झारखंड में हर साल लाखों लोग मरते हैं, लेकिन सरकार को पता ही नहीं कि वे किस बीमारी से मरे हैं। झारखंड में वर्ष 2022 में कुल 1,46,318 मौतें दर्ज हुईं, लेकिन इनमें से सिर्फ 14,165 मौतों का ही मेडिकल सर्टिफिकेशन हुआ। जिन मरीजों का मेडिकल सर्टिफिकेशन हुआ, उसमें से सिर्फ 37 प्रतिशत (5241) को ही अंतिम समय में इलाज मिल सका। इस तरह झारखंड के अस्पतालों में मरने वाले मरीजों में से सिर्फ 9.7 प्रतिशत मौत का कारण सरकार को पता है। जबकि 90.7% मौतों का कारण प्रदेश के सरकारी महकमे के रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं है। सरकार व आम लोगों को यह पता ही नहीं है कि मौत की असली वजह क्या थी। अब सवाल ये उठता है कि जब मौत का कारण ही नहीं पता है, तो बीमारियों से लड़ने की नीति सरकार बना कैसे रही है। चालू वित्तीय वर्ष में झारखंड सरकार ने स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा और परिवार कल्याण के लिए कुल 7,407 करोड़ 50 लाख 86 हजार रुपए का बजट आवंटित किया है। हाल ही में जारी रजिस्ट्रेशन ऑफ बर्थ्स एंड डेथ्स एक्ट-1969 सेक्शन 10(2) के तहत संचालित मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज ऑफ डेथ-2022 रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में दर्ज कुल मौतों में से सिर्फ 22.3% का ही मेडिकल सर्टिफिकेशन हुआ है। यानी 86.5 लाख में से सिर्फ 19.32 लाख मौतों का ही कारण डॉक्टरों ने प्रमाणित किया है। -शेष पेज 5 पर नुकसान… सही डेटा न हो तो योजनाएं नहीं बन पाती, बीमा क्लेम में परेशानी जब मौत का कारण प्रमाणित नहीं होता, तो सरकार को यह पता ही नहीं चलता कि किस बीमारी से सबसे ज्यादा लोग मर रहे हैं। इससे स्वास्थ्य योजनाएं और बजट सही दिशा में नहीं बन पाते। कोविड जैसी महामारी के दौरान भी कई मौतें रिपोर्ट नहीं हुईं, जिससे असली स्थिति छुपी रह गई। सही डेटा नहीं होगा तो अस्पताल, दवाइयां, डॉक्टरों की तैनाती जैसी योजनाएं गलत दिशा में जा सकती हैं। कई बार बीमा क्लेम, संपत्ति विवाद या सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में भी परेशानी आती है, क्योंकि मौत का प्रमाण-पत्र ही नहीं होता या उसमें कारण नहीं लिखा होता। कारण… सिर्फ 39% अस्पताल ही मौतों की सही वजह लिखते हैं झारखंड में कुल 354 अस्पतालों में से 278 ही इस योजना के तहत कवर हैं। इनमें से भी केवल 237 अस्पताल ही सही तरीके से डेटा रिपोर्ट कर रहे हैं। यानी 85.3 अस्पताल सर्टिफिकेशन प्रक्रिया में भाग ले रहे हैं। प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में अधिकतर मौतें घर पर या बिना डॉक्टर की देखरेख में होती हैं। जिससे सर्टिफिकेशन नहीं हो पाता। कई डॉक्टर फार्म 4/4 ए (मौत प्रमाण पत्र) फॉर्म सही से नहीं भरते या प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं लेते। निजी क्षेत्र में रिपोर्टिंग और सर्टिफिकेशन की मॉनिटरिंग बेहद कमजोर है। गोवा के पास 100% डेटा, उन्हें पता है किस बीमारी से ज्यादा जानें जा रहीं गोवा में ऐसा डेटा मिलने से स्वास्थ्य विभाग जान पाता है कि कौन-सी बीमारियां सबसे ज्यादा जान ले रही हैं। किस उम्र वर्ग या इलाके में मौतें ज्यादा हो रही हैं। कहां संसाधन भेजने की जरूरत है। इंफेक्शन रोग जैसे टीबी, डेंगू, मलेरिया अचानक बढ़ें या महामारी फैले तो विभाग के पास सटीक आंकड़े रहते हैं। मेडिकल सर्टिफाइड मौतें कैंसर 1.9% झारखंड में कुल रजिस्टर्ड मौतें चोटें- दुर्घटनाएं 3.5% 14165 किडनी फेल्योर 2.1 % 146318 संक्रमण 7.2% 9.7 % मौतों का कारण लिखा- उनमें सर्वाधिक हार्ट अटैक से झारखंड में 14 साल से कम उम्र के बच्चों में 17% मौतें दिल की बीमारी से। इस उम्र के बच्चों में निमोनिया, टीबी मौतों का दूसरा बड़ा कारण है। अन्य कारण 15.6% लीवर रोग 4.3% श्वसन तंत्र 18.1% हृदय रोग 43.8% जानिए… 2022 में कुल मौतों में से कितने डॉक्टरों से प्रमाणित
राज्य में 90.7% मौतों का असली कारण सरकार को पता ही नहीं
