महाकुम्भ : रंगपंचमी पर काशी में होगा प्रयाग महाकुम्भ का समापन, जानिए रंग पंचमी का महत्व
महाकुम्भ, 03फरवरी (हि.स.)। होलिका दहन के अगले दिन रंग खेलते हैं। रंगों का ये उत्सव चैत्र महीने की कृष्ण प्रतिपदा से पंचमी तक चलता है। इसलिये पांचवें दिन को रंग पंचमी कहते हैं। जो कि चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की पंचमी पर होता है। देवी देवताओं का आह्वान करने के लिए ये त्योहार मनाया जाता है। रंग पंचमी पर पवित्र मन से पूजा पाठ करने पर देवी देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। इस दिन जो भी रंग इस्तेमाल किए जाते हैं जिन्हें एक दूसरे पर लगाया जाता है, हवा में उड़ाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से विभिन्न रंगों की ओर देवता आकर्षित होते हैं। मथुरा व वृन्दावन के कुछ मन्दिरों में तो होली उत्सव का समापन ही रंग पंचमी के दिन होता है।
रंगपंचमी के दिन प्रयाग कुम्भ का समापन
अखाड़ों की यह परम्परा रही है कि प्रयाग कुम्भ का समापन काशी में ही होता है। अखाड़े के साधु-संत महादेव की नगरी में अमृत स्नान भी करते हैं। अमृत स्नान के बाद अखाड़े के संन्यासी भोले बाबा के दरबार में जाकर उनका दर्शन भी करते हैं। फिर होली पर्व के पांचवें दिन रंगपंचमी को अखाड़े के संन्यासी जमकर होली खेलते हैं, उसके बाद ही उनका कुम्भ पर्व समाप्त होता है। इस समय अखाड़े अपना हिसाब-कितात भी करते हैं और नई कमेटी को आय-व्यय को ब्यौरा सौंपते हैं। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवीन्द्रपुरी जी महाराज ने हिन्दुस्थान समाचार को बताया कि, अखाड़े 7 फरवरी को संगम की भूमि छोड़कर काशी की ओर रवाना होंगे।
कब है रंगपंचमीवर्ष 2025 में रंग पंचमी 19 मार्च को होगी। पंचमी तिथि 18 मार्च 2025 को रात्रि 10:09 बजे प्रारम्भ होगी तथा 20 मार्च 2025 को रात्रि 12:37 बजे समाप्त होगी।
रंग पंचमी :
अनुष्ठान और उत्सव रंग पंचमी मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कुछ उत्तरी भारतीय क्षेत्रों में मनाई जाती है। यह त्योहार पांच दिनों के होली उत्सव; होलिका दहन के बाद पांचवें दिन के बाद मनाया जाता है।
रंग पंचमी की पौराणिक कथा पौराणिक कथा है कि कामदेव के द्वारा भगवान शिव की तपस्या में जब विघ्न डाला गया तो क्रोधित होकर शिवजी ने उन्हें भस्म कर राख में बदल दिया। इस पर देवी रति व अन्य देवताओं के अनुरोध पर शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवन किया। इस घटना से सभी देवी-देवता अति प्रसन्न हुए और रंगोत्सव भी मनाया। ऐसी मान्यता है कि रंग पंचमी का त्योहार इसी घटना के बाद मनाया जाने लगा। वहीं रंग पंचमी का राधारानी और श्री कृष्ण से गहरा नाता है। रंगपंचमी के दिन ही श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ खूब होली खेली थी। पूरे विधि-विधान से इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है और फिर गुलाल आदि अर्पित कर रंग खेला जाता है।
प्राचीनकाल से ही होती है रंग पंचमी इस पर्व का इतिहास बहुत पुराना है। कहा जाता है कि प्राचीन समय में जब होली का उत्सव कई दिनों तक मनाया जाता था। उस समय रंग पंचमी के साथ खत्म होता था। उसके बाद कोई रंग नहीं खेलता था। वास्तव में रंग पंचमी होली का ही एक रूप है जो चैत्र मास की कृष्ण पंचमी को मनाया जाता है। देश के कई हिस्सों में इस अवसर पर धार्मिक और सांकृतिक उत्सव आयोजित किये जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार रंग पंचमी अनिष्टकारी शक्तियों पर विजय पाने का पर्व कहा जाता है।
रंग पंचमी का महत्व क्या है
मान्यता है कि रंग पंचमी तिथि पर श्रीकृष्ण ने राधारानी के साथ रंगों की होली खेली। माना ये भी जाता है कि इस दिन धरती पर आकर देवतागण रंग, गुलाल से होली खेलते हैं। मान्यता है कि देवताओं के होली खेलने से गुलाल जब हवा में फैलता है तो वह मानवों के ऊपर भी गिरता है और इससे देवी-देवताओं की विशेष कृपा बरसती है। देवताओं को इस दिन गुलाल, अबीर आदि अर्पित की जाती है इससे कुंडली में दोष होने पर उनका नाश होता है।
रंग पंचमी : तिथि और समय
रंग पंचमी 2025 तिथि : 19 मार्च 2025, बुधवार को
पंचमी तिथि शुरू : मार्च 18, 2025 को 22:09 बजे
पंचमी तिथि समाप्त : मार्च 20, 2025 को 00:36 बजे