उत्तर प्रदेश के लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) में उठे भ्रष्टाचार के मामले ने एक बार फिर से विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं। ठेका देने में अनियमितताओं के मामले में तीन अभियंताओं को हटा दिया गया है, जिनमें दो अधीक्षण अभियंता और एक मुख्य अभियंता शामिल हैं। ये सभी अभियंता अब प्रमुख अभियंता कार्यालय से संबद्ध कर दिए गए हैं। यह कार्रवाई तब हुई है जब पूरे विभाग की जिम्मेदारी सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास है।
समाचार सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, देवीपाटन मंडल में लंबे समय से ठेका देने में विभिन्न अनियमितताएं हो रही थीं। कुछ अभियंता निश्चित दर से कम पर टेंडर प्राप्त कर अपने चहेते ठेकेदारों को काम दिला रहे थे। इस संदर्भ में बहराइच के एमएलसी पद्मसेन चौधरी ने शिकायत की थी। उनका आरोप था कि मुख्य अभियंता अवधेश चौरसिया और अधिशासी अभियंता भगवान दास ने शासन पर आरोप लगाते हुए अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था। जब मामला मुख्यमंत्री के समक्ष पहुंचा, तो उन्होंने इसकी विस्तृत जांच के आदेश दिए।
जांच के परिणामस्वरूप, आरोपित अभियंताओं को पद से हटा दिया गया। विशेष तौर पर, अब इन्हें प्रमुख अभियंता कार्यालय से संबद्ध किया गया है। इसके अलावा, नई तैनातियों में मुख्य अभियंता अखिलेश कुमार को पीएमजीएसवाई मेरठ से देवीपाटन गोंडा क्षेत्र में स्थानांतरित किया गया है, और अधीक्षण अभियंता योगेंद्र सिंह को गोंडा वृत्त में तैनात किया गया है। यह कार्रवाई अब तक के सबसे बड़े मामलों में से एक मानी जा रही है, जिसे विभाग में भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाया गया कठोर कदम माना जा रहा है।
प्रहरी पोर्टल के माध्यम से टेंडर के प्रबंधन की प्रक्रिया में भी कई धारणा जा रही हैं। 10 लाख रुपये से ज्यादा के काम के लिए ऑनलाइन टेंडर मांगे जाते हैं और यह प्रक्रिया काफी अपारदर्शी मान जाती है। सूत्रों के अनुसार कुछ अभियंता जानबूझकर अन्य फर्मों को टेंडर से बाहर करने के लिए शिकायतें दर्ज कराते थे। लोक निर्माण विभाग से जुड़ी इस स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय ने अन्य स्थानों पर भी टेंडर के प्रबंधन की जांच करने का निर्णय लिया है।
ठेकेदार संघ के अध्यक्ष शरद सिंह ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर प्रहरी ऐप के माध्यम से हो रही अनियमितताओं की शिकायत की है, जिसमें आरोप है कि कुछ लोग जानबूझकर अपने चहेतों को टेंडर देने में शामिल हैं। इसके अलाव, यह भी सुनने में आ रहा है कि विभाग में एक रिटायर अफसर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर विभिन्न गतिविधियां संचालित कर रहा है, जो न केवल विभाग के लिए बल्कि राज्य सरकार के लिए भी चिंता का विषय है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ रहे इन कदमों के बावजूद, यह स्पष्ट है कि ऐसे मामलों में सुधार लाने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री के नियंत्रण में होने के बावजूद, यदि विभाग में भ्रष्टाचार का यह सिलसिला जारी रहता है, तो इससे राज्य की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इस मामले की व्यापकता से यह भी साफ हो जाता है कि सुधार की दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि एसी प्रवृत्तियों को रोका जा सके।