गोरखपुर के गोलघर में करोड़ों रुपए की जमीन के चर्चित मामले के बाद अब पूर्व विधायक स्व. केदार सिंह की एक चिट्ठी सोशल मीडिया पर सामने आ रही है। सैंथवार समाज के लोगों के बीच इसकी चर्चा हो रही है। बताया जा रहा है कि यह चिट्ठी खुद स्व. केदार सिंह ने अपने अंतिम दिनों में लिखी थी। इसमें उनके जीवन में लगे आघातों का मार्मिक उल्लेख है। जिसके हाथ में यह चिट्ठी पहुंच रही, उसकी भावनाओं को झकझोर दे रही है। जमीन फ्री होल्ड कराने वाले अवधेश श्रीवास्तव पर अपनी बात से पलटने से लेकर बड़े बेटे से मिले दुख और अंतिम समय में पत्नी की सेवा करने वाला कोई न होने की मार्मिक बातें इसमें लिखी हैं। स्व. केदार ने पत्र में लिखा है- दुर्भाग्य हमारे पीछे है क्योंकि थकी शरीर से संघर्ष कर रहा हूं। इस चिट्टी के नीचे का हिस्सा कटा है, यानी उस पर कहीं स्व. केदार सिंह का नाम या हस्ताक्षर नजर नहीं आ रहा। लेकिन उनके बड़े बेटे अजय सिंह उर्फ राकेश सिंह बताते हैं- लिखावट बाबूजी (स्व. केदार सिंह) की ही है। पहले जानिए चिट्ठी में क्या लिखा है.. अपने लेटर में स्व. केदार सिंह ने जीवन में लगे 7 आघातों का जिक्र किया है। पहला आघात इसी चर्चित जमीन से जुड़ा है। 1999 में इसे फ्री होल्ड कराने वोल अवधेश श्रीवास्तव पर बात से पलटने का आरोप उन्होंने लगाया है। पूर्व विधायक ने लिखा गोरखपुर का आवास खतरे में है। अब अवधेश श्रीवास्तव जमीन नहीं देना चाहते हैं। पैसे की बात कर रहे। जमीन न मिलने से पैसे, जो पर्याप्त मिलने की संभावना नहीं है, हम गोरखपुर में नहीं रह सकते। पहले जमीन देने की बात 4 वर्षों से करते रहे हैं। इस साल 2 कारण से पलट रहे हैं- 1. राजेंद्र सहाय पैसा तय कर मकान छोड़ने जा रहे थे लेकिन अवधेश श्रीवास्तव उन्हें रोककर अंदर से मकान ध्वस्त करा रहे हैं ताकि हमारा हिस्सा भी ध्वस्त हो जाए। दोनों की दीवाल कामन है इसलिए ऐसा संभव हो रहा है। 2. हमारे तरफ से कमिश्नर को उपरोक्त परिस्थितियों से अवगत कराया गया तो उन्होंने कहा कि वे ऐसा होने नहीं देंगे परन्तु कोई जरूरी नहीं है कि वे हमेशा यहीं कई वर्षों तक रहें। इसलिए उनके आश्वासन के बाद आतंकित हूं। यहां बता दें कि राजेंद्र सहाय भी उसी जमीन के एक हिस्से में रहते थे। फ्री होल्ड होने के बाद वह छोड़कर चले गए थे। अवधेश श्रीवास्तव क्या कहते हैं, ये जानिए
अवधेश श्रीवास्तव ने कहा- स्व. केदार सिंह बहुत अच्छे इंसान थे। 1999 में मैंने बैनामा कराया था और उसके बाद कई साल तक आए दिन उनके पास जाता था। मैं उनसे बात करने जाता था। उनसे कहता था कि इस मामले में बात हो जाए। जो कहिए कर देंगे। लेकिन स्व. केदार सिंह कहते थे कि दोनों लोग सीधे हैं, सब हो जाएगा। बाद में बात कर लेंगे। यह स्थिति कई साल तक चलती रही। उनसे न तो मैंने जमीन देने को कहा था और न ही पैसा देने को। यह उनपर ही छोड़ा गया था लेकिन उन्होंने नहीं बताया। 2008 के आसपास जब उनके बगल में राजेंद्र सहाय आवास खाली करने लगे तो लखनऊ से फोन कर उन्हें जाने से रोक दिया। उसके बाद मुझसे नाराज हो गए थे। तभी से केस चल रहा है। चिट्ठी में जो उन्होंने मेरे बारे में लिखा है, वह सही नहीं है। कतरारी स्कूल के मामले में हमें धोखा मिला
