GSI रिपोर्ट में दावा- उत्तराखंड के पहाड़ खतरे में:राज्य का 22% हिस्सा हाई लैंडस्लाइड जोन में; केदारनाथ मार्ग पर 51 डेंजर जोन

GSI रिपोर्ट में दावा- उत्तराखंड के पहाड़ खतरे में:राज्य का 22% हिस्सा हाई लैंडस्लाइड जोन में; केदारनाथ मार्ग पर 51 डेंजर जोन
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उत्तराखंड के पहाड़ अब गंभीर खतरे में हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार राज्य का लगभग 22% हिस्सा हाई लैंडस्लाइड जोन में है। इसमें चमोली, रुद्रप्रयाग, टिहरी और उत्तरकाशी जिले हैं, जहां करीब 15 लाख लोग रहते हैं। यहां हर साल नई-नई दरारें, टूटती सड़कें व उफान मारती नदियां आपदा का संकेत देती रहती हैं। रिपोर्ट बताती है कि राज्य का 32% हिस्सा मीडियम और 46% हिस्सा कम खतरे में है। यानी करीब पूरा राज्य भूस्खलन की जद में है। भूस्खलन पर संसद में पेश रिपोर्ट में GSI ने 91,000 भूस्खलनों का डेटा जुटाया है। केदारनाथ धाम तक का सफर भी अब बेहद खतरनाक हो गया है। रुद्रप्रयाग जिले में हाईवे पर 51 डेंजर जोन बन चुके हैं, जिनमें से 13 इस साल मानसून में बने हैं। पिछले 5 साल में 3,300 से ज्यादा भूस्खलन, 250 मौतें इस मानसून सीजन 120 लोगों की मौत इस मानसून में प्रदेश को तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ, 120 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और 150 लोग लापता हैं। पांच हजार से अधिक घर क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इन इलाकों में ऑल वेदर रोड, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और बेकाबू निर्माण से खतरा और बढ़ रहा है। विकास योजनाओं का वैज्ञानिक आकलन जरूरी भूगर्भ वैज्ञानिक डॉ. एसपी सती कहते हैं- विकास योजनाओं का वैज्ञानिक आकलन जरूरी है। हिमाचल का 29% क्षेत्र भी उच्च भूस्खलन खतरे में है। लद्दाख और नागालैंड के 21-21% हिस्से पर भी यही संकट मंडरा रहा है। रिपोर्ट में सुझाव है कि संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान कर उन्हें जोनिंग नियमों के तहत विकसित करें और ढलानों को स्थिर बनाने के उपाय किए जाएं। वो 14 कारण, जिससे ये हालात पैदा हुए 1. पहाड़ों की चट्टानें कमजोर और टूटी-फूटी हैं, इसलिए बहुत जल्दी खिसक जाती हैं। 2. बहुत तेज या लंबी बारिश होने के कारण मिट्टी पानी से भरकर फिसल जाती है। 3. बादल फटना और थोड़े समय में ही भारी बरसात ढलानों को तोड़ देती है। 4. सड़क बनाने के लिए पहाड़ को खड़ा काटने से ढलान अस्थिर हो जाती है। 5. नदियां नीचे से किनारा काटती हैं, तो ऊपर की जमीन ढह जाती है। 6. निर्माण का मलबा ढलान पर फेंकने से वजन बढ़ता है। पानी का रास्ता रुक जाता है। 7. जंगल कटने से पेड़ों की जड़ें नहीं बचतीं, मिट्टी की पकड़ कमजोर हो जाती है। 8. बार-बार छोटे भूकंप या से ढलान ढीली पड़ जाती है। 9. ऊंचाई पर बर्फ जमना-पिघलना (ठंड–गर्मी) चट्टानों में दरारें बढ़ा देता है। 10. ढलानों का पानी सही तरह बह न पाए तो मिट्टी गीली होकर बह जाती है। 11. बिना योजना के भारी इमारतें, होटल और पार्किंग से ढलानों पर ज्यादा बोझ। 12. खनन, ब्लास्टिंग और सुरंग खोद जाने से जमीन हिलती और टूटती रहती है। 13. जलविद्युत परियोजनाएं स्थानीय भू-जल व ढलान की स्थिति को बदलती हैं। 14. जलवायु परिवर्तन से चरम बारिश जैसी घटनाएं बढ़ी हैं। मोड़ों पर जाल न होने से ढलान फिसलता है। स्रोत: केंद्र की आपदा प्रबंधन एजेंसियां और उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से मिली जानकारियां शामिल हैं। उत्तराखंड में इस सीजन बादल फटने की घटनाएं… 17 सितंबर- नंदानगर घाट चमोली जिले के नंदानगर घाट में 17 सितंबर की रात बादल फटा था। इस दौरान 20 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी। बादल फटने के कारण नंदानगर घाट इलाके के 6 मकानों में मलबा और पानी भर गया। इसमें 9 लोगों की मौत हो गई थी। 16 सितंबर- देहरादून देहरादून में 16 सितंबर को बादल फटा था। इससे देहरादून जिले में कई पुल टूट गए। मालदेवता में सोंग नदी में 5 लोग बह गए, विकास नगर में टोंस नदी में पानी का बहाव अचानक तेज होने से मजदूरों से भरी एक ट्रैक्टर-ट्रॉली नदी में बह गई। तमसा नदी के किनारे बने टपकेश्वर महादेव मंदिर में पानी भर गया। यहां मौजूद दुकानें बह गईं। 22 अगस्त- थराली उत्तराखंड में चमोली जिले के थराली में 22 अगस्त को बादल फटा था। इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। हादसा रात 1 से 2 बजे के बीच हुआ। आसपास के दो गांव सागवाड़ा और चेपड़ों में काफी नुकसान हुआ। थराली तहसील मुख्यालय के एक किलोमीटर के दायरे में कई जगहों पर तबाही मच गई क्योंकि स्थानीय नदियों का जलस्तर तेजी से बढ़ गया। 5 अगस्त- धराली उत्तरकाशी जिले के धराली में 5 अगस्त को दोपहर 1.45 बजे बादल फट गया था। खीर गंगा नदी में बाढ़ आने से 34 सेकेंड में धराली गांव जमींदोज हो गया था। इसमें 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। ———————


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