हाईकोर्ट ने 7 वर्षों में हिरासत में हुई मौत का मांगा ब्योरा, हलफनामा देने का दिया निर्देश

हाईकोर्ट ने 7 वर्षों में हिरासत में हुई मौत का मांगा ब्योरा, हलफनामा देने का दिया निर्देश

झारखंड हाईकोर्ट ने हिरासत में हुई मौत मामले की जांच की मांग को लेकर दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद गृह,कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव को व्यक्तिगत रूप से हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा है कि इस हलफनामा में वर्ष 2018 से अब तक हिरासत में हुई सभी मौतों का ब्योरा दें। अदालत ने कहा है कि यह भी स्पष्ट करना होगा कि क्या हिरासत में हुई इन मौतों की सूचना संबंधित मजिस्ट्रेट को जांच के लिए दी गई थी। इससे पहले याचिकाकर्ता अधिवक्ता मो. शादाब अंसारी की आेर से वर्ष 2018 से अब तक हुई हिरासत में हुई सभी मौत की न्यायिक जांच कराने की मांग की गई। उन्होंने बताया कि सीआरपीसी या बीएनएसएस के तहत ऐसे मौत की जांच कराने का प्रावधान है। कानून के तहत पुलिस जांच के अलावा मजिस्ट्रेट से अनिवार्य रूप से जांच कराने का प्रावधान है। याचिकाकर्ता ने झारखंड विधानसभा में दिए गए दस्तावेज का हवाला देते हुए कहा, सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि वर्ष 2018 से 2021 के बीच राज्य में हिरासत में करीब 166 मौतें हुई हैं। इसलिए सभी मामले की मजिस्ट्रेट से जांच कराने की जरुरत है,ताकि सच्चाई का पता चले। अदालत ने इस मामले में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश देते हुए अगली सुनवाई 25 सितंबर को निर्धारित की है। हाईकोर्ट से बीमा कंपनी की अपील खारिज, मृतका के परिजनों को 45 दिन में मुआवजा देने का आदेश रांची | झारखंड हाईकोर्ट ने सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाले एक यात्री के मामले में अहम आदेश पारित किया है। अदालत ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी की अपील खारिज करते हुए मृतका के परिजनों को 45 दिन में मुआवजा देने का निर्देश दिया है। अदालत ने कंपनी को निर्देश दिया है कि वह 2009 में सड़क दुर्घटना में जान गंवाने वाली महिला के परिजनों को निर्धारित मुआवजा राशि 2.54 लाख रुपए का भुगतान 9 प्रतिशत ब्याज के साथ करे। मालूम हो कि 19 मई 2009 में बिहार के दरभंगा में लालपुर चौक पर यात्रियों से भरी एक कमांडर जीप (बीआर 7पी-1013) पलट गई थी। हादसे में अहमदी बेगम की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। उनके पति ने मोटर वाहन अधिनियम की धारा 166 के तहत मुआवजे का दावा दायर किया था। जमशेदपुर के मोटर दुर्घटना दावा दाखिल न्यायाधिकरण ने 2014 में मृतका के पति को 2.54 लाख रुपए मुआवजा और 9 प्रतिशत सालाना ब्याज देने का आदेश दिया था। न्यायाधिकरण के आदेश के खिलाफ नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने हाईकोर्ट में अपील की। कंपनी की ओर से तर्क दिया गया कि वाहन चालक के पास सिर्फ हल्के वाहन (एलएमवी) चलाने का लाइसेंस था, जबकि टैक्सी चलाने के लिए सार्वजनिक वाहन (पीएसवी) बैज जरूरी था। सुनवाई के दौरान अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि 7500 किलो से कम वजनी वाहनों को चलाने के लिए अलग से पीएसवी बैज की जरूरत नहीं है, अगर चालक के पास एलएमवी का लाइसेंस है। कोर्ट ने यह भी पाया कि बीमा कंपनी परमिट न होने का कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सकी। अदालत ने स्पष्ट किया कि मुआवजा राशि बढ़ाई नहीं जा सकती, क्योंकि यह अपील कंपनी ने की थी, न कि पीड़ित पक्ष ने। लिहाजा बीमा कंपनी को मूल मुआवजा ही अदा करना होगा। अदालत ने कंपनी को आदेश दिया कि 45 दिन के भीतर राशि ट्रिब्यूनल में जमा करें, ताकि पीड़ित परिवार को भुगतान किया जा सके। बाबूलाल मरांडी के मामले में प्रतिवादी को भेजा जाएगा नोटिस झारखंड हाईकोर्ट में गुरुवार को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। जस्टिस एके चौधरी की अदालत ने सुनवाई के बाद शिकायतकर्ता भैया बांके बिहारी को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया। प्रार्थी बाबूलाल मरांडी ने याचिका दाखिल कर हजारीबाग की निचली अदालत में दर्ज शिकायतवाद को चुनौती दी है। भैया बांके बिहारी ने बाबूलाल मरांडी के खिलाफ शिकायतवाद दर्ज कराई है।

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