केस-1 : डॉ. पंकज जायसवाल, असली दादा : किशोरीलाल, दत्तक दादा : यशोमित्र। केस-2 : डॉ. पवन जायसवाल, असली दादा : किशोरीलाल, दत्तक दादा : यशोमित्र। केस-3 : डॉ. पुनीत जायसवाल, असली दादा : किशोरीलाल, दत्तक दादा : काशीराम। केस-4 : डॉ. अमित जायसवाल, असली पिता : रमेशचंद्र, दत्तक पिता : हरिशचंद्र। केस-5 : डॉ. श्याम मोहन जायसवाल, असली दादा : प्रसाद, दत्तक दादा : यशोमित्र। केस-6 : डॉ. सुनील जायसवाल, असली दादा : प्रसाद, दत्तक दादा : यशोमित्र। केस-7 : डॉ. अजय कुमार जायसवाल, असली दादा : प्रसाद, दत्तक दादा : यशोमित्र। केस-8 : डॉ. मनीष कुमार जायसवाल, असली दादा : रामप्रीत, दत्तक दादा : रामनाथ। ये गोरखपुर के एक ही परिवार के 8 सदस्य हैं। सभी पेशे से डॉक्टर हैं। सभी ने फ्रीडम फाइटर का आश्रित प्रमाणपत्र लगाकर MBBS में एडमिशन लिया। दरअसल, फ्रीडम फाइटर के असली, दत्तक बेटे-बेटी (गोद लिए) और उनके बच्चों (पोता, पोती, नाती, नातिन) को मेडिकल कॉलेजों में 2% आरक्षण मिलता है। इसलिए लोग गोदनामा और फ्रीडम फाइटर के आश्रित होने का प्रमाणपत्र बनवा लेते हैं। कई बार ये प्रमाणपत्र फर्जी होते हैं। पिछले महीने यूपी के चिकित्सा शिक्षा विभाग ने MBBS में 2025 में एडमिशन को लेकर 10 जिलों के 66 अभ्यर्थी ऐसे पकड़े, जिनके पास फ्रीडम फाइटर के आश्रित सर्टिफिकेट फर्जी थे। इस घटना के बाद जब दैनिक भास्कर ने खोजबीन की, तो गोरखपुर का ये परिवार मिला। इन्होंने 4 फ्रीडम फाइटरों के दत्तक बताकर सरकारी मेडिकल कॉलेजों में सीट हासिल की थी। एक ही परिवार के इतने सारे लोगों को फ्रीडम फाइटरों ने गोद क्यों लिया? क्या ये आरक्षण का फायदा उठाने के लिए किया? गोदनामा नियमानुसार है या फिर उसमें कोई तथ्य छुपाया है? इन सवालों के जवाब के लिए हमारी टीम ने 20 दिन तक यूपी के गोरखपुर और संतकबीरनगर में इन्वेस्टिगेशन किया। पढ़िए, पूरा खुलासा… हमने इन्वेस्टिगेशन के सेंटर पॉइंट फ्रीडम फाइटर यशोमित्र उर्फ वसोमित्र जायसवाल को चुना। क्योंकि, यशोमित्र के आश्रित यानी गोद लिए बेटे के परिवार में ही 5 डॉक्टर बने हैं। हमने गोरखपुर पहुंचकर यशोमित्र के दोस्तों, परिचितों, रिश्तेदारों और उनके वंशजों को खोजा तो हमें ये जानकारी मिली… इसके बाद हमने उन लोगों को खोजना शुरू किया, जो फ्रीडम फाइटर यशोमित्र के दत्तक बेटे और पोते बने हैं। इसमें हमें जो नाम मिला, वह है- रमेश चंद्र जायसवाल। ये यशोमित्र के दत्तक बेटे हैं। अब हमने रमेश के परिवार और यशोमित्र से उसके रिश्ते पर इन्वेस्टिगेशन किया। सबसे पहले रमेश के परिवार के बारे में समझते हैं… इस तरह हमें यशोमित्र के 2 परिवार मिले। पहला- जैविक यानी उसके असली वंशज। दूसरा- आश्रित यानी दत्तक बेटे और पोते। असली परिवार के लोग दुकानें चलाते हैं और गरीबी में दिन काट रहे। इनमें से किसी को भी आरक्षण का फायदा नहीं मिला। वहीं, दूसरी ओर दत्तक बेटे-पोते डॉक्टर बन गए और अब संपन्न हैं। इन्होंने आरक्षण का खूब फायदा उठाया। अब हमने यशोमित्र के असली बेटे और पोतों से मुलाकात की। हम गोरखपुर के नौसढ़ पहुंचे। यहां पंकज ट्रेडर्स नाम की दुकान पर हमारी मुलाकात यशोमित्र के बड़े बेटे सर्वजीत के बेटे दीपक से हुई। दीपक ने हमें गुमराह करने की कोशिश की… दीपक का पहला झूठ- मेरे पिता 3 भाई हैं
