प्रसव पीड़ा में तड़पती रही; घर नहीं पहुंचा एंबुलेंस:चतरा में खाट ही बना सहारा, 3 किमी तक परिजनों ने कांधे पर ढोया

प्रसव पीड़ा में तड़पती रही; घर नहीं पहुंचा एंबुलेंस:चतरा में खाट ही बना सहारा, 3 किमी तक परिजनों ने कांधे पर ढोया

चतरा जिले के कुंदा थाना क्षेत्र के सिकिदाग पंचायत का बूटकुईया गांव बरसात में पूरी तरह टापू बन जाता है। यहां सड़क सुविधा के अभाव में ग्रामीणों को बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने के लिए भी जद्दोजहद करनी पड़ती है। इसी कारण अरविंद गंझु की पत्नी भीखी देवी को प्रसव पीड़ा के दौरान परिजनों को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जानकारी के मुताबिक भीखी देवी को दर्द शुरू होने पर परिजनों ने ममता वाहन को बुलाया, लेकिन गांव तक सड़क और पुल नहीं होने की वजह से एंबुलेंस वहां पहुंच ही नहीं सकी। मजबूर परिजनों ने महिला को खाट पर लिटाकर तीन किलोमीटर पैदल चलकर मुख्य सड़क तक पहुंचाया। नदी पार करने से लेकर कच्चे रास्ते पर सफर करना बेहद कठिन था। मुख्य सड़क पर पहुंचने के बाद ही उन्हें एंबुलेंस मिल सकी। स्वास्थ्य केंद्र से नर्सिंग होम तक भटकते रहे परिजन एंबुलेंस से पहले भीखी देवी को कुंदा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र लाया गया, लेकिन वहां से उन्हें चतरा सदर अस्पताल रेफर कर दिया गया। अंततः परिजनों ने उन्हें एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती कराया, जहां डॉक्टरों की देखरेख में सुरक्षित प्रसव हुआ। मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। ग्रामीणों का कहना है कि बूटकुईया समेत आसपास के कई गांवों में यह समस्या वर्षों से है। एंबुलेंस गांव तक नहीं पहुंच पाती, जिस कारण खाट को ही एंबुलेंस बनाना पड़ता है। इससे पहले प्रतापपुर प्रखंड के हिंदीयखुर्द गांव में भी एक महिला को खाट पर ले जाते समय ही प्रसव हो गया था। ग्रामीणों ने कहा कि यह स्थिति सरकारी दावों और हकीकत के बीच का बड़ा अंतर दिखाती है। प्रशासन ने मानी कमी, अधर में समाधान कुंदा प्रखंड के बीडीओ साकेत कुमार सिन्हा ने भी माना कि बूटकुईया गांव आदिम जनजाति बहुल इलाका है और अब तक वहां तक सड़क का निर्माण नहीं हो सका है। उन्होंने कहा कि इतनी लंबी सड़क का निर्माण प्रखंड स्तर पर संभव नहीं है, इसके लिए ग्रामीण सड़क विकास योजना और पथ निर्माण विभाग की जिम्मेदारी है।

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