मैं आध्यात्म के उद्देश्य से सालबनी गांव आया था। यहां की ज़मीन बंजर थी, लोग खेती से दूर थे। तब लगा कि किसानों को खेती के लिए प्रेरित करना जरूरी है। यहां की जमीन काफी बंजर रहने के कारण खेती की संभावना बहुत कम थी। आसपास के किसानों ने बताया कि यहां किसी तरह की खेती नहीं हो सकती है। मैंने ठाना कि यहां खेती करते किसानों को प्रेरित करना जरूरी है। इस दौरान कई तरह के फसल तथा सब्जी की खेती शुरू की। इसमें यहां के भूमि पर परवल का उत्पादन अच्छा हुआ। परवल उत्पादन पर किया फोकस उसके बाद परवल के उत्पादन पर फोकस शुरू किया गया। समय के साथ कृषि वैज्ञानिकों की मदद से परवल की जैविक खेती में नई मिसाल कायम की, बल्कि एक बंजर भूमि को कृषि नवाचार और ग्रामीण आत्मनिर्भरता का केंद्र बना दिया। इस स्थान का नाम महामिलन आश्रम दिया गया। अब जैविक और समेकित खेती का केंद्र बन चुका है। वर्ष 2000 से परवल की जैविक खेती की शुरुआत की थी। वे एमएस-1, एमएस-2 और शरण अलंकार किस्म के परवल उगाते हैं। आश्रम की जमीन पर आठ महीने उगते हैं परवल आश्रम की दो बीघा भूमि में आठ महीने परवल की खेती होती है, जिससे लगभग तीन लाख रुपए की आमदनी होती है। इसके अतिरिक्त, डेढ़ लाख रुपए का परवल चारा (नर्सरी) भी स्थानीय किसानों को बेचा जाता है। परवल के अलावा आश्रम में मद्रासी ओल, आलू, तरबूज, पपीता, करैला, गेंदा फूल और सरसों जैसे फसल भी उगाए जा रहे हैं। इन प्रयोगों से न केवल भूमि की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि किसानों को सालभर आय के विकल्प भी मिलते हैं। कृषि प्रशिक्षण केंद्र बना आश्रम सालबनी आश्रम अब कृषि प्रशिक्षण केंद्र भी बन चुका है। हर साल झारखंड के विभिन्न जिलों से आए 150 से 200 किसान यहां परवल की खेती का प्रशिक्षण लेते हैं। इनमें से कई किसान अपने क्षेत्रों में सफल खेती कर रहे हैं और आत्मनिर्भर बन चुके हैं। यहां से प्रशिक्षण लेकर कई किसानों ने परंपरागत खेती से अलग व्यवसायिक एप्रोच के साथ खेती शुरू की। किसानों से अक्सर कहता हूं- संकल्प और श्रम का कोई विकल्प नहीं झारखंड के दूर-दराज़ के किसान यहां आकर सीख रहे हैं कि बंजर भूमि भी संकल्प और श्रम से हरियाली में बदली जा सकती है। मैं बाहर से आए किसानों को कई उपयोगी टिप्स देता हूं। जैसे मिट्टी कैसी होनी चाहिए, उसमें खाद कितना और कब डालना चाहिए। पटवन कैसे करें। कई किसानों ने यह भी बताया कि वह बजट से अधिक खेती में लगाया पर उस हिसाब से आय नहीं हुई। मैं उन्हें अक्सर कहता हूं कम पैसे खर्च कर कैसे फसलों से अधिक आय प्राप्त की जा सकती है। जानिए… कौन हैं सुखदेव महाराज घाटशिला प्रखंड के सालबनी आश्रम के संचालक ब्रह्मचारी सुखदेव महाराज (54) कृषि के साथ-साथ सामाजिक दायित्व भी निभा रहे हैं। आश्रम में 25 निर्धन बच्चों का पालन-पोषण और शिक्षा मुफ्त कराई जाती है। उनका प्रयास खेती से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का है। सालबनी आश्रम सिर्फ एक आध्यात्मिक केंद्र नहीं, बल्कि जिले का कृषि नवाचार और ग्रामीण विकास का आदर्श मॉडल बन चुका है। इन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है। शादी नहीं की और आश्रम में रहे रहे बच्चों को ही अपना संसार मानते हैं।
घाटशिला के सुखदेव महाराज करते हैं समेकित खेती:बंजर जमीन में किया प्रयोग, अब परवल उत्पादन से ग्रामीणों को दे रहे नई दिशा
