दिव्‍यांग बच्‍ची को देखकर आया मैथ्‍स पार्क बनाने का आइडिया:खुद के खर्च पर बनवाए लर्निंग पार्क-लैब; नेशनल टीचर्स अवॉर्ड के लिए चयनित डॉ. प्रज्ञा

दिव्‍यांग बच्‍ची को देखकर आया मैथ्‍स पार्क बनाने का आइडिया:खुद के खर्च पर बनवाए लर्निंग पार्क-लैब; नेशनल टीचर्स अवॉर्ड के लिए चयनित डॉ. प्रज्ञा

छत्‍तीसगढ़ के दुर्ग जिले का हनोदा मिडिल स्‍कूल। यहां कभी इक्‍का-दुक्‍का बच्‍चे ही पढ़ने आते थे, अब हर दिन ही क्‍लास फुल रहती है। बच्‍चे मैथ्‍स पार्क में कुर्सी दौड़ करते हैं और क्‍लासरूम में बने लूडो, सांप-सीढ़ी में खुद उछल-उछल कर खेलते हैं। ये सब होता है प्रज्ञा मैम की मैथ्‍स क्‍लास में। दिव्‍यांग बच्‍ची को देखकर आया मैथ्‍स पढ़ाने का आइडिया प्रज्ञा बताती हैं कि एक दिन वो स्कूल की एक क्लास में पढ़ा रही थीं। टॉपिक था ट्राइएंगल यानी त्रिभुज। वो समझा रही थीं कि त्रिभुज के तीनों अंत: कोणों का योग एक अर्ध वृत्त के बराबर होता है। उस क्लास में तीन मानसिक दिव्यांग बच्चियां थीं। उसमें से एक बच्ची उठकर उनके पास आई और उनका हाथ हिलाकर बोली कि ‘देख ना मैडम मोरो चंदा बन ग्य’ यानी मेरा चांद भी बन गया। तभी उनके दिमाग में क्लिक किया कि अगर वो बच्चों को एक्टिविटी बेस्ड लर्निंग कराएं तो बहुत ज्यादा असरदार होगा। इसी दिव्यांग बच्ची से प्रेरित होकर उन्होंने TLM यानी टीचिंग लर्निंग मटेरियल बनाया। डॉ. प्रज्ञा सिंह को इस साल नेशनल टीचर्स अवॉर्ड 2025 के लिए चुना गया है। वजह है, उनका बनाया मैथ्‍स पार्क, एडवांस लैब, लाइफ साइज लूडो, सांप-सीढ़ी, शतरंज और ऐसे कई गेम्‍स जो बच्‍चों को खेल-खेल में गणित सिखा देते हैं। खुद के खर्चे पर बनाया मैथ्‍स पार्क प्रज्ञा बताती हैं, ‘मिडिल स्कूल में पढ़ाने के दौरान मैंने देखा कि बच्चे गणित से डरते थे। जिन बच्चों को मैथ्स अच्छी लगती थी वो बहुत इंटरेस्ट लेकर पढ़ते थे। उनका रिजल्ट भी बढ़िया आता था, लेकिन जो बच्चे मैथ्स से डरते थे, उनके लिए कुछ खास नहीं कर पा रही थी। इसलिए मैथ्स को लेकर उन्हें छोटे-छोटे ट्रिक्स और टिप्स देने लगी।’ प्रज्ञा के पास जो आइडियाज थे, उन्‍हें पूरा करने के लिए सरकार से फंड नहीं मिला। ऐसे में उन्‍होंने खुद ही जरूरी सामान मंगाए, मजदूर और पेंटिंग करने वाले बुलाए और अपने खर्च पर ही मैथ्‍स पार्क बनवा दिया। मैथ्स पार्क के अलावा उन्होंने स्कूल में गणित का एडवांस लैब भी बनवाया है। वो यहीं नहीं रुकीं। क्‍लासरूम में स्‍टापू, लूडो, सांप-सीढ़ी और शतरंज जैसे खेल भी उन्‍होंने अपने खर्च से ही बनवाए। उन्होंने फर्श और दीवारों पर पूर्णांकों को दर्ज कर उसमें कुर्सी दौड़ कराई। पासा बनाया। घातांकों के शतरंज बनाए। अभाज्य संख्या की छलनी बनाई। लूडो से अंकों को जोड़ना सिखाया। अधिक कोण, न्यून कोण आदि को खेलों से जोड़ा। बच्चों को पीटी भी गणित के अंकों से कराई। बैलेंसिंग यानी संतुलन का खेल सिखाया। इससे गणित में नतीजे शत प्रतिशत आने लगे। धीरे-धीरे क्‍लास में बच्‍चों की गिनती बढ़ने लगी और आज उनकी क्‍लास में बच्‍चे की संख्‍या फुल ही रहती है। रिजल्ट सुधरा तो पेरेंट्स ने सम्‍मानित किया हर साल इनके स्कूल से बच्चों का ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा में सिलेक्शन होने लगा और स्कॉलरशिप मिलने लगी। एक साल तो 4 बच्चों का सिलेक्शन ग्रामीण प्रतिभा खोज परीक्षा में हुआ। साथ ही, 5 बच्चे 100% मार्क्स