किशनगंज का ऐतिहासिक खगड़ा मेला, जो कभी एशिया का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला था, अब अपनी पहचान खो रहा है। 1883 में खगड़ा एस्टेट के नवाब सैयद अता हुसैन खान ने सूफी फकीर बाबा कमली शाह की सलाह पर इसे शुरू किया था। इसका उद्देश्य स्थानीय रोजगार और व्यापार को बढ़ावा देना था। ब्रिटिश काल से चला आ रहा यह मेला सोनपुर मेले के बाद देशभर में प्रसिद्ध था। पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, श्रीलंका, मलेशिया और अफगानिस्तान जैसे देशों से व्यापारी यहां ऊंट, घोड़े, हाथी, गाय-बैल खरीदने आते थे। हालांकि, आजादी के बाद से इसकी लोकप्रियता कम होती गई है। अस्तित्व पर मंडरा रहा संकट वर्तमान में, मेला गेट का निर्माण न होने से इसके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। स्थानीय निवासी मनोज यादव के अनुसार, नगर परिषद ने कई साल पहले मेला गेट को ध्वस्त करने का फैसला किया था और एक भव्य नया गेट बनाने का वादा किया था। लेकिन, कई साल बीत जाने के बावजूद निर्माण कार्य शुरू नहीं हुआ है। मुख्य प्रवेश द्वार अस्पष्ट खगड़ा मेला ग्राउंड, जो रेलवे स्टेशन से मात्र आधा किलोमीटर दूर है, अब कूड़े-कचरे के ढेर में बदल गया है। स्थानीय निवासी धनंजय पंडित ने बताया कि गेट न होने के कारण मुख्य प्रवेश द्वार अस्पष्ट हो गया है, जिससे लोगों को मेले के प्रवेश रास्ते को लेकर भ्रम होता है। पहले गेट से ही मेले की शुरुआत का एहसास होता था। विदेशी व्यापारी आते थे सामाजिक कार्यकर्ता अजीत दास ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि एक समय था जब यहां विदेशी व्यापारी आते थे, लेकिन अगर अब सुधार नहीं हुआ, तो अगली पीढ़ी इसे भूल जाएगी। दास ने अपील की है कि प्रवेश द्वार को स्पष्ट कर एक भव्य गेट का निर्माण कराया जाए। फिलहाल, मेले का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है।
किशनगंज का ऐतिहासिक खगड़ा मेला खतरे में:नगर परिषद के वादों के बावजूद गेट निर्माण ठप, विदेशों से व्यापारी आते थे खरीदारी करने
