मुरादाबाद में एक महिला ने अपने 15 दिन के दुधमुंहे बच्चे को फ्रिज में रख दिया। इसके बाद सोने चली गई। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर दादी किचन में पहुंची। उन्हें फ्रिज के अंदर से रोने की आवाज सुनाई दी। जब दरवाजा खोला, तो उसमें नवजात था। दादी ने उसे बाहर निकाला और डॉक्टर के पास ले गईं। बच्चे का चेकअप कराया और फिर घर आ गए। इसके बाद घरवालों ने बच्चे की मां से पूछा- बच्चा फ्रिज में कैसे पहुंचा? उसने बताया कि सो नहीं रहा था, इसलिए रख दिया। मां की बातें सुनकर घरवाले परेशान हो गए। उनको लगा कि बहू पर भूत-प्रेत का साया है। शनिवार को बहू को तांत्रिक के पास लेकर गए। झाड़-फूंक कराई, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। घरवाले अब महिला का साइकेट्रिक से इलाज करा रहे हैं। मामला कटघर थाना क्षेत्र का है। अब पूरा मामला पढ़िए… जब्बार कॉलोनी करुला में एक महिला (23) अपने पति और सास-ससुर के साथ रहती है। महिला का पति पीतल कारीगर है। महिला ने 15 दिन पहले एक बेटे को जन्म दिया। बच्चे के जन्म के बाद महिला पोस्टपार्टम डिसऑर्डर से ग्रसित हो गई। लेकिन, घरवालों को महिला की इस मानसिक बीमारी के बारे में पता ही नहीं चल पाया। उधर महिला की बीमारी बढ़ती गई। इसके चलते 5 सितंबर को उसने अपने दुधमुंहे बेटे को फ्रिज में लिटा दिया। इसके बाद अपने कमरे में सोने चली गई। फ्रिज में जब ठंड लगी, तो नवजात रोने-चिल्लाने लगा। इससे दूसरे कमरे में सो रही महिला की सास की नींद टूट गई। वह रोने की आवाज की आहट लेते हुए किचन तक जा पहुंची। वहां उन्हें फ्रिज से रोने की आवाज लगी। सास ने फ्रिज खोलकर देखा, तो उसमें बच्चा था। दादी ने बच्चे को बाहर निकाला। फिर बच्चे के दादा और पिता को इस बारे में बताया। गुस्से में तीनों लोग बहू के कमरे में पहुंचे, तो देखा वह गहरी नींद में सो रही थी। तीनों लोग यही सोच रहे थे कि बच्चा कैसे फ्रिज में पहुंचा? हालांकि, वे लोग बच्चे को लेकर डॉक्टर के पास पहुंचे। डॉक्टर ने चेकअप कर बताया कि बच्चा ठीक है। फिर परिवारवाले बच्चे को लेकर घर वापस आ गए। इतना सब होने के बाद भी बहू सोती रही। इस पर पति ने गुस्से में उसे उठाया। उससे पूछा कि बच्चा कहां है? महिला ने सीधा जवाब दिया- फ्रिज में है। महिला का जवाब सुनकर सब परेशान हो गए। इसके बाद परिवारवालों को लगा कि महिला पर ऊपरी हवाओं का असर है। इसके चलते महिला ने ऐसी हरकत की है। 6 सितंबर को घरवालों ने महिला की झाड़-फूंक कराई, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। फिर उनके एक रिश्तेदार युवक ने महिला को साइकेट्रिक के पास ले जाने की सलाह दी। परिवार के लोग उसे एक साइकेट्रिक के पास लेकर पहुंचे। डॉक्टर ने काउंसिलिंग की और ट्रीटमेंट शुरू कर दिया। डॉ. कार्तिकेय गुप्ता ने बताया कि महिला पोस्टपार्टम साइकोसिस की शिकार है। एडमिट किया गया है। उसका इलाज जारी है। बच्चे को जन्म देने के बाद कई महिलाएं इस डिप्रेशन से गुजर रही होती हैं। बहुत से लोग अभी भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन को सीरियसली नहीं लेते हैं, लेकिन यह एक ऐसी सिचुएशन है जिसका सामना डिलीवरी के बाद महिलाएं करती हैं। यहां तक कई बॉलीवुड एक्ट्रेस भी पोस्टपार्टम डिप्रेशन का सामना कर चुकी हैं। बेबी ब्लूज और पोस्टपार्टम साइकोसिस पोस्टपार्टम साइकोसिस को लेकर हमने लखनऊ के प्रसाद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल कॉलेज के मनोचिकित्सक डॉ. सुमित कुमार से बात की। उन्होंने बताया- डिलीवरी के बाद कई महिलाएं हल्के मानसिक डिप्रेशन यानी बेबी ब्लूज से गुजरती हैं। इसमें अचानक मूड