सबसे पहले ये 2 केस पढ़िए… 1- आजमगढ़ के बरदह थाना क्षेत्र में 9 अगस्त की रात राजबहादुर सिंह उर्फ मंगला की पीटकर हत्या कर दी गई। 18 अगस्त को पुलिस ने केस सॉल्व किया। आसिफ शेख (19) और मेहताब आलम (20) पकड़े गए। दोनों ने कबूला कि मंगला बार–बार गाली देता था, इसलिए हत्या कर दी। 2- संभल की दो बहनें महक और परी को FIR के बाद पुलिस ने गिरफ्तार किया। उन्होंने कहा– पहले हम लोग अच्छे वीडियो बनाते थे, लेकिन व्यूअर्स नहीं आते थे। फिर किसी को देखकर गाली-गलौज वाले वीडियो बनाए। जिससे हमारे फॉलोअर्स और व्यूअर्स बढ़ने लगे। हमें इसमें मजा आने लगा। रातों रात फेमस हो गए। गिरफ्तारी के बाद डेढ़ लाख फॉलोअर्स बढ़ गए। ये दो केस बताते हैं कि यूपी में गाली कितनी आम है। किसी बात पर गुस्सा निकालना है तो गाली और फेमस होना है तो गाली…। रिसर्च भी यही कहती है कि रोजमर्रा की जिंदगी में लोग गाली का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। 11 साल तक चले सर्वे में यह निकलकर आया है कि यूपी में गंदी–गंदी गालियां चौथी क्लास के बच्चे भी दे रहे हैं। गाली देने में कौन सा राज्य सबसे आगे? क्या है गाली देने की वजह? यूपी में कितने प्रतिशत लोग देते हैं गाली? यूपी के टॉप 5 जिले कौन से हैं, जहां ज्यादा गाली दी जाती है? किस शहर में दी जाती है सबसे ज्यादा गाली? कब हुई थी गाली की शुरुआत? गाली देने पर क्या है कानून? इन सारे सवालों के जवाब पढ़िए दैनिक भास्कर एक्सप्लेनर में… सवाल: कौन सा शहर/राज्य गाली देने में सबसे आगे? जवाब: देशभर में किए गए एक सर्वे में दिल्ली को भारत की सबसे ज्यादा गाली देने वाली जगह बताया गया है। करीब 70 हजार लोगों पर किए गए इस सर्वे के मुताबिक राजधानी के 80% लोग मानते हैं कि वे रोजमर्रा की बातचीत में गाली-गलौज का इस्तेमाल करते हैं। गाली देने के मामले में उत्तर प्रदेश और बिहार पीछे नहीं है। सर्वे के मुताबिक उत्तर प्रदेश और बिहार में 74% लोग गाली देते हैं। देश के दोनों ही राज्य तीसरे पायदान पर हैं और यहां युवाओं में गाली देने की प्रवृत्ति ज्यादा देखी गई है। सवाल: यूपी के किन शहरों में दी जाती है ज्यादा गाली ? जवाब: सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन के फाउंडर और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक (हरियाणा) के प्रोफेसर सुनील जागलान के नेतृत्व में सर्वे हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में करीब 74% लोग अपनी रोजमर्रा की बातचीत में गालियों का इस्तेमाल करते हैं। यह सर्वे 11 साल तक चला और समाज में अपशब्दों के बढ़ते चलन को उजागर करता है। इस पहल का हिस्सा “गाली बंद घर अभियान” भी है, जिसका मकसद खास तौर पर महिलाओं के प्रति अपमानजनक भाषा के इस्तेमाल को रोकना और सभ्य संवाद को बढ़ावा देना है। यूपी में गाली को लेकर सर्वे में ये बातें सामने आईं: 54% युवा वर्ग ( मेल–फीमेल) ने गालियां ओटीटी / सोशल मीडिया/ फिल्मों से सीखी है। 