पूर्व विधायक ने भटहट इलाके के कतरारी स्कूल का जिक्र किया है। वह लिखते हैं- कतरारी स्कूल के मामले में हमें धोखा मिला, जिससे काफी दुखी हूं। 4 साल तक स्कूल की पैरवी किया और इस बीच व्यवसाय में लगाया गया बैंक का ऋण भी खर्च हो गया। जिसकी वसूली के लिए गोरखपुर में गोरख बाबू की कोठी, जो बंधक है, नीलाम हो जाएगी। जिसे बचाने के लिए एक एकड़ खेत दोबारा बेचना पड़ रहा है। इससे भी आहत हूं। यह तीसरा आघात है। इस मामले में उनके बेटे अजय सिंह ने किसी टिप्पणी से इनकार कर दिया। राकेश को देखकर कलेजा फट जाता है
स्व. केदार सिंह ने अपने बड़े बेटे अजय कुमार सिंह उर्फ राकेश को लेकर भी काफी कुछ लिखा है। उन्होंने लिखा- 30 जुलाई, 2007 को डा. भारती के तलाक का मुकदमा लखनऊ में है। डा. भारती उनके बड़े बेटे अजय सिंह की पत्नी थीं। वह लिखते हैं लगभग 35 साल का बड़ा पुत्र अपने दाम्पत्य जीवन से वंचित हो रहा है और घर में कोई चिराग नहीं है (अब उनके अन्य पुत्रों के बच्चे हैं)। राकेश को देखकर कलेजा फट जाता है, यह चौथा आघात है। उन्होंने अगले पॉइंट में अपने बेटे राकेश से नाराजगी भी जताई है। पूर्व विधायक ने लिखा है राकेश संघर्ष पर उतारू नहीं हो रहा है अन्यथा एमवे में सफल होता ही डा. भारती वाला मुकदमा भी जीत जाता। इससे हमें पांचवां आघात लग रहा है। इससे तो राकेश हमें बचाना चाहे तो बचा सकता है। पत्नी बीमार हैं, कोई सेवा करने वाला नहीं
पूर्व विधायक ने अपनी पत्नी का जिक्र भी पत्र में किया है। इस बिन्दु से स्पष्ट है कि राजनीति में कभी अत्यधिक पावरफुल रहे केदार सिंह की वृद्धावस्था चिंताओं से भरी थी। वह लिखते हैं पत्नी की सेवा व देखभाल करने वाला कोई नहीं है। बीमार हैं और रोज बिलखती हैं। यह छठा आघात है।अपने मित्र के सुखी बुढ़ापे से तुलना भी की
अपने सातवें बिन्दु में उन्होंने लिखा है हमारे सहपाठी 10 वर्ष पूर्व रिटायर हो गए हैं। इस उम्र में उनके बेटे, पोते सेवा आदि करते हैं। वे आराम की जिंदगी जी रहे हैं। दुर्भाग्य हमारे पीछे है क्योंकि थकी शरीर से संघर्ष कर रहा हूं। सातवां आघात है क्योंकि हमारे सभी लड़के भी एकमत नहीं हैं। भाई को संकट से बचा लिया वह नहीं चाहता मैं खुशहाल रहूं
पूर्व विधायक ने अन्य विकट समस्याओं का जिक्र भी किया है। उन्होंने लिखा है भटहट की दुकान का मुकदमा लड़ रहा हूं। भाई को संकट से बचा लिया। वही भाई नहीं चाहता है कि मैं खुशहाल रहूं। स्कूल में दार्शनिक की भाषा बोलता है और हमारे पक्ष पर मौन रहता है।पैसा पा जाने पर अपने भी परायों के साथ लामबंद हो चुके हैं। यह पैसे के लोभ में हमारे खिलाफ जा चुके हैं। अपने वादों से मुकर गए हैं और हम अकेले अलग-थलग पड़ गए हैं। घर की दयनीय स्थिति का जिक्र भी किया
