ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा की ओर से बुलाए गए 8 सितंबर को BRICS नेताओं के वर्चुअल समिट में भारत का प्रतिनिधित्व पीएम मोदी की जगह विदेश मंत्री एस जयशंकर करेंगे। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने शुक्रवार को बयान जारी कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा- भारत की ओर से इसमें विदेश मंत्री भाग लेंगे। यह सम्मेलन अमेरिका के लगाए गए टैरिफ से निपटने के तरीकों और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने पर चर्चा करेगा। ब्राजील इसे अमेरिका विरोधी शिखर सम्मेलन के रूप में पेश नहीं कर रहा है। हालांकि, एक्सपर्ट्स के मुताबिक मोदी का न शामिल होना यह दिखाता है कि भारत 2026 BRICS समिट की अध्यक्षता से पहले सावधानी बरत रहा है। इससे पहले अमेरिका भारत को टैरिफ वापस लेने के बदले BRICS छोड़ने की मांग कर चुका है। अमेरिका के उद्योग मंत्री बोले थे- भारत को BRICS छोड़ना होगा वहीं, अमेरिका के उद्योग मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ने शुक्रवार को ब्लूमबर्ग टीवी से बात करते हुए भारत पर 25% एक्स्ट्रा टैरिफ हटाने के लिए तीन शर्त रखीं। उन्होंने कहा कि भारत को रूस से तेल खरीदना बंद करना पड़ेगा, BRICS से अलग होना होगा और अमेरिका का सपोर्ट करना होगा। उन्होंने कहा कि अगर आप (भारत) रूस और चीन के बीच ब्रिज बनना चाहते हैं तो बनें, लेकिन या तो डॉलर का या अमेरिका का समर्थन करें। अपने सबसे बड़े ग्राहक का सपोर्ट करें या 50% टैरिफ चुकाएं। हालांकि, उन्होंने यह भी उम्मीद जताई कि भारत जल्द ही अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते की बातचीत में शामिल होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिका हमेशा बातचीत के लिए तैयार है। लुटनिक बोले- भारत एक-दो महीने में माफी मांगेगा लुटनिक ने यह भी कहा कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव है, लेकिन जल्द ही भारत माफी मांगकर राष्ट्रपति ट्रम्प के साथ बातचीत की टेबल पर आएगा। उन्होंने कहा कि एक-दो महीने में भारत ट्रम्प के साथ बातचीत की टेबल पर आएगा और माफी मांगेगा। लुटनिक के मुताबिक, भारत ट्रम्प के साथ नया सौदा करने की कोशिश करेगा। यह सौदा ट्रम्प की शर्तों पर होगा और वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ इसे अंतिम रूप देंगे। अमेरिका क्यों चाहता है कि भारत ब्रिक्स छोड़ दे? अमेरिका का भारत से ब्रिक्स (BRICS) छोड़ने की इच्छा जताने अहम वजह भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों से जुड़ा है। भारत ने बार-बार कहा है कि वह ब्रिक्स को वैश्विक दक्षिण की आवाज को मजबूत करने का मंच मानता है, न कि अमेरिका विरोधी समूह। भारत ने डी-डॉलराइजेशन को खारिज किया है और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को महत्वपूर्ण बताया है। भारत ब्रिक्स छोड़ने की किसी योजना का समर्थन नहीं करता है। 2026 में BRICS की अध्यक्षता करेगा भारत भारत 2026 में BRICS समिट की अध्यक्षता करेगा और 18वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन आयोजित करेगा। यह जिम्मेदारी ब्राजील से भारत को 1 जनवरी, 2026 से मिलेगी। मोदी ने 2025 में रियो डी जनेरियो में हुए 17वें ब्रिक्स समिट में भारत की योजना को साझा किया। भारत का लक्ष्य ब्रिक्स को एक नए रूप में पेश करना है, जिसका फोकस होगा: 17वें BRICS समिट में शामिल होने मोदी ब्राजील गए थे 17वां BRICS समिट 6-7 जुलाई, 2025 को ब्राजील के रियो डी जनेरियो में हुआ। ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा की अध्यक्षता में इस समिट का थीम था ‘ग्लोबल साउथ के लिए समावेशी और टिकाऊ सहयोग’। इसमें ब्रिक्स के सदस्य देशों (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान, यूएई) और साझेदार देशों के नेता शामिल हुए थे। मोदी इसमें भाग लेने के लिए ब्राजील गए थे। ये 12वां था जब मोदी BRICS समिट में भाग ले रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा था, ‘ग्लोबल साउथ के देश अक्सर डबल स्टैंडर्ड का शिकार रहे हैं। चाहे विकास हो, संसाधनों की बात हो, या सुरक्षा से जुड़े मुद्दों की, ग्लोबल साउथ को कभी प्राथमिकता नहीं दी गई है। इनके बिना, वैश्विक संस्थाएं ऐसे मोबाइल की तरह हैं, जिसमें सिम कार्ड तो है लेकिन नेटवर्क नहीं है।’ BRICS क्या है? BRICS 11 प्रमुख उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों का एक समूह है। इनमें ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), सऊदी अरब और इंडोनेशिया शामिल हैं। इसका मकसद इन देशों के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक सहयोग को बढ़ावा देना है। इसमें शुरुआत में 4 देश थे, जिसे BRIC कहा जाता था। यह नाम 2001 में गोल्डमैन सैक्स के अर्थशास्त्री जिम ओ’नील ने दिया था। तब उन्होंने कहा था कि ब्राजील, रूस, भारत और चीन आने वाले दशकों में वैश्विक अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाएंगे। बाद में ये देश एक साथ आए और इस नाम को अपनाया। BRICS को बनाने की जरूरत और आगे का सफर सोवियत संघ के पतन के बाद और 2000 के शुरुआती सालों में दुनिया की अर्थव्यवस्था पर पश्चिमी देशों का दबदबा था। अमेरिका का डॉलर और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) फैसले करती थीं। इस अमेरिकी दबदबे को कम करने के लिए रूस, भारत, चीन और ब्राजील BRIC के तौर पर साथ आए, जो बाद में BRICS हो गया। इन देशों का मकसद ग्लोबल साउथ यानी विकासशील और गरीब देशों की आवाज को मजबूती देना था।
मोदी BRICS की वर्चुअल समिट में शामिल नहीं होंगे:अब जयशंकर भाग लेंगे; अमेरिका ने टैरिफ हटाने के लिए BRICS छोड़ने की शर्त रखी थी