62% लोगों ने स्वीकार किया कि बिना महिला पर जोक्स/ बिना गाली के जोक पर उन्हें हंसी नहीं आती है । गाली देने की अलग-अलग राज्य में अलग-अलग वजह सवाल: गाली देने में महिला या पुरुष कौन है सबसे आगे? जवाब: इस सर्वे में युवा, युवा, माता-पिता, पुलिसकर्मी, शिक्षक, व्यापारी और समाज के अलग-अलग वर्गों के लोगो को शामिल किया गया था। इसमें चौंकाने वाले नतीजे सामने आए। इस सर्वे से पता चला की गालियां सिर्फ पुरुष नहीं, बल्कि महिलाएं और कॉलेज जाने वाली लड़कियां भी देती हैं। खास बात ये सामने आई कि लगभग 30% लड़कियां, लड़कों से ज्यादा गालियां देती हैं। स्कूल और कॉलेजों में भी गालियों का चलन तेजी से बढ़ रहा है। यानी अब गाली देना महज लड़कों की आदत नहीं रही, लड़कियां भी इसमें बराबरी कर रही हैं। सवाल: सर्वे के लिए किन बातों का रखा गया ध्यान? जवाब: इस सर्वे का नेतृत्व महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन के फाउंडर डॉ. सुनील जगलान ने किया। सुनील बताते हैं- इसके लिए गाली बंद घर अभियान’ सर्वे 11 साल तक चला और इसमें करीब 70,000 लोगों को शामिल किया गया। इसमें युवा, माता-पिता, पुलिसकर्मी, टीचर्स, बिजनेसमैन और समाज के अलग-अलग वर्गों के लोग शामिल थे। गाली बंद घर अभियान’ का मकसद सिर्फ गालियों पर रोक लगाना नहीं था, बल्कि सभ्य भाषा को प्रोत्साहित करना, परिवारों में संवाद बेहतर करना और बच्चों को अच्छे संस्कार देना भी इसका हिस्सा था। इसके तहत 60 हजार से ज्यादा जगहों पर “गाली बंद घर” चार्ट लगाए गए, ताकि लोग रोज देखकर अपनी भाषा पर नियंत्रण रखें और बातचीत का तरीका सुधार सकें। सवाल: गाली को लेकर क्या कहता है साइंस, क्यों देते हैं लोग गाली? जवाब: जब गुस्सा, दुख या दर्द ज्यादा बढ़ता है तो इंसान तुरंत कोई तेज शब्द बोलकर अपनी भड़ास निकालना चाहता है। गाली यहां “इमोशनल शॉर्टकट” की तरह काम करती है—मतलब तुरंत तनाव हल्का करने का तरीका। इसे कैथार्सिस इफेक्ट कहा जाता है—यानी गुस्सा या भड़ास निकालकर इंसान कुछ देर के लिए हल्का महसूस करता है। लेकिन यह राहत स्थायी नहीं होती। अगर गालियां बार-बार बोली जाएं तो यह धीरे-धीरे आदत का रूप ले लेती हैं, जो आगे चलकर सामाजिक रिश्तों और मानसिक संतुलन दोनों पर नकारात्मक असर डाल सकती है। वैज्ञानिक रिसर्च बताते हैं कि गाली देने पर शरीर में एड्रेनालाईन निकलता है, जो स्ट्रेस कम करने और दर्द सहने की क्षमता बढ़ाने में मदद करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कील (यूके) के एक स्टडी में देखा गया कि जब लोगों ने हाथ बर्फ के पानी में डाले, तो गाली देने वाले लोग ज्यादा देर तक हाथ रख पाए, जबकि बिना गाली दिए लोग जल्दी हार मान गए। सवाल: कब हुई थी गाली देने की शुरुआत? जवाब: आदिमानव युग यानी लगभग 2.5 मिलियन वर्ष पहले जब इंसानों के पास बोलने के लिए लैंग्वेज नहीं थी, तब वो गुस्सा या डर दिखाने के लिए चिल्लाते थे। दांत पीसते या अजीब आवाज निकालते थे। इसे गालियों का सबसे पहला रूप माना जा सकता है। हालांकि कई पुराने साहित्य में भी इसका जिक्र मिलता है। ग्रीक और रोमन लेखन में अपमानजनक लैग्वेंज के कई उदाहरण मौजूद