नेपाल में सोमवार को काठमांडू और कई बड़े शहरों में सरकार के खिलाफ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन जारी है। इसमें अब तक 20 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, 200 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं। यह विरोध Gen-Z यानी साल 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए नौजवानों ने शुरू किया है। युवा भ्रष्टाचार और फेसबुक, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स बैन करने की वजह से नाराज हैं। नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बैन क्यों लगाया, चाइनीज एप TikTok इससे कैसे बच गई, नेताओं के बच्चों की आलीशान जिंदगी से नाराजगी कैसे बढ़ी… 6 जरूरी सवालों के जवाब जानेंगे… सवाल-1 : नेपाल में प्रदर्शन को Gen-Z आंदोलन क्यों कहा जा रहा? जवाब: नेपाल में जो विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, उन्हें Gen-Z आंदोलन इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि इसमें सबसे बड़ी भागीदारी युवाओं की है। खासकर 18 से 25 साल के बीच की उस पीढ़ी की, जिसे जेनरेशन जेड (Gen-Z) कहा जाता है। ये युवा सोशल मीडिया और इंटरनेट पर पले-बढ़े हैं। ये फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिकटॉक और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर बहुत सक्रिय रहते हैं। इसी वजह से जब सरकार ने सोशल मीडिया पर पाबंदी लगाई तो सबसे ज्यादा नाराजगी इन्हीं युवाओं में दिखी। प्रदर्शन में शामिल छात्र-छात्राएं स्कूल और कॉलेज की ड्रेस पहनकर सड़कों पर उतरे। कई जगहों पर उन्होंने खुद बैनर और पोस्टर बनाए, नारे लगाए और बिना किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ाव के विरोध जताया। यही वजह है कि इसे किसी दल या संगठन का आंदोलन न मानकर, नई पीढ़ी की बगावत कहा जा रहा है, जिसे लोग Gen-Z अपराइजिंग या Gen-Z आंदोलन कह रहे हैं। सवाल-2 : नेपाल में सोशल मीडिया बंद क्यों हुआ? जवाब: नेपाल सरकार का कहना है कि फर्जी अकाउंट से अफवाहें और नफरत फैल रही थीं। इससे साइबर अपराध बढ़ रहे थे और सामाजिक व्यवस्था बिगड़ रही थी। इसके लिए सरकार ने कंपनियों से कहा कि वे नेपाल में रजिस्ट्रेशन कराएं, स्थानीय प्रतिनिधि और शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करें और कंटेंट मॉडरेशन में जवाबदेह बनें। इसके लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को 7 दिन यानी कि 3 सितंबर तक का वक्त दिया गया था। जब फेसबुक, यूट्यूब, वॉट्सएप और एक्स जैसी कंपनियों ने तय समय में रजिस्ट्रेशन नहीं कराया, तो उन्हें बंद कर दिया गया। सवाल-3: मेटा जैसी 26 कंपनियां रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं करा सकीं? जवाब: रजिस्ट्रेशन के नियमों के मुताबिक हर कंपनी को नेपाल में लोकल ऑफिस रखना, गलत कंटेंट हटाने के लिए लोकल अधिकारी नियुक्त करना, कानूनी नोटिसों का जवाब देना और सरकार के साथ यूजर का डेटा शेयर करना जरूरी कर दिया गया। कंपनियों को डेटा-प्राइवेसी और अभिव्यक्ति की आजादी के मामले में ये शर्तें बहुत सख्त लग रही हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत या यूरोप जैसे बड़े देशों में कंपनियां लोकल प्रतिनिधि