पूरा वातावरण गूंज गया। इस दौरान माता के पंडाल के आगे ‘जै मां जै, जै भगौति नंदा, जै मां ऊंचा कैलाश की’ तथा ‘बोलो नंदा-सुनंदा मैया की जय’ के जयकारों की गूंज रही।
सुबह तड़के अंधेरे में नगर के दूर-दराज के क्षेत्रों से पहुंचे, खासकर स्वयं भी देवी स्वरूप में सज-संवर कर पहुंची महिलायें व अन्य श्रद्धालु इस पर मानो धन्य हो गए और उनकी मनमांगी मुराद पूरी हुई। इन सुबह से पहुंची महिला श्रद्धालुओं की सुबह 6 बजे के बाद तक विशेष पूजा-अर्चना भी करायी गयी। इस दौरान मंदिर के बाहर गुरुद्वारे तक श्रद्धालुओं की कतारें लगी रहीं। सभा के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व पालिकाध्यक्ष माइक से व्यवस्थायें बनाने में जुटे रहे। सभी श्रद्धालुओं को माता के कलेंडर उपलब्ध कराये जा रहे हैं। सभा के महासचिव जगदीश बवाड़ी ने इस वर्ष महोत्सव को 123 वर्ष यानी धार्मिक महत्व की संख्या में होने को रेखांकित किया।
इस दौरान सभी श्रद्धालुओं को आयोजकों की ओर से माता के कलेंडर भेंट किये गये। मंदिर में बलि हेतु बकरे लाये गये एवं पूजा के उपरांत वापस ले जाये गये। बकरों की जगह प्रतीकात्मक तौर नारियलों की बलि दी गयी। इसके लिये अलग से प्रबंध किया गया था। लोग बकरों को भी पूजा के लिये ला रहे हैं और पूजा के उपरांत अपने घरों को ही ले जा रहे हैं। माता नंदा सुनंदा की मूर्तियों के दांयी व बांयी ओर प्रसाद चढ़ाने की व्यवस्था की गयी है। मूर्तियों के सामने सेल्फी लेने को हतोत्साहित किया जा रहा है।
इससे पूर्व रात्रि तीन बजे से ही श्रद्धालु मंदिर में आने शुरू हो गए दे। आखिर लगभग सवा घंटे के लंबे इंतजार के बाद मां के कपाट श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोले गए। सैकड़ों श्रद्धालु इस अलौकिक मौके पर मां के प्रथम दर्शनों के साक्षी बने। इससे पूर्व करीब एक घंटा पूर्व यानी करीब साढ़े तीन बजे से ही माता नंदा-सुनंदा के पंडाल के बाहर श्रद्धालु महिलाओं ने भजन कीर्तन करना प्रारंभ कर दिया था।