हैं। वहीं, संस्कृत ग्रंथों में साफ चेतावनी दी गई है कि इंसान को “अभद्र भाषा” से बचना चाहिए। हालांकि प्राचीन भारत में गालियों का सीधा उल्लेख तो नहीं मिलता, लेकिन शास्त्रों में हमेशा “असभ्य या अशिष्ट भाषा” से बचने की सलाह दी गई है। मुगल और ब्रिटिश काल के दौरान क्षेत्रीय भाषाओं में गालियों का तेजी से विकास हुआ, जिनमें जाति, लिंग और परिवार को निशाना बनाने वाले शब्द सबसे आम थे। आज की हिंदी, पंजाबी, मराठी, तमिल और भोजपुरी जैसी भाषाओं की गालियां भी उसी दौर की सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से निकली मानी जाती हैं। हालांकि धार्मिक ग्रंर्थों में गाली को गलत बताया गया है… सवाल: क्यों देते है लोग मां-बहन की गाली? जवाब: सोशियोलॉजिस्ट डॉ. अनुराग द्विवेदी का कहना है कि अक्सर व्यक्ति अपनी शिक्षा और विवेक को पीछे छोड़कर घर-परिवार और आसपास के माहौल से सीखी हुई चीजों को अपना लेता है। धीरे-धीरे वह इन्हें सामान्य व्यवहार समझने लगता है। हालांकि इसकी दो थ्योरी है। एक तो कई बार लोग अपना प्रेम भी दिखाते हैं। उदाहरण के तौर पर वाराणसी में हर बात गाली से ही शुरू होती है और गाली पर खत्म। वहीं, अगर कोई औपचारिक मंच से सबसे सामने मां-बहन की गाली देता है तो ये भड़ास निकालने वाली बात है। अनुराग कहते हैं कि गाली देना बिल्कुल अनुचित है। यह न सिर्फ असंस्कारी व्यवहार माना जाता है, बल्कि सार्वजनिक तौर पर भड़ास निकालने जैसा है, जो समाज में गलत संदेश देता है। हालांकि समाज में अब गालियां नार्मल हो चुकी है। पुरुष से लेकर महिला तक सब गाली देते है। कई बार लोग अपनी हद तक भूल जाते हैं। सवाल: गाली देने पर क्या है कानून में सजा का प्रावधान? जवाब: देश में गाली-गलौज पर IPC की कुछ धाराएं लागू होती हैं, जो यूपी में भी लागू होती हैं। …………….. ये खबर भी पढ़ें… विधायकों की गालियों का वीडियो देखा? हर दूसरा आदमी गालीबाज:सर्वे बता रहा एमपी में 28% लड़कियां भी देती हैं गाली; भोपाल पहले, इंदौर तीसरे नंबर पर देश और प्रदेश की सियासत में इस समय गाली ट्रेंड में है। बिहार से शुरू हुआ ये ट्रेंड मध्यप्रदेश में भी जोर पकड़ रहा है। कांग्रेस नेताओं की गाली का जवाब बीजेपी की तरफ से भी गाली से ही दिया जा रहा है। सीहोर के विधायक सुदेश राय ने प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस के नेताओं को मां की गाली दी। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो कांग्रेस नेताओं ने बीजेपी को आड़े हाथों लिया। हरियाणा के रोहतक स्थित महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सुनील जागलान ने 11 साल पहले ये सर्वे शुरू किया था, जिसके नतीजे इसी साल जारी हुए हैं। एमपी के 55 जिलों के 8400 लोगों पर सर्वे किया गया। सर्वे में ये भी निकलकर आया कि एमपी का हर दूसरा व्यक्ति गालीबाज है। गाली देने में लड़कियां भी पीछे नहीं है। पढ़िए पूरी खबर…
यूपी में सबसे ज्यादा कानपुर वाले देते हैं गाली:टॉप 10 शहरों में लखनऊ और प्रयागराज; चौथी क्लास के बच्चे भी देते हैं गालियां