इसके साथ ही उस समय हो रही बारिश का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है गंभीर बारिश 15 दिन से लगातार हो रही है। घारी का एक कमरा ध्वस्त हो गया। बरामदा सभी जगह चू रहा है, ध्वस्त होने का भय है, जो अवधेश श्रीवास्तव चाहते हैं। इस बारिश ने कई वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया है। घर में खाना बनाने वाला कोई नहीं
अपने पत्र के आखिरी लाइन में उन्होंने लिखा है घर में खाना बनाने वाला कोई नहीं है। मुझे हाथ बंटाना पड़ता है। जिससे उपरोक्त् समस्याओं से जूझने में बाधा उत्पन्न हो रही है। बड़े बेटे ने कहा लिखावट उन्हीं की
यह चिट्ठी किसके पास थी, किसने वायरल की, यह पता नहीं चल रहा। चिट्ठी पर उनके हस्ताक्षर नजर नहीं आ रहे क्योंकि नीचे का हिस्सा कट गया है। लेकिन अब वाट्सएप के जरिए यह सैंथवार समाज के लोगों के बीच पहुंच चुकी है। उनके बड़े पुत्र अजय सिंह बताते हैं लिखावट उनके पिता की ही है। इस पुत्र में उन्होंने मेरे बारे में भी लिखा है। समाज के लोग काफी आहत
सैंथवार समाज के युवा नेता सुजीत कुमार सिंह कहते हैं कि आज यह चिट्ठी समाज के सैकड़ों लोगों के पास है। इसे पढ़कर कलेजा मुंह को आ जाता है। दो बार विधायक रहे इस समाज के मसीहा इतनी समस्याओं से घिरे थे, विश्वास नहीं होता। अब जानिए कौन थे केदार सिंह पूर्व विधायक केदार सिंह पूर्वी उत्तर प्रदेश, विशेषकर गोरखपुर क्षेत्र के चर्चित नेता रहे हैं। उनका राजनीतिक सफर और सामाजिक योगदान क्षेत्रीय राजनीति और सैंथवार समाज के लिए ऐतिहासिक माने जाते हैं। 1980 में स्व. केदार सिंह विधायक चुने गए। 1989 में वह दोबारा विधायक बने। उन्होंने आरक्षण की लड़ाई लड़ी। मंडल कमीशन लागू होने के बाद जब वीपी सिंह की सरकार गिर गई तो उन्होंने गोरखपुर के तमकुही कोठी मैदान में उनकी सभा आयोजित कराई। इस सभा के वे संयोजक बनाए गए थे। आरक्षण के विरोध में गठित सवर्ण लिब्रेशन फ्रंट ने सभा को रोकने की कोशिश की। स्व. केदार के घर बम फेंकने की बात भी कही जाती है। वह सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव के भी काफी करीब रहे। अपने राजनीतिक जीवन में सबसे पहले वह कांग्रेस में शामिल हुए थे। वह चंद्रभानु गुप्ता व सुचेता कृपलानी के करीब रहे। सैंथवार समाज को आरक्षण दिलाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। स्व. केदार सिंह के परिवार के बारे में जानिए स्व. केदार सिंह की पत्नी भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके 4 बेटे व 1 बेटी है। सबसे बड़े बेटे अजय सिंह उर्फ राकेश सिंह हैं। केदार सिंह के निधन के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें पिछड़ा वर्ग आयोग का सदस्य बनाकर दर्जा प्राप्त उप राज्य मंत्री बनाया था। वह आज भी सपा में सक्रिय हैं। केस में पैरवी भी वही करते हैं। उनके बाद अजीत सिंह हैं। वह व्यवसायी हैं और लखनऊ में रहते हैं। तीसरे नंबर के डा. आशीष सिंह पैत्रिक गांव राजेपुरा में ही रह रहे हैं। सबसे छोटे भाई अमित कुमार सिंह इंजीनियर हैं। इस समय वह बंगलुरू में ही शिफ्ट हैं। बहन नीता उसी परिसर में रहती हैं, जिसको लेकर विवाद है। उस जमीन पर दावा करते हुए उन्होंने भी दीवानी कोर्ट में वाद दाखिल किया है। हालांकि फ्री होल्ड कराने वाली कंपनी ने उन्हें पार्टी नहीं बनाया है। यह है चर्चित जमीन का पूरा मामला पार्क रोड पर सिटी माल के बगल में स्थित 95 हजार वर्ग फीट जमीन कभी नजूल की हुआ करती थी। इसके जमींदार मुग्गन बाबू थे। 