दीपक ने बताया- यशोमित्र के 3 बेटे हैं। मेरे पिता सर्वजीत, चाचा अभयजीत और रमेशचंद्र। हालांकि, वह रमेश के 4 बेटों के नाम नहीं बता पाया। दीपक ने कबूल किया कि फ्रीडम फाइटर के नाम पर काेई सुविधा नहीं मिली। हम पढ़े-लिखे नहीं हैं। इसलिए आश्रित सर्टिफिकेट के लिए अप्लाई नहीं किया। वहीं, सर्वजीत की पत्नी (दीपक की मां) अनारकली ने बताया कि हम लोगों ने बहुत अभावों में जीवन बिताया। जब तक ससुर और सास रहे, सरकार से फायदा मिला। लेकिन, उनके जाने के बाद आज तक हम लोगों को कोई फायदा नहीं मिला। बात करते-करते अनारकली भावुक हो जाती हैं। कहती हैं- हम लोगों को कोई पूछने नहीं आया। कोई सुविधा नहीं मिली। हम सरकार से यही मांग करते हैं कि हम लोगों को कोई सुविधा मिले। हमें तो सरकार ने भुला दिया। हम दूसरे दिन फिर दीपक की दुकान पर पहुंचे। यहां हमें एक व्यक्ति मिले। ये रमेश चंद्र हैं। रमेश कहते हैं- छोटे-छोटे थे हम लोग, अब इतना तो एक्चुअल नहीं बता पाएंगे। लेकिन, 1969 का मेरा जन्म है। पहले हम लोग संयुक्त रूप से रहते थे। फिर सब अलग हो गए। रमेश चंद्र का झूठ- मैं यशोमित्र का बड़ा बेटा हूं
रमेश चंद्र ने ऑन कैमरा कहा- मैं फ्रीडम फाइटर यशोमित्र का बड़ा बेटा हूं। चूंकि हमें अपने सोर्सेस से यह पता चल चुका था कि रमेश चंद्र, यशोमित्र का दत्तक पुत्र है। रमेश चंद्र ने हमें यह क्यों नहीं बताया? इससे हमें रमेश चंद्र पर शक हुआ। दूसरा पोता बोला- रमेश चंद्र ने हमारा आश्रित सर्टिफिकेट नहीं बनने दिया
रमेश के बारे ज्यादा जानकारी जुटाने के लिए हम यशोमित्र के छोटे बेटे अभयजीत के परिवार से मिलने खलीलाबाद पहुंचे। यहां से पता चला कि संतकबीरनगर में सिद्धिविनायक के नाम से कपड़ों की दुकान है। दुकान पर अभयजीत के बेटे अमित मिले। अमित ने हमें रमेश चंद्र के बारे में बताया… रिपोर्टर: यशोमित्र के कितने बेटे हैं?
अमित: रमेश का बड़े पिताजी सर्वजीत से दूर का रिलेशन रहा होगा। अब बड़े पिताजी तो हैं नहीं। मुझे पता है, रमेश ने बड़े पापा से कहा था- अगर अपने पिता यशोमित्र से कह देंगे कि गोदनामा दे दें, तो आपके रिलेशन और समाज का व्यक्ति आगे बढ़ जाएगा। उस समय इतनी समझ नहीं थी। कोई समझ नहीं पाया था कि ऐसे किसी को बेवकूफ बनाकर इतनी दूर तक अपना सिस्टम चला ले जाएंगे। उन्होंने हम लोगों का बहुत नुकसान किया। हर तरफ हम लोगों पर रोक-टोक की। हम लोगों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के वंशज होने पर कोई सुविधा नहीं है। न ही नौसढ़ यानी सर्वजीत के यहां, न ही यहां किसी को कोई सुविधा मिली है। सारा फायदा रमेश ने ही लिया है। रिपोर्टर: आप लोग बिजनेस कर रहे, लेकिन रमेश के बच्चे डॉक्टर हैं?
