यूपी के फतेहपुर में मकबरा-मंदिर विवाद अब शांत है। लेकिन तनाव बरकरार है और सियासत तेज। प्रशासन पहले से अधिक मुस्तैद है। किसी भी व्यक्ति को मकबरे तक जाने की इजाजत नहीं दी जा रही। मकबरे के 500 मीटर एरिया को छावनी में तब्दील कर दिया गया है। करीब 300 सुरक्षाकर्मी मकबरे के आसपास व शहर में नजर बनाए हुए हैं। अगले कुछ दिन तक ऐसा ही रहने की संभावना है। यहां 7 अगस्त को मंदिर होने का दावा किया गया। 11 अगस्त को मकबरे में जमकर हंगामा हुआ। मंदिर को लेकर न पहले कभी कोई याचिका कोर्ट में थी और न ही अब तक किसी तरह की याचिका दायर हुई है। जिन लोगों ने हंगामा किया उनमें कुछ लोगों के खिलाफ एफआईआर हुई है, लेकिन गिरफ्तारी किसी की नहीं हुई है। दैनिक भास्कर की टीम फतेहपुर में लगातार घटना स्थल पर बनी हुई है। हमने यहां के इतिहास को समझने की कोशिश की। आइए सबकुछ जानते हैं… पहले मौजूदा स्थिति को समझते हैं… 500 मीटर के एरिया को सील किया गया
फतेहपुर का आबूनगर इलाका अब शांत है। हर गली-चौराहे पर बैरिकेड्स लगे हैं। पुलिसकर्मी बैठे हैं। हर आने-जाने वालों से पूछ रहे हैं। शहर के अंदर एसटीएफ की बख्तरबंद गाड़ियां चल रहीं। हम पुलिसकर्मियों को अपने बारे में बताते हुए इलाके में दाखिल हुए। हमें मकबरे के ठीक 300 मीटर पहले रोक दिया गया। कहा गया कि आगे पत्रकारों को भी जाने की परमिशन नहीं है। थोड़ी देर बाद एक मुस्लिम महिला का जनाजा आया। बैरिकेड्स खोला गया, जनाजे के साथ वाले लोग अंदर गए और फिर बंद कर दिया गया। मंदिर और मस्जिद का दावा
हमारी मुलाकात यहीं अशोक से हुई। 52 साल के अशोक व्यापारी हैं। वह कहते हैं कि हमारा जन्म ही इस नई बस्ती में हुआ है। पहले इस मकबरे में मंदिर था। शंकर जी की मूर्ति थी, घंटा लटकता था, उसे तोड़कर मुसलमानों ने कब्जा कर लिया। मूर्ति को भी हटा दिया। हालांकि हमने मूर्ति नहीं देखी थी, लेकिन हमारे पिताजी लोगों ने देखा था, वही हमें बताते थे। मंदिर को लेकर ही तो हमारे गांव के मुन्ना मौर्या पागल हो गए। अब गुजरात चले गए। अभी जो नजर आता है वह तो डेंटिंग पेंटिंग के बाद का है। मोहल्ले के दूसरे छोर पर हमारी मुलाकात 72 साल के मोहम्मद शरीफ से हुई। वह कहते हैं, पहले तो किसी ने कोई दावा नहीं किया। यह नाटक तो पहली बार हो रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है, इसे तो मैं भी जानना चाहता हूं। जो लोग दावा कर रहे हैं, मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि क्या किसी मंदिर में मजार बनी है? अगर नहीं तो फिर यहां कैसे? मुगल काल में फौजदार थे अब्दुल समद खान
इतिहासकार डॉक्टर इस्माइल आजाद की किताब तारिक-ए-फतेहपुर के मुताबिक, मुगल काल में अब्दुल समद खान बुंदेलखंड के फौजदार हुआ करते थे। उस वक्त बुंदेलखंड मुगलों के लिए महत्वपूर्ण जगह थी। इसकी दो वजह थी, यह खनिज और कृषि के तौर पर संपन्न था, दूसरा यह कि यहीं से दक्षिण भारत में बसे दक्कन का रास्ता जाता था। इसलिए मुगल इस जगह को सबसे महत्वपूर्ण मानते थे। अब्दुल समद खान को फौजदार बनाने के पीछे की वजह खजुआ का युद्ध था। असल में 5 जनवरी 1659 को खजुआ में मुगल शासक औरंगजेब और उसके भाई शाह शुजा के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में औरंगजेब ने शाह शुजा को हरा दिया और यहां ठिकाना बनाया। शाह शुजा के स्थान पर मीर जुमला द्वितीय को बंगाल का सूबेदार बनाया और अब्दुल समद खान को बुंदेलखंड में अपना फौजदार बनाया। अब्दुल समद के बेटे ने मकबरा बनवाया