1980 में केदार सिंह पिपराइच से विधायक बने। 1982 में तत्कालीन डीएम के आदेश पर वह किराएदार के रूप में उन्हें रहने के लिए यह बंगला दिया गया। बदले में हर महीने 72 रुपये 30 पैसे मुग्गन बाबू को देने थे। स्व. केदार सिंह के बड़े बेटे अजय सिंह उर्फ राकेश सिंह के मुताबिक 1999 में मुग्गन बाबू से सहमति लेकर अवधेश श्रीवास्तव और 2003 में समीर अग्रवाल ने जमीन फ्री होल्ड करा लिया। समीर उद्यमी ओमप्रकाश जालान की कंपनी में निदेशक हैं।
उसके बाद भी केदार सिंह वहां रहते रहे। 2008 में फ्री होल्ड कराने वाले लोगों की ओर से स्थानीय दीवानी कोर्ट में खाली कराने के लिए वाद दाखिल किया गया। जवाबदेही में केदार सिंह ने फ्री होल्न्ड कराने वाले लोगों का किराएदार होने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ये अचानक आ गए, नोटिस भी नहीं दिए। 2012 में केदार सिंह का निधन हो गया। उसके बाद उद्यमी के पक्ष में एक्स पार्टी फैसला हो गया। उसके बाद हाईकोर्ट होता हुआ यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जहां से 6 फरवरी 2024 को आदेश दिया गया कि स्व. केदार सिंह के परिजन आवास 1 साल में खाली कर दें। केदार सिंह के एक बेटे अजीत लखनऊ में रहते हैं। उन्होंने मकान खाली कर देने का शपथ पत्र कोर्ट में दे दिया। उद्यमी को कब्जा नहीं मिला, जिसपर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना का वाद दाखिल किया है। अब 9 सितंबर को सुनवाई होनी है। अब जानिए कि यह लड़ाई इमोशन से क्यों जोड़ी जा रही
सुप्रीम कोर्ट की ओर ये आवास खाली करने का आदेश आने के बाद अब कानूनी रूप से कोई इसपर टिप्पणी करने को तैयार नहीं है। वर्तमान में स्व. केदार सिंह के चारो पुत्रों में से कोई यहां नहीं रहता। लेकिन परिसर में पूर्व विधायक की प्रतिमा आज भी लगी है। उसी के बहाने सैंथवार समाज के कुछ लोग वहां दिनभर मौजूद रहते हैं। पुलिस भी नजर आती है। पिछले कुछ दिनों से यह चर्चा आम हो गई कि मकान को तोड़ा जाएगा और स्व. केदार सिंह की प्रतिमा को वहां से हटाने की तैयारी है। इसको लेकर सैंथवार-मल्ल सभा सक्रिय हो गया। डीएम कार्यालय पर जाकर प्रदर्शन किया गया और प्रतिमा न हटाने की मांग की गई। सोमवार को मौके पर जोरदार प्रदर्शन भी हुआ। मजिस्ट्रेट आए, पुलिस बुलानी पड़ी। 36 लोग हिरासत में भी लिए गए। अब यह मांग जोर पकड़ रही है कि स्व. केदार सिंह सैंथवार समाज के मसीहा हैं इसलिए उनकी प्रतिमा वहां से न हटायी जाए। यह समाज की भावनाओं से जुड़ी है। 7 सितंबर को उनकी जयंती के अवसर पर उनकी प्रतिमा तक जाने से सैंथवार समाज के लोगों को रोका गया। जिसके कारण समाज में यह मामला तेजी से फैल रहा है। राजनीतिक फायदे-नुकसान की बात भी होने लगी