रख लेती हैं, क्योंकि वहां यूजर बहुत ज्यादा हैं, लेकिन नेपाल का यूजर बेस छोटा है, इसलिए कंपनियों को यह बेहद खर्चीला लगा। अगर कंपनियां नेपाली सरकार की यह शर्त मान लेती हैं, तो उन पर अन्य छोटे देशों में भी इन नियमों का पालन करने का दबाव पड़ता, जो काफी खर्चीला है। यही वजह रही कि पश्चिमी कंपनियों ने नेपाल सरकार की शर्त नहीं मानी और तय समय पर रजिस्ट्रेशन नहीं कराया। सवाल-4 : नेपो किड ट्रेंड क्या है, जिससे युवाओं का गुस्सा भड़का? जवाब: नेपाल में पिछले कई महीनों से सोशल मीडिया पर नेताओं और उनके परिवारों की ऐश-ओ-आराम भरी जिंदगी के वीडियो लगातार वायरल हो रहे थे। इस ट्रेंड को नेपाल में ‘Nepo Kid / Nepo Baby’ यानी ‘ताकतवर लोगों के बच्चे’ कहा जा रहा है। नेपो किड ट्रेंड से जुड़ा VIDEO… इसमें प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली, पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ के परिवार खास तौर पर निशाने पर रहे। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर ऐसे कई वीडियो और तस्वीरें शेयर किए गए, जिनमें उनके बच्चों को महंगी कारों, विदेशी शिक्षा और ब्रांडेड कपड़ों के साथ दिखाया गया। इन तस्वीरों और वीडियोज ने युवाओं में गुस्सा और असंतोष बढ़ा दिया। नेपाल में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 1,300 डॉलर सालाना है। युवाओं की बढ़ती नाराजगी देख सरकार ने सोचा कि अगर हालात पर जल्द काबू नहीं पाया गया तो माहौल और बिगड़ सकता है। इसी दबाव में सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को सात दिन के भीतर नेपाल में रजिस्ट्रेशन कराने का आदेश जारी कर दिया। सवाल- 5: चाइनीज TikToK एप बैन से कैसे बची? जवाब: रिपोर्ट्स के मुताबिक, टिकटॉक ने सरकार के नोटिस के तुरंत बाद नेपाल दूरसंचार प्राधिकरण (NTA) के साथ रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया पूरी कर ली थी। इसी वजह से टिकटॉक ब्लॉक होने से बच गया। टिकटॉक के अलावा वीटॉक और वाइबर जैसे प्लेटफॉर्म्स भी बंद होने से बच गए। ऐसे में कहा जा सकता है कि टिकटॉक बैन से इसलिए बचा क्योंकि उसने नेपाल सरकार की शर्तों को समय रहते मान लिया और अपने प्लेटफॉर्म को आधिकारिक रूप से रजिस्टर्ड करा लिया। वहीं, अमेरिकी कंपनियों ने नेपाल की रजिस्ट्रेशन पॉलिसी को नजरअंदाज कर दिया। दूसरी तरफ, आलोचकों का कहना है कि नेपाल सरकार ने टिकटॉक को जानबूझकर बचा लिया क्योंकि वह पहले से ही चीन के दबाव और निवेश पर निर्भर है। सवाल-6: युवाओं के इस प्रदर्शन के पीछे किसका हाथ है? जवाब: इन प्रदर्शनों के पीछे सोशल मीडिया और एक NGO ‘हामी नेपाल’ की बड़ी भूमिका रही। इस NGO ने छात्रों को जुटाने के लिए इंस्टाग्राम और डिस्कॉर्ड जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया। इन साइटों पर ‘विरोध कैसे करें’ जैसे वीडियो डाले गए थे, जिनमें छात्रों को यह सलाह दी गई थी कि वे कॉलेज बैग और किताबें लेकर आएं और कोशिश करें कि स्कूल की वर्दी पहनकर ही विरोध में शामिल हों। सोमवार को प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने ‘यूथ्स अगेंस्ट करप्शन’ का बैनर भी उठाया, जिसे हामी नेपाल ने ही जारी किया था। स्थानीय मीडिया के मुताबिक, इस संगठन ने बाकायदा