52 ज्योतिर्लिंगों में से एक है स्वयंभू लोधेश्वर महादेवा का यह शिवलिंग

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52 ज्योतिर्लिंगों में से एक है स्वयंभू लोधेश्वर महादेवा का यह शिवलिंग

बाराबंकी, 26 फ़रवरी (हि.स.)। लोधेश्वर महादेवा में स्थित शिवलिंग के बारे में यहां के विद्वानों ने बताया कि एक लोध स्त्री अपनी गायों को चराने आया करती थी। उन गायों के झुंड में एक श्यामा नामक गाय थी। वह प्रत्येक दिन झुंड से गायब हो जाती और एक स्थान पर अपना दूध गिराती थी। यही क्रम चलता रहा तो स्त्री के मन में यह विचार आया कि मेरी श्यामा गाय कहां जाती है। शाम का दूध भी नहीं देती है। कोई सय बाधा तो नहीं है। जिसका शिकार मेरी श्यामा हो गई। यह सोचकर उसने आगे से उस पर ध्यान रखने की सोची।

अगले दिन सुबह जब गायों के झुंड से श्यामा चली तो बृद्ध स्त्री भी चुपके-चुपके उसके पीछे चल दी। आगे जाकर देखती है कि श्यामा एक झाड़ी के पीछे जाकर अपना दूध गिरा रही है। स्त्री ने उस स्थान को देखा व शाम को अपनी गायों को लेकर आई और लोगों से बताया। किसी ने उसकी बातों पर विश्वास नहीं किया। परंतु रात में भगवान शंकर ने स्वयं दर्शन देकर कहा कि तुम्हारी श्यामा गाय मुझे अपना दूध प्रतिदिन अर्पित करती है। यह तुम्हारा सौभाग्य है। तुम उस गाय की मालकिन हो। मेरा आशीर्वाद सदा तुम पर बना रहेगा। जब मैं प्रकट होऊंगा तो उसमें तुम्हारा पूर्ण सहयोग रहेगा। तुम्हारी कीर्ति अमर हो जाएगी।

ब्राह्मण सिरू अवस्थी लोधेराम के पिताजी एक साधारण कृषक थे। उनके कोई संतान न थी। यह अपने वंश को लेकर बहुत चिंतित रहा करते थे। एक दिन उसी स्त्री से मुलाकात हुई। उन्हाेंने पंडित जी की उदासी का कारण पूछा। उन्होंने कहा कि मेरी कोई संतान नहीं है। मेरे पुत्र होते हैं परंतु कोई बचता नहीं है। मैं बहुत परेशान हूं। मेरे बाद मेरा वंश नष्ट हो जाएगा। यह सुनकर उक्त महिला ने उससे कहा कि भगवान शिव की कृपा से तुम्हारे चार पुत्र होंगे। पहले पुत्र जन्म लेते मुझे दान कर देना। उसके बाद तुम्हारा वंश बढ़ेगा फूलेगा फलेगा। पहले पुत्र के जन्म पर अवस्थी ने पुत्र को लोधी स्त्री को दे दिया। उन्होंने उसका पूरा संस्कार कर उसे लोधेराम का नाम दिया। ब्राह्मण का वंश चला और लोधेश्वर का प्रभाव हुआ। लोकमंगल हुआ। बाराह क्षेत्र अन्न धन यस से परिपूर्ण हुआ। इस क्षेत्र का महत्व शिव उत्पत्ति के कारण बना।

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