जिला सूचना अधिकारी अहमद नदीम ने अनुसार शारीरिक रूप से दिव्यांग और आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से जुड़े सत्यवीर का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। सत्यवीर के पास आजीविका का साधन केवल एक छोटी सी सिलाई की दुकान थी, जिसमें मात्र दो मशीनें थीं और मासिक आय 5 से 6 हजार रुपये तक सीमित थी।ग्रामोत्थान (रीप) परियोजना से जुड़ने के बाद सत्यवीर के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया। दिव्यांग स्वयं सहायता समूह से जुड़कर उन्होंने एनआरएलएम की मदद से अपनी पहचान बनाई। परियोजना स्टाफ की ओर से आयोजित लगातार बैठकों ने उन्हें विभिन्न योजनाओं और लाभों के बारे में जागरूक किया।
परियोजना के तहत उनका व्यावसायिक बिजनेस प्लान तैयार किया गया। उन्हें 35,000 रुपये का अंशदान और बैंक से 20,000 रुपये का ऋण प्राप्त हुआ। इस सहयोग से सत्यवीर ने अपनी दुकान का विस्तार किया और अब उनके पास चार सिलाई मशीनें हैं। आज वह एक बड़ी दुकान से अपना व्यवसाय चला रहे हैं।