सैंथवार-मल्ल सभा के अध्यक्ष गंगा सिंह सैंथवार बताते हैं कि स्व. केदार सिंह हमारे समाज के समीहा हैं। उनकी बदौलत ही सैंथवार समाज के लोगों को ओबीसी का आरक्षण मिला है और वे कई क्षेत्रों में आगे आए हैं। उनकी प्रतिमा समाज के लोगों की भावनाओं से जुड़ी है। इसे हटाना उचित नहीं होगा। हम इसका विरोध करेंगे। यहां उनके नाम पर भव्य पार्क बनाने की मांग हम करेंगे। यह पार्क शहर की खूबसूरती बढ़ाएगा। सैंथवार समाज के भावनाओं से जुड़ा होगा, उनकी आस्था इससे जुड़ी रहेगी। साथ ही शहर के लोगों का भी फायदा होगा। उन्होंने कहा कि आगामी राजनीति पर भी इसका असर पड़ेगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश की 32 सीटों पर हमारी अच्छी-खासी संख्या है। यदि पार्क बनता है तो यह समाज सरकार का ऋणी रहेगा। मांग नहीं मानी गई तो सबकी भावनाएं आहत हो सकती हैं। जानिए अभी किसको मिलता है साथ
पूर्वी उत्तर प्रदेश की 32 विधानसभा सीटों पर सैंथवार मतदाताओं की संख्या प्रभावी मानी जाती है। इस समाज का बड़ा हिस्सा भाजपा का वोटर माना जाता है। इस समाज के नेताओं को भाजपा तवज्जो भी देती दिखती है। भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष डा. धर्मेंद्र सिंह सैंथवार दो बार क्षेत्रीय अध्यक्ष भी रहे हैं। पार्टी ने उन्हें एमएलसी भी बनाया है। महेंद्रपाल सिंह पिपराइच से लगातार दो बार से विधायक हैं। नगर पंचायत अध्यक्ष एवं ब्लाक प्रमुख के कई पद भी इसी समाज के लोगों के पास है। युधिष्ठिर सिंह लगातार कई वर्ष जिलाध्यक्ष रहे। यानी भाजपा इस समाज के वोटबैंक को साधे रखने के लिए भरपूर प्रतिनिधित्व दे रही है। देवरिया से 4 बार विधायक रहे सैंथवार नेता स्व. जन्मेजय सिंह भी भाजपा में थे लेकिन उनके बेटे पिंटू सिंह अब सपा में हैं। सपा ने कुशीनगर से 2024 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया था। इस जिले में भी सैंथवार मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है। पिंटू जीतने में सफल नहीं हुए थे। महराजगंज जिले की पनियरा सीट भी भाजपा के पास है और इसी समाज का नेता यहां विधायक है। यह आम धारणा है कि सैंथवार मतदाताओं का बड़ा हिस्सा भाजपा के साथ जाता है। जानिए 8 लोकसभा क्षेत्रों में कितनी संख्या का दावा करता है संगठन सैंथवार मल्ल महासभा के अध्यक्ष गंगा सिंह सैंथवार और महामंत्री जर्नादन सिंह फौजी ने एक अप्रैल 2024 को पत्रकारों से बातचीत करते हुए 8 लोकसभा क्षेत्रामें अपने समाज की संख्या जारी की थी। उनका दावा था कि गोरखपुर लोकसभा सीट पर 3.5 लाख, बांसगांव में 3.5 लाख, महराजगंज में 2.5 लाख, कुशीनगर में 4.5 लाख, देवरिया में 2.5 लाख, सलेमपुर में 1 लाख, संतकबीरनगर में 2.5 लाख हैं।
केदार सिंह ने लिखा-थके शरीर से संघर्ष कर रहा हूं:चिट्ठी सामने आई, बेटे बोले- ये बाबूजी की लिखावट, सैंथवार समाज में चर्चा