बदलना, उदासी, चिंता, रोना, चिड़चिड़ापन जैसे लक्षण दिखते हैं। अगर यह स्थिति गंभीर हो जाए या दो हफ्तों से अधिक रहे, तो यह पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो सकता है। इससे भी आगे बढ़कर जब महिला वास्तविकता से संपर्क खो देती है तो इसे पोस्टपार्टम साइकोसिस कहा जाता है। अब डिटेल में समझते हैं कि नवजात बच्चे को जन्म देने के बाद महिला को जो बीमारी हुई, वह क्या है? अचानक ये कैसे हो जाती है? इसका क्या इलाज है? नई मां पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार कैसे होती है, समझिए… क्या होता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन और इसके लक्षण पोस्टपार्टम डिप्रेशन एक गंभीर बीमारी है, जो बच्चे के जन्म के कुछ दिनों बाद मां को हो सकती है। किसी महिला को अबॉर्शन या मृत बच्चा पैदा होने से इस बीमारी की संभावना और भी बढ़ जाती है। बच्चे को जन्म देने के बाद महिला को अचानक डिप्रेशन हो सकता है। ये प्रसव के पहले, दूसरे और तीसरे में से किसी भी महीने में हो सकता है। ऐसे में वो अपने बच्चे की तरफ भी बिल्कुल ध्यान नहीं दे पाती। उसका शिशु के प्रति भावनात्मक लगाव खत्म होने लगता है। डिलिवरी के दो हफ्ते बाद हो सकता है पोस्टपार्टम डिप्रेशन
डॉक्टर्स का मानना है कि यह बीमारी बच्चे के जन्म के 1-2 हफ्ते बाद शुरू हो सकती है। ये महिला की मां बनने की खुशी को पूरी तरह छीन लेती है। शिशु को जन्म देने के बाद महिला बहुत थकान महसूस करती है। डिलीवरी के दर्द और मेंटल प्रेशर से गुजरने के बाद वह खुद को भी नहीं पहचान पाती। अगर ये ज्यादा गंभीर हो जाए तो मां को सुसाइडल थॉट्स भी आ सकते हैं। वैसे अगर सही इलाज और काउंसलिंग ली जाए तो यह स्थिति एक महीने में सही भी हो जाती है। बता दें कि जनवरी, 2022 में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की 30 साल की नातिन डॉ. सौंदर्या नीरज ने पोस्टपार्टम डिप्रेशन की वजह से अपनी जान ले ली थी। फैमिली सपोर्ट न होने के कारण भी हो सकता पोस्टपार्टम डिप्रेशन पोस्टपार्टम डिप्रेशन किसी भी उम्र में हो सकता है। 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 20,043 महिलाएं इसकी शिकार थीं। डॉ. मंजू बताती हैं कि बढ़ती उम्र में अक्सर महिलाएं ब्लड प्रेशर, थायरॉइड और डायबिटीज का शिकार हो जाती हैं। इससे उनकी प्रेग्नेंसी स्ट्रेसफुल रहती है। इसके अलावा आजकल लोग एकल परिवार में रह रहे हैं। सपोर्ट न मिलने की वजह से महिलाएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन की चपेट में ज्यादा आती हैं। पति भी उनके मूड में आए बदलावों को समझ नहीं पाते। पोस्टपार्टम डिप्रेशन से कैसे बचें अगर आप सचेत रहें और समय रहते पोस्टपार्टम डिप्रेशन के लक्षणों को पहचा लें तो समय पर इसका इलाज हो सकता है। एक सकारात्मक मानसिकता ऐसी समस्याओं से लड़ने में हमेशा सहायक होती है। फ्लोरिडा अटलान्टिक यूनिवर्सिटी की एक स्टडी के अनुसार जिन महिलाओं को पहले से ही डिप्रेशन या एंग्जाइटी होती है, उनमें पोस्टमार्टम डिप्रेशन 30-35% तक देखा गया है। वहीं, जो महिलाएं पहली डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरीं, उनमें दूसरे बच्चे के जन्म के बाद 50% में यह लक्षण दिखे। मनोचिकित्सक मानते हैं कि 50% महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान ही पोस्टमार्टम डिप्रेशन के लक्षण दिखने लगते हैं। ऐसे में समय रहते उनका इलाज शुरू हो जाए तो डिलीवरी के बाद पोस्टपार्टम डिप्रेशन नहीं झेलना पड़ता। इसके साथ ही कुछ अन्य बातों का भी ध्यान रखें- ———————- ये खबर भी पढ़ें…
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