देवघर में दशहरा का त्योहार एक अनूठी परंपरा के साथ मनाया जाता है। यहां रावण दहन नहीं होता, बल्कि उसकी पूजा की जाती है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, रावण ने अपनी भक्ति से भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसी कारण बाबा बैद्यनाथ धाम की स्थापना हुई। पहले रावण और फिर बैद्यनाथ की पूजा बैद्यनाथ मंदिर में श्रद्धालु पूजा से पहले ‘श्रीश्री 108 रावणेश्वर बाबा वैद्यनाथ’ मंत्र का उच्चारण करते हैं। यहां पहले रावण और फिर बैद्यनाथ की पूजा होती है। बैद्यनाथ मंदिर के तत्कालीन सरदार पंडा भवप्रीता नंद ओझा ने रावण की महिमा पर देवघरिया भाषा में एक झूमर लिखा था। यह आज भी सांस्कृतिक धरोहर के रूप में गाया जाता है। रावण को सम्मान देने की यह विशेष परंपरा आज भी जीवित पंडा धर्मरक्षिणी सभा के पूर्व महामंत्री दुर्लभ मिश्र के अनुसार, देवघर का धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व रावण से जुड़ा है। इसलिए यहां दशहरे पर न तो रावण का पुतला जलाया जाता है और न ही उनकी बुराई का प्रदर्शन होता है। देवघर और आसपास के क्षेत्रों में रावण को सम्मान देने की यह विशेष परंपरा आज भी जीवित है। यहां दशहरा केवल बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व नहीं, बल्कि रावण की भक्ति और बैद्यनाथ धाम की स्थापना की कहानी को जीवंत रखने का प्रतीक भी है।
देवघर में नहीं होता रावण दहन, होती है उसकी पूजा:बैद्यनाथ धाम की स्थापना से जुड़ी है कहानी, श्रद्धालु मंत्र में लेते हैं दशानन का नाम