अमित: ये सब फ्रीडम फाइटर के कोटे से हुआ है। आपको पूरी हकीकत बता दें कि पहले इन्होंने अपने भाई को हमारे बाबा यशोमित्र का दत्तक पुत्र बनाया। फिर अपने भाई को हटाकर खुद कैसे दत्तक पुत्र बन गए, हमें कुछ नहीं पता। रिपोर्टर: हम लोगों से रमेश सच क्यों नहीं बोले?
अमित: आदमी जब ताकतवर होता है, तो दबाव बनाने की कोशिश करता है। अभी मेरे पिताजी का एक्सीडेंट हो गया। वे कोमा में हैं। उससे पहले रमेश ने मेरे पिताजी पर दबाव बनाकर जमीन का एग्रीमेंट करवा दिया। इसके बाद उसका पैसा भी बड़ी परेशानी से हम लोगों को मिला। गाेली तक चलवा दी। मैं शुरू से विरोध में था। यह आदमी सही नहीं है। आदमी सही होता, तो कहीं न कहीं हम लोगों का फायदा हुआ होता। रिपोर्टर: आपके बड़े पिताजी सर्वजीत का परिवार क्यों रमेश के दबाव में है?
अमित: वे लोग इसलिए दबाव में हैं, क्योंकि थोड़ा-बहुत स्वार्थ होगा। पहले तो उन लोगों ने विरोध किया था, तकरीबन 8-9 साल पहले। वह चाहता था कि हम लोगों का परिवार एक न हो। यही रमेश चाहता था। वह चाहता था कि अगला दबाव में रहेगा। अगर वह दबेगा नहीं, तो तन कर खड़ा हो जाएगा। इसलिए वह अपना वही पावर आजमा रहे हैं। रिपोर्टर: क्या वह राजनीति में हैं?
अमित: हां, फतेह बहादुर सिंह के साथ रहते हैं। एक बार सर्वजीत के परिवार ने विरोध किया, तो उन लोगों को डरकर घर तक छोड़ना पड़ा। रिपोर्टर: आप फ्रीडम फाइटर के वंशज हैं। शिकायत करेंगे, तो एक्शन हो जाएगा?
अमित: भैया, आप लोग विश्वास नहीं करेंगे। आज नहीं, करीब 15 साल पहले मैं फ्रीडम फाइटर का आश्रित प्रमाणपत्र बनवाने गया। फटकार कर भगा दिया। सब मिले हुए हैं। उनके बच्चों का सबका बन गया। हमारे परिवार में किसी का प्रमाणपत्र नहीं बना। न ही बड़े पिताजी सर्वजीत के यहां किसी बच्चे का बना है। रिपोर्टर: क्या आप लोगों को फ्रीडम फाइटर वंशज होने का कोई फायदा नहीं मिला?
अमित: हम लोगों का तो आज तक आश्रित प्रमाणपत्र नहीं बना है। और तो और रमेश ने अपने भाई का पेट्रोल-पंप पास करा लिया है। रिपोर्टर: लेकिन उनके भाई तो आश्रित हैं नहीं?
अमित: रमेशजी 4 भाई हैं। 2 भाई डॉक्टर हैं। एक भाई की चाय की दुकान यहां (संतकबीरनगर) पर थी। अब पेट्रोल पंप वगैरह खोल लिया है। उनके दोनों बच्चे डॉक्टरी पढ़ रहे थे। रिपोर्टर: आपके पास क्या प्रूफ है कि रमेश आपके सगे भाई नहीं? अमित: हां, मेरे पास बहुत प्रूफ हैं। अगर वह सबसे बड़े हैं, तो सबका डेट ऑफ बर्थ निकलवा लीजिए। उसी से पता चल जाएगा। रमेशजी के बच्चों की शादी का कार्ड है। उसमें उनके बाबा का नाम कुछ और लिखा है। रिपोर्टर: क्या उस कार्ड में यशोमित्र का नाम नहीं, रमेश के पिता की जगह नहीं लिखा है?
अमित: अरे, समाज में कार्ड बांटना है तो उसमें क्यों लिखेंगे? रिपोर्टर: रमेश आप लोगों के परिवार से कैसे कनेक्ट हो गए?