किताब तारिक-ए-फतेहपुर के मुताबिक 1699 में अब्दुल समद की मौत हो गई। जिस जगह पर समद को दफनाया गया उसी जगह पर बेटे अबू बकर ने मकबरा बनवा दिया। 8 साल बाद 1707 में अबू बकर की भी मौत हो गई। परिवार के बचे लोगों ने बगल में ही अबू बकर का भी मकबरा बना दिया। द इम्पीरियर गजेटियर ऑफ इंडिया के मुताबिक, 1850 के सरकारी नक्शे में फतेहपुर के सिर्फ दो मोहल्ले दर्ज थे, खेलदार और दूसरा अबू नगर। बाकी का पूरा हिस्सा झीलों से घिरा था। ऐसा कहा जाता है कि अबू नगर का नाम भी अब्दुल समद के बेटे के नाम पर ही पड़ा था। हिंदू पक्ष के लोग दावा करते हैं कि मंदिर की दीवारों पर त्रिशूल बना है, 5 गुंबद हैं जो हिंदू मंदिरों में होते हैं। इसका जवाब इतिहासकार सतीश द्विवेदी देते हैं। वह कहते हैं, शेरशाह सूरी की इमारत में भी ऐसे ही गुंबद होते थे। निर्माण की क्षेत्रीय शैलियां होती थीं। मुगल बाहर से आए थे, वह डिजाइनर ला सकते हैं, लेकिन कारीगर तो यहीं के होते थे। वह अक्सर ऐसे मंदिर बनाते रहे हैं इसलिए जब मुगलों की इमारत बनाते थे तो उसमें भी छाप नजर आती थी। यही वजह है कि उस वक्त के निर्माण में मंदिर-मस्जिद का स्ट्रक्चर एक जैसा नजर आता था। इतिहासकार सतीश द्विवेदी कहते हैं कि कारीगर स्थानीय होते थे, इसलिए वह मुगलों का जो भी स्ट्रक्चर बनाते थे, उसमें इसकी झलक दिखती थी। इतिहास में मकबरा ही दर्ज
इतिहासकार सतीश द्विवेदी बताते हैं कि फतेहपुर की इस जगह को लेकर द इम्पीरियर गजेटियर ऑफ इंडिया और इस्माइल आजाद की तारिक-ए-फतेहपुर में उल्लेख मिलता है। इम्पीरियर गजेटियर ऑफ इंडिया 1881 में लिखी गई। जिसके खंड 12 पृष्ट 83 में जिक्र है कि यह अब्दुल समद का मकबरा ही है। तारिक-ए-फतेहपुर में भी पेज नंबर 53,54,55 में मकबरा होने की बात लिखी गई है। इस वक्त जो अभिलेख हैं, उसमें भी इस जमीन को मकबरा ही घोषित किया गया है। अंग्रेजों ने इस जमीन को मानसिंह के नाम किया था
तारिक-ए-फतेहपुर में इस बात का भी जिक्र है कि मुगल शासन खत्म होने के बाद जब अंग्रेज आए तो यहां की जमीनों के अधिकार को लेकर फिर से वेरिफिकेशन शुरू कर दिया। जिस जमीन पर विवाद था, वह यहां के अधिकार अभिलेखों से गायब हो गए। अंग्रेजों ने शहर की आधी जमीन उस वक्त मानसिंह परिवार के नाम पर कर दी थी। आज से 55 साल पहले यानी 1970 में इस गाटा संख्या 17650/753/765 का बैनामा शकुंतला मानसिंह पत्नी नरेश्वर मानसिंह ने रामनरेश सिंह के नाम पर कर दिया। उस वक्त जमीन के खिलाफ वक्फ बोर्ड कोर्ट चला गया। बोर्ड ने अनीश खान को मुतवल्ली बनाया था, यही देख रेख करते थे। लंबे समय के इंतजार के बाद 20 दिसंबर 2010 को सिविल जज ने 10 बीघा 18 बिस्वा जमीन मकबरे के नाम पर आवंटित कर दी। 2012 में कोर्ट ने मकबरा-ए-संगी को राष्ट्रीय संपत्ति दर्ज करने का आदेश पारित कर दिया। इसी जमीन पर 34 प्लॉट बने हैं, इसे लेकर भी इस वक्त मुकदमा चल रहा है। जमीन को लेकर एक दूसरा पक्ष भी है
मकबरे की इस जमीन को लेकर एक और विवाद था। जिस पर 1928 में कोर्ट का फैसला आया था। मकबरे से करीब 1 किलोमीटर दूर जमींदार परिवार से ताल्लुक रखने वाले सतीश चंद्र रस्तोगी का घर है। उन्होंने कुछ कागज दिखाए हैं। उन कागजों के मुताबिक 1927 में जमीन के बंटवारे को लेकर एसडीएम कोर्ट में याचिका दायर हुई। 1928 को फैसला आया। एक पक्ष में ईश्वर सहाय, राय मान सिंह बहादुर, आनंद सहाय, जिसरान लाला थे। दूसरे पक्ष में गिरधारी लाल रस्तोगी, लक्ष्मणदास रस्तोगी, जैदुननिशा और वाजिद हुसैन थे। 1958 में चकबंदी हुई। इस चकबंदी में गाटा संख्या 1097 इस वक्त 752, 1098 इस वक्त 753, 1500 इस वक्त 1159 है। इस वक्त जो 752 और 753 है उसी पर मकबरा बना हुआ है। 752 नंबर मकबरे की सीढ़ियों तक जाता है और इसके बाद 753 शुरू होता है। सतीश चंद्र रस्तोगी का दावा है कि गाटा संख्या 753 में ही पुश्तैनी श्री ठाकुर जी सवलिया शाह का मंदिर था और यह पूरा इलाका मूसेपुर कस्बे के अंतर्गत आता था। गाटा संख्या 753 में कुल 13 बीघा जमीन थी। 752 में सिर्फ एक बीघा जमीन थी। सतीश चंद्र रस्तोगी का कहना है यह पूरा इलाका मूसेपुर कस्बे के अंतर्गत आता था। गाटा संख्या 753 में पुश्तैनी श्री ठाकुर जी सवलिया शाह का मंदिर था।- सतीश चंद्र रस्तोगी के परिवार के ही एक युवक कहते हैं, यहां जंगल हुआ करता था, कोई उधर नहीं जाता था। परिवार भी बढ़ता गया तो जमीन के बारे में किसी ने ध्यान ही नहीं दिया। भू-माफियाओं ने जमीन के कागज में छेड़छाड़ भी की। हम तो आज भी पूछते हैं कि अनीश बाबा से पहले यहां का मुतवल्ली कौन था। मुतवल्लियों की लिखा-पढ़ी कहां है। अगर पहले से है तो उसके बारे में कहीं तो लिखा होगा। त्योहारों पर यहां हिंदू दीया जलाते थे
यहां आसपास के लोगों से बातचीत करने पर यह भी पता चला कि हिंदू परिवार भी यहां जाते थे और दीया जलाते थे। मुतवल्ली अनीश बाबा यहां झाड़-फूंक का काम करते थे। उनकी मौत के बाद उनके बेटे और भाई इस मकबरे की देख-रेख करने लगे थे। मुस्लिम त्योहारों पर यहां हजारों की संख्या में मुस्लिम आबादी ईद-बकरीद पर नमाज पढ़ने आती थी। हालांकि एक सच यह भी है कि यहां मंदिर है, इसे लेकर कभी कोई याचिका कोर्ट में नहीं दायर की गई। 7 अगस्त को पहली बार मंदिर की बात सामने आई। इसके बाद 11 अगस्त को हंगामा हुआ। 5 दिन बीत गए लेकिन अभी तक मंदिर के दावे को लेकर किसी ने भी कोर्ट में याचिका दायर नहीं की। इस बात की सुगबुगाहट है कि सतीश चंद्र रस्तोगी के कागजों के आधार पर कोर्ट में केस दायर किया जाएगा। 11 अगस्त को जिन लोगों ने हंगामा किया था उसमें 10 लोग नामजद और 150 अज्ञात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी। अब तक गिरफ्तारी किसी भी व्यक्ति की नहीं हुई है। ——————————– ये खबर भी पढ़ें… यूपी में रोजाना 10 हजार लोगों को काटते हैं कुत्ते:कबड्डी खिलाड़ी की तड़पकर हुई थी मौत; शेल्टर होम का लखनऊ में क्या है प्लान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-NCR के नगर निकायों को आवारा कुत्तों की नसबंदी करने और उन्हें स्थायी रूप से शेल्टर होम में रखने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, इसे लेकर देशभर में राय बंटी है। यूपी में भी आवारा कुत्तों का मुद्दा गंभीर है। विधान परिषद को भेजी गई एक रिपोर्ट के मुताबिक रोजाना 10 हजार लोग डॉग बाइट का शिकार हो रहे हैं। ऐसे में जानते हैं कि आवारा कुत्तों से निपटने के लिए निगम क्या कर रहा है? राज्य में पालतू और आवारा कुत्तों को लेकर गाइडलाइन क्या है? क्या सोसाइटीज में पालतू कुत्तों पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है? पढ़िए पूरी खबर…
फतेहपुर में मकबरा इतिहास में दर्ज, मंदिर विवाद ताजा:कभी किसी तरह की याचिका नहीं दायर हुई; हिंदू भी त्योहारों पर दीया जलाते
