मॉब लिंचिंग में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन केंद्र व राज्य पर बाध्यकारी

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प्रयागराज, 24 जुलाई । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि मॉब लिंचिंग के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश राज्य व केंद्र सरकार के लिए बाध्यकारी है। कोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़ित तहसीन एस पूनावाला मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुपालन के लिए हाईकोर्ट आने से पहले राज्य सरकार से सम्पर्क करे।

यह टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ एवं न्यायमूर्ति अवनीश सक्सेना की खंडपीठ ने जमीयत उलमा ए हिंद के अरशद मदनी की आपराधिक जनहित याचिका निस्तारित करते हुए की। जमीयत उलमा ए हिंद ने राज्य सरकार और पुलिस महानिदेशक को अलीगढ़ के हरदुआगंज थाने में गत 24 मई को दर्ज एक मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने का निर्देश देने की मांग की थी।

एफआईआर में आरोप है कि प्रतिबंधित मांस ले जाने के संदेह में समुदाय विशेष के कम से कम चार लोगों को भीड़ ने बेरहमी से पीटा और पुलिस निष्पक्ष जांच नहीं कर रही है। याचिका में पीड़ितों के लिए तत्काल वित्तीय सहायता, भीड़ हिंसा से निपटने के लिए प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति, पिछले पांच वर्षों में हुई भीड़ हिंसा के मामलों की स्थिति रिपोर्ट और फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाने की भी मांग की गई थी।

याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि राज्य सरकारें तहसीन एस पूनावाला मामले के निर्देशों का पालन करने में विफल रही हैं, जिससे घृणास्पद भाषणों और गोवंश से संबंधित हिंसा में वृद्धि हुई है। अपर महाधिवक्ता ने बताया कि तहसीन एस पूनावाला मामले के दिशा-निर्देशों में प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त करना, संवेदनशील क्षेत्रों में पुलिस गश्त, भीड़ हिंसा के गंभीर परिणामों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता और दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करना शामिल है, जो सरकार पर बाध्यकारी है।

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