अमित: मेरे बड़े पिताजी सर्वजीत का ससुराल जुनिया में है। वहां हम लोगों के मामा लगे, वह सब ठेकेदारी का काम करते हैं। उस समय रमेशजी और मामा लोगों का एक गुट जायसवाल होने के नाते होता था। तब रमेश के बच्चों का एडमिशन होना था। वहीं कहीं बात छिड़ी कि हमारी बहन की ससुराल में जीजा के पिताजी फ्रीडम फाइटर हैं। हम बात कर ले रहे हैं। दस्तखत कर देंगे, हो जाएगा। बाबा से कहा गया कि वह भी परिवार के लोग हैं। कुछ भला हो जाएगा। वह भी जायसवाल, हम भी जायसवाल। क्या करना है? बस एक गोदनामा दे देना है। हमने इनको गोद लिया था और वह बन जाएंगे। यह बातचीत रमेशजी के भाई के लिए हुई थी। वह तो डॉक्टर बन गए। अब बाबा ने कैसे क्या किया, इस बारे में हम लोगों को बहुत जानकारी नहीं। उस समय हम लोगों का समय बहुत अच्छा नहीं था। बड़े पिताजी नौसढ़ में चाय की दुकान चलाते थे। आज हम लोग जो भी हैं, अपनी मेहनत की बदौलत हैं। न किसी का सपोर्ट मिला, न ही सरकार की कोई मदद मिली। मेरी एक बहन भी है। तब रमेश ने कहा था कि आपकी बिटिया की शादी हम अपने भाई से करा देंगे। वह डॉक्टर बन जाएगा। उन लोगों को लालच दिया गया। लेकिन, उसने शादी नहीं कराई। दोबारा कैसे उसके जाल में फंस गए, यह हम नहीं जानते। रिपोर्टर: क्या आप कह रहे हैं कि पहले रमेश के भाई दत्तक पुत्र बने फिर रमेश दत्तक पुत्र बन गए?
अमित: हां, फिर भाई को उन्होंने आउट कर दिया। फिर रमेश दत्तक पुत्र बन गए। अपना आश्रित प्रमाणपत्र बनवा लिया कि ये बड़े बेटे हैं। इसके बाद यह नया सिलसिला चल गया। रिपोर्टर: क्या आप लोगों ने कभी खोजने की कोशिश नहीं की कि कोई घपला है?
अमित: मैं बता रहा हूं कि 7 या 8 साल पहले हम दोनों परिवार इकट्ठा हुए थे। उस समय उनकी जांच भी चल रही थी। इनकी जांच हमेशा होती रहती है। कई बार ऐसा हुआ है। लेकिन, ऊपर से लेकर नीचे तक सभी मिले हुए हैं। अगर जांच सही से होती, तो अच्छे-अच्छे अधिकारी नप जाते। मेरी बुआ के लड़के का आश्रित प्रमाणपत्र बनाना था। इन्होंने नौटंकी की तो वह टाइट पड़ा। बोला हम एप्लिकेशन डालेंगे। तब रमेश के कहने पर प्रमाणपत्र बना। मतलब, अगर आश्रित प्रमाणपत्र बनवाना है तो किसी के कहने पर ही बनेगा। यहां सब बिके हुए हैं। रिपोर्टर: सर्टिफिकेट संतकबीरनगर से बनता है या गोरखपुर से?
अमित: बाबा यहीं रहते थे तो संतकबीरनगर से सर्टिफिकेट बनता है। यहीं से उनकी पेंशन आती थी। यहीं से आश्रित प्रमाणपत्र भी बनता है। रिपोर्टर: क्या रमेश सर्वजीत के परिवार को कोई आर्थिक फायदा देते हैं? क्योंकि आप लोग तो विरोध में हैं?
अमित: उनके परिवार को कोई फायदा नहीं है। लेकिन, जैसे हम लोगों का जमीन वाला मामला है तो वह बड़े-बड़े लोगों से जुड़े हैं। रमेश उनकी तरफ से हैं, तो यही सब फायदा है। रिपोर्टर: रमेश ने आप लोगों से कभी पैचअप करने की कोशिश नहीं की?
अमित: हम लोग तो शुरू से विरोध में हैं। रही बात बड़े पापा के परिवार की, तो उसने उन लोगों पर दबाव बनाया होगा। रिपोर्टर: आप लोगों ने कभी कोशिश नहीं की। आगे आपके बच्चे भी तो हैं?