काठमांडू प्रशासन से प्रदर्शन की अनुमति भी ली थी। हामी नेपाल की शुरुआत 2015 में हुई थी। यह एक NGO है, जो आपदाओं के समय राहत कार्य करती रही है। इसके सदस्य भूकंप और बाढ़ जैसे हालात में बचाव, भोजन वितरण और पानी की व्यवस्था करने में एक्टिव रहते हैं। यह संगठन सामाजिक मुद्दों पर भी काम करता है, खासकर छात्रों और प्रवासी नेपाली नागरिकों से जुड़े मामलों पर। इस साल की शुरुआत में, जब भारत के भुवनेश्वर में पढ़ने वाली एक नेपाली छात्रा ने अपने प्रेमी के कथित उत्पीड़न से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी, तब हामी नेपाल ने खुलकर इस मामले को उठाया। उस समय इसके सदस्य लाल कपड़े पहनकर और संगठन का लोगो लगाकर लगातार जानकारी साझा करते रहे। दिलचस्प बात यह है कि हामी नेपाल आमतौर पर सोशल मीडिया पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दों से दूरी बनाए रखता है। यह अक्सर अपनी मानवीय गतिविधियों की अपडेट इंस्टाग्राम पर डालता है। हामी नेपाल के 36 साल के संस्थापक सुदान गुरुंग ने 8 सितंबर को काठमांडू में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन की घोषणा की थी। यह घोषणा इसलिए चौंकाने वाली थी क्योंकि इससे पहले तक हामी नेपाल के सोशल मीडिया पेज पर ज्यादातर सामाजिक अभियानों से जुड़ी पोस्ट ही दिखाई देती थीं। जैसे कि भूकंप, बाढ़ राहत, छात्रों की समस्याएं या प्रवासी नेपाली मजदूरों के मुद्दे। सुदान गुरुंग का नाम पहली बार सीधे राजनीतिक विवाद में तब आया था, जब उन्होंने नेपाल में चर्चित शिक्षक भर्ती घोटाले पर खुलकर सवाल उठाए। गुरुंग ने आरोप लगाया था कि इस भर्ती प्रक्रिया में बड़े पैमाने पर गड़बड़ी हुई है और योग्य उम्मीदवारों को बाहर कर पैसे और राजनीतिक संबंधों के आधार पर नियुक्तियां की जा रही हैं। इस बयानबाजी के बाद उन पर कथित तौर पर जानलेवा हमला भी हुआ था। ————————————————— नेपाल के प्रदर्शन से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें… नेपाल के विरोध-प्रदर्शन में 20 की मौत, 200 घायल:काठमांडू में कर्फ्यू, देखते ही गोली मारने का आदेश; सोशल मीडिया बैन से नाराज युवा नेपाल में सुबह से जारी विरोध प्रदर्शन में अब तक 20 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 200 से ज्यादा घायल हैं। इस विरोध की अगुआई Gen- Z यानी 18 से 30 साल के युवा कर रहे हैं। सोशल मीडिया बैन और सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ सोमवार सुबह 12 हजार से ज्यादा प्रदर्शनकारी संसद भवन परिसर में घुस गए, जिसके बाद सेना ने कई राउंड फायरिंग की। पूरी खबर यहां पढ़ें… नेपाली संसद की दीवार फांदकर घुसे प्रदर्शनकारी, PHOTOS:पुलिस ने पानी की बौछार की, आंसू गैस छोड़ी, गोलियां चलाईं; Gen-Z को नहीं रोक पाए नेपाल में सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ Gen- Z यानी 18 से 30 साल के युवाओं ने संसद भवन परिसर को घेर लिया। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए पानी की बौछार की। साथ ही आंसू गैस, रबर बुलेट और गोलियां चलाईं। पूरी खबर यहां पढ़ें…
नेपाल में Gen-Z प्रदर्शन क्यों शुरू हुआ:फेसबुक, इंस्टा, यूट्यूब समेत 26 सोशल प्लेटफॉर्म बैन; नेताओं के बच्चों की आलीशान जिंदगी से नाराजगी फैली