के साथ 8वीं की परीक्षा में पास हुए। इसके लिए गांव वालों ने उन्हें सम्मानित भी किया। अच्छा रिजल्ट देखकर बच्चों के पेरेंट्स भी खुश हुए और ज्यादा बच्‍चे स्‍कूल आने लगे। डॉ. प्रज्ञा प्रॉपर दुर्ग की रहने वाली हैं और शुरू से ही टीचर बनना चाहती थीं। बचपन से वो आस-पास के छोटे बच्चों को पढ़ाया करती थीं। शादी के 10 साल बाद तक पढ़ाई से दूर रहीं साल 1997 में प्रज्ञा की शादी हो गई। शादी के बाद वो पारिवारिक जिम्मेदारियों में उलझ गईं और उनकी पढ़ाई बीच में तकरीबन 10 साल के लिए रुक गई। हालांकि 2008 में उन्होंने दोबारा BEd में दाखिला लिया। 2008 में B.Ed. करने के दौरान व्यापम के जरिए प्राइमरी टीचर्स भर्ती निकली थी। इन्होंने उसमें अप्लाई किया और सिलेक्ट हो गईं। अपॉइंटमेंट हनोदा के प्राइमरी स्कूल में हुआ था। ऐसे में 2 साल तक वो प्राथमिक विद्यालय की टीचर रहीं। 2 साल पढ़ाने के बाद उन्होंने दोबारा व्यापम के जरिए मिडिल स्कूल भर्ती परीक्षा दी। इसमें भी सिलेक्ट हुईं, फिर हनोदा के मिडिल स्कूल में जॉइनिंग मिली। अभी वो इसी में कार्यरत हैं। चौथे प्रयास में नेशनल अवॉर्ड के लिए चयनित हुईं साल 2018 में लोक शिक्षण विभाग यानी DPI के सचिव समेत एक टीम स्कूल विजिट करने आई थी। सचिव ने जब लैब देखा तो बहुत प्रभावित हुए और नेशनल टीचर्स अवॉर्ड्स के लिए रिकमेंड किया। फिर उन्होंने ही DO साहब से कहा कि प्रज्ञा को नेशनल अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट करें। साल 2019 में डॉ. प्रज्ञा ने पहली बार नेशनल अवॉर्ड के लिए नॉमिनेशन फाइल किया। पहली बार में स्टेट के जरिए भी नॉमिनेशन नेशनल लेवल पर भेजा गया। फिर उन्होंने दिल्ली जाकर NCERT ऑफिस में प्रेजेंटेशन भी दिया। हालांकि नेशनल टीचर्स अवॉर्ड के लिए उनका चयन नहीं हुआ। इसके बाद प्रज्ञा ने 2023, 2024 में भी अप्लाई किया और राज्य द्वारा भी उन्हें नॉमिनेट किया गया, लेकिन प्रेजेंटेशन में कुछ कमी रह जाने के चलते ज्यूरी ने सिलेक्ट नहीं किया। फिर उन्होंने इस साल यानी 2025 में भी अप्लाई किया और राज्य ने फिर से उन्हें नॉमिनेट किया। इस बार उन्होंने नॉमिनेशन फाइल करते समय प्रजेंटेशन की भी तैयारी की। इसके चलते वो सिलेक्ट हुईं। डॉ. प्रज्ञा नेशनल टीचर्स अवॉर्ड 2025 लेने के लिए आज, 3 सितंबर को दिल्ली जाएंगी। PhD होल्डर होकर भी मिडिल स्कूल में पढ़ाती हैं प्रज्ञा बताती हैं, ‘इंटरव्यूवर ने मुझसे सवाल किया कि PhD की डिग्री होने के बावजूद आप प्राइमरी और मिडिल स्कूल में क्यों पढ़ाती हैं। मैंने कहा- चूंकि मेरा PhD जियोलॉजी में है, इसलिए मैं अपने यहां के जियोलॉजी डिपार्टमेंट से जुड़ी हुई हूं। साथ ही मैं जियोलॉजी को मैथ्स से जोड़कर देखती हूं। जैसे- मैंने जियोलॉजी डिपार्टमेंट से बोलकर अपने स्कूल में रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगवाया। इसके लिए जब कुएं से मिट्टी निकली तो मैंने उसका आयतन, वक्रपृष्ठ निकलवा दिया। ऐसे ही जियोलॉजी के हर टॉपिक को मैथ्स से जोड़कर बच्चों को बताती हूं।’ प्रज्ञा कहती हैं, ‘नेशनल अवॉर्ड सिर्फ एक पड़ाव है, यहां रुकना नहीं है और काम करना है। आगे चलकर स्कूल के इन्फ्रास्ट्रक्चर को और बेहतर करना है। मैथ्स पार्क बना है, लेकिन उसके ऊपर शेड नहीं है, तो शेड बनवाऊंगी और एक मंच भी तैयार करूंगी। ————————————————-

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