अमित: हमने कई बार बड़े पापा के परिवार से कहा कि हम लोग बिजनेस कर रहे हैं। लेकिन, हमारे बच्चे भी तो हैं मगर रमेश ने प्रमाणपत्र बनने नहीं दिया। अगर हम लोग बनवाएंगे तो जांच होगी, जिसमें रमेश फंसेगा। अमित की बातचीत से पता चल गया था कि रमेश चंद्र ने गोदनामा बनवाकर दत्तक बेटे और पोते में आरक्षण का फायदा उठाया। साथ ही यशोमित्र के असली वंशज को इसका फायदा नहीं लेने दिया। अब हमने तमाम सवालों को लेकर रमेश चंद्र से बात की… बड़ा सवाल- क्या गोदनामा फर्जी है? जवाब मिला- हां, इसमें यशोमित्र को संतानहीन बताया
अब हमारे समाने सवाल था कि क्या गोदनामा फर्जी है? इसके जवाब के लिए हमने गोरखपुर के सीनियर वकील रविशंकर पांडेय से गोदनामे का एनालिसिस कराया। उन्होंने बताया यह गोदनामा नियमों के तहत नहीं बना है। रवि शंकर पांडेय के मुताबिक, हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण पोषण अधिनियम 1956 के तहत ही किसी भी बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया का पालन किया जाता है। रमेश चंद्र को गोद लेने का जो रिकॉर्ड है, उसमें पांच नियमों का पालन नहीं किया गया। ———————– भास्कर इन्वेस्टिगेशन की ये खबरें भी पढ़ें- महिलाएं कागजों पर ‘नेता’, कुर्सी पर पति का कब्जा:भास्कर टीम मिलने पहुंची तो पति बोले- हम ही सबकुछ संवैधानिक पदों पर महिलाओं को आरक्षण देने के बाद महिलाएं कितनी एक्टिव हुई हैं? क्या ये अपने क्षेत्र का काम खुद संभाल रही हैं? इन सवालों के जवाब के लिए दैनिक भास्कर की टीम ने कुशीनगर, गोरखपुर, सिद्धार्थनगर में 10 दिन तक इन्वेस्टिगेशन किया। हम कुशीनगर से 25 किमी दूर सेवरही ब्लॉक पहुंचे। ऑफिस में भीड़ थी। अंदर गए तो महिला ब्लॉक प्रमुख अनु तिवारी की कुर्सी खाली थी। पढ़िए पूरी खबर मंत्री-विधायकों के गांवों में भी नहीं पहुंचा ‘हर घर जल’:विधायक की मां हैंडपंप से भर रहीं पानी; यूपी के जलशक्ति मंत्री का गांव भी प्यासा ‘रामप्यारी देवी। उम्र 75 साल, लेकिन जोर लगाकर हैंडपंप से पानी भरने को मजबूर। रामप्यारी देवी कोई आम महिला नहीं। हमीरपुर के भाजपा विधायक डॉ. मनोज कुमार प्रजापति की मां हैं। इनके घर में जल जीवन मिशन की टोटी है, लेकिन पानी नहीं। पौथिया बुजुर्ग गांव विधायक डॉ. मनोज प्रजापति का पैतृक गांव है। सरकारी रिकॉर्ड में यहां जल जीवन मिशन का काम 100% हो गया है। अफसरों का दावा है कि यहां हर घर में पानी आ रहा है। पढ़ें पूरी खबर आपकी पूजा में केमिकल वाला नकली चंदन:यूपी में खिन्नी की लकड़ी पर परफ्यूम; ऐसे 100 कारखाने, कैमरे में देखिए ठगी ये लकड़ी होती है… खिन्नी की, इसमें कोई महक नहीं होती। इसमें कंपाउंड (केमिकल मिक्सचर) मिलाया जाता है चंदन का… फिर यह महकती है चंदन जैसी। जब जलइयो चंदन-सी खुशबू होगी। अगर इसमें असली चंदन की लकड़ियां मिला दें, तो पहचानना मुश्किल हो जाता है। हम ही लोग पहचान पाते हैं। ये हैं यूपी के चंदन के बड़े कारोबारी, लेकिन ये चंदन होता नकली है। ये खिन्नी की लकड़ी पर चंदन की खुशबू वाले परफ्यूम का स्प्रे करके ऐसा नकली चंदन बनाते हैं कि आम लोग पकड़ ही नहीं पाते। पढ़ें पूरी खबर
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