बहराइच जिले के महाराजगंज कस्बे में हालात धीरे-धीरे सामान्य हो रहे हैं, लेकिन वहां के लोगों के दिलों में अभी भी दंगों की गहरी छाप है। डॉ. आसिफ, जो यहां के एक अस्पताल के मालिक हैं, ने अपनी दुखद स्थिति को साझा करते हुए बताया, “दंगों से पहले हमारे पास रोज 20 से 25 मरीज आते थे। अब तो सुबह से शाम तक अगर एक मरीज आ जाए, तो भी यह अच्छा है। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो गई है कि बिल्डिंग का किराया भी नहीं निकल रहा। हम केवल ऊपरवाले की दया पर निर्भर हैं कि कब चीजें सुधरेंगी।” इस अस्पताल को छह महीने पहले हुई हिंसा में बुरी तरह से क्षति पहुंची थी, जहां लूटपाट के बाद आगजनी की गई थी।
दैनिक भास्कर की टीम ने हालात का जायज़ा लेने के लिए महाराजगंज का दौरा किया। यहां स्थिति सामान्य दिखाई दी, लेकिन दोनों समुदायों के बीच