आस्था, उल्लास और जयकारों से गुंजा​​​​​​​ थावे मंदिर:गोपालगंज के थावे भवानी दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब, स्कंदमाता की पूजा कर मांगा सौभाग्य

आस्था, उल्लास और जयकारों से गुंजा​​​​​​​ थावे मंदिर:गोपालगंज के थावे भवानी दरबार में उमड़ा आस्था का सैलाब, स्कंदमाता की पूजा कर मांगा सौभाग्य
Share Now

गोपालगंज में शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन मां दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की पूजा की गई। इस मौके पर प्रसिद्ध थावे दुर्गा मंदिर में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। सुबह मंगला आरती के बाद से ही माता के दर्शन के लिए भक्तों की लंबी कतारें देखने को मिली। श्रद्धालु मंगला आरती से पहले ही रात से मंदिर के बाहर जुटने लगे थे। आरती संपन्न होने के बाद भक्तों ने मां के अलौकिक रूप के दर्शन किए। और अपने परिवार के सौभाग्य की कामना की। मां के दर्शन को दूर दूर से आते हैं भक्त नवरात्र के दौरान गोपालगंज के अलावा बिहार के कई जिलों से श्रद्धालु थावे दुर्गा मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर परिसर में भक्तों की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं, ताकि वे आसानी से मां के दर्शन कर सकें। शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। इस वर्ष नवरात्रि 10 दिन की है। चतुर्थी तिथि में वृद्धि के कारण मां के चौथे स्वरूप की पूजा 25 और 26 सितंबर दोनों दिन की गई थी। संतान की प्राप्ति के लिए होती है स्कंदमाता की पूजा मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता कहा जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इनकी पूजा से भक्तों को संतान की प्राप्ति होती है और वे अपने बच्चों को खुश व स्वस्थ देख पाते हैं। स्कंदमाता अपने भक्तों पर पुत्रवत स्नेह लुटाती हैं और उनकी कृपा से जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं। स्कंदमाता को पद्मासना देवी भी कहा जाता माता स्कंदमाता की गोद में भगवान कार्तिकेय विराजमान हैं। वे कमल के आसन पर बैठी हैं, इसलिए उन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। उनका वाहन सिंह है, जो शक्ति और साहस का प्रतीक है। स्कंदमाता को गौरी, माहेश्वरी, पार्वती और उमा जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है। इनकी पूजा से संतान सुख, मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के योग बनते हैं। आईए जाने थावे माता मंदिर का इतिहास माता की कहानी बिहार के गोपालगंज के थावे में मां दुर्गा को समर्पित मंदिर से जुड़ी है, जिसमें राजा मनन सिंह के अहंकारी स्वभाव के कारण राज्य में अकाल पड़ने से शुरू होती है। लेकिन एक दलित भक्त रहषु भगत की सच्ची भक्ति और मां कामाख्या के थावे आने की कथा है। रहषु भगत मो के अन्नय भक्त थे। वो माता के प्रति अथाह भाव रखते थे। उन्हीं की भक्ति से प्रसन्न होकर मां ने उन्हें और क्षेत्र को अकाल से बचाया था। मां की इस कृपा के बाद थावे माता मंदिर की स्थापना हुई। भक्त के नाम से जानी जाती हैं मां थावे की भवानी को थावेवाली मां, सिंघासिनी देवी, या रहशु भवानी के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर एक चमत्कारी शक्तिपीठ है, जहां देवी मां असम के कामाख्या से अपने परम भक्त रहशु भगत की प्रार्थना पर आईं थीं। मंदिर में देवी के अलावा रहषु भगत का भी मंदिर है, जहां मां के कंगन सहित हाथ निकले हुए दिखाई देते हैं।


Share Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *