सरहद पर डटे, अब स्कूल में जुटे हैं ये गुरु

सरहद पर डटे, अब स्कूल में जुटे हैं ये गुरु

कुंदन कुमार चौधरी . रांची | देश की सेवा का जुनून सिर्फ सेना की वर्दी तक सीमित नहीं होता। रांची में दो ऐसे शिक्षक हैं जिन्होंने पहले सरहद पर देश की रक्षा की और अब ज्ञान की मशाल जलाकर भविष्य को गढ़ रहे हैं। कैप्टन गीता सिंह व समरजीत जाना दोनों ने सेना में कमीशन अधिकारी के रूप में देश को अपनी सेवाएं दीं। अब वे अपने अनुभवों और अनुशासन को बच्चों के बीच साझा कर रहे हैं। सेवा से सेवानिवृत्ति, पर मिशन जारी रहा सेना में लगभग सात साल तक देश की सेवा करने के बाद, उन्होंने अपने परिवार और बच्चों के पालन-पोषण को प्राथमिकता देते हुए सेवानिवृत्ति लेने का साहसिक फैसला किया। उन्होंने बच्चों को शिक्षित करने का बीड़ा उठाया और पति के साथ रहते हुए देश के कई प्रतिष्ठित आर्मी पब्लिक स्कूलों में अध्यापन का कार्य किया। इनमें मीसामारी, नासिक, लेह और झांसी जैसे संस्थान शामिल हैं। 2013 में सीबीएसई ने सर्वश्रेष्ठ मेंटर प्रिंसिपल पुरस्कार दिया 2000 से उन्होंने झारखंड को अपनी कर्मभूमि बनाई। वे प्रिंसिपल के तौर पर सेवा दे रहे हैं। शिक्षा के प्रति समर्पण और लगन ही है कि 2013 में उन्हें सीबीएसई द्वारा राष्ट्रीय सर्वश्रेष्ठ मेंटर प्रिंसिपल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज वे जवाहर विद्या मंदिर, श्यामली में वे कुशल नेतृत्व से शिक्षा के मानकों को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं। उनका मानना है कि शिक्षा जीवन को बेहतर बनाने का आधार है। एक सैनिक की बेटी से स्वयं सैनिक बनने तक का सफर कैप्टन गीता सिंह का जन्म एक भारतीय वायु सेना अधिकारी के घर हुआ था। पिता की बार-बार होने वाली पोस्टिंग के कारण उनकी शिक्षा देश के अलग-अलग हिस्सों में हुई, जिसने उन्हें विविध संस्कृतियों और जीवनशैली से परिचित कराया। उन्होंने दसवीं कक्षा से लेकर एमएससी तक की पढ़ाई राजस्थान के जोधपुर शहर से पूरी की, जहां उन्होंने रसायन विज्ञान में विशेष योग्यता हासिल की। पिता के पदचिह्नों पर चलते हुए, उन्होंने भी भारतीय सेना में शामिल होने का निर्णय लिया। 5 सितंबर 1997 को उन्होंने भारतीय सेना की आर्मी सेवा कोर में कमीशन प्राप्त किया। देश सेवा के इस गौरवशाली अध्याय के दौरान, उन्होंने एक भारतीय थल सेना अधिकारी से विवाह किया और दोनों ने मिलकर देश के कई महत्वपूर्ण स्थानों पर अपनी सेवाएं दीं। सैनिक से शिक्षाविद्: 6 माउंटेन डिवीजन के कमीशन भूटान से लौटने के बाद, श्री जना ने देश सेवा के अपने जज्बे को एक नया आयाम दिया। 1994 में, उन्होंने भारतीय सेना की शैक्षिक कोर (AEC) में एक कमीशन अधिकारी के रूप में कार्यभार संभाला। उन्हें 6 माउंटेन डिवीजन और 69 माउंटेन ब्रिगेड के तहत पिथौरागढ़ के जनरल बीसी जोशी आर्मी पब्लिक स्कूल में उप-प्रिंसिपल का पद सौंपा गया। यहां उन्होंने न सिर्फ छात्रों को पढ़ाया, बल्कि उन्हें एक सैनिक की तरह अनुशासन, राष्ट्रवाद और नेतृत्व के गुण भी सिखाए। सेना में रहते हुए उन्होंने जिस कठोरता और समर्पण का परिचय दिया, उसी का प्रतिबिंब उनके बाद के शैक्षिक जीवन में भी साफ दिखाई देता है। सेना से शिक्षा क्षेत्र में पूर्णकालिक रूप से आने के बाद, 1997 में वे हिमाचल प्रदेश के चंबा में डीएवी पब्लिक स्कूल के प्रिंसिपल बने। भारतीय सेना की वर्दी से लेकर आर्मी पब्लिक स्कूल की उप-प्रधानाचार्या की कुर्सी तक का सफर तय करने वाली कैप्टन गीता सिंह (सेवानिवृत्त) का जीवन साहस, समर्पण और शिक्षा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता की एक अनूठी कहानी है। एक ऐसे परिवार में जन्मी जहां देश सेवा ही सबसे बड़ा धर्म था, उन्होंने न सिर्फ सरहद पर अपनी ड्यूटी निभाई, बल्कि अब शिक्षा के माध्यम से देश के भविष्य को गढ़ रही हैं। रांची में शिक्षा के क्षेत्र में एक ऐसा नाम है, जिसने अपनी तीन दशकों से अधिक की यात्रा से हजारों छात्रों और शिक्षकों को प्रेरित किया है। जवाहर विद्या मंदिर, श्यामली के प्रिंसिपल समरजीत जाना पहले भारतीय सेना में कमीशन अधिकारी के रूप में देश सेवा की है। कलकत्ता विश्वविद्यालय के बाद जेएनयू से पर्यावरण विज्ञान में एमफिल किया व इसे पूरे देश में फैलाया। 1992 में, उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के कोलंबो प्लान के तहत भूटान में भी अपनी सेवाएं दीं। कैप्टन गीता सिंह: सरहद से शिक्षा के मैदान में पहुंची, अब नई पीढ़ी का गढ़ रही हैं भविष्य शिक्षा के ‘समर’ का योद्धा समरजीत जाना : पूर्व कमीशन अधिकारी ने शिक्षा में गाड़े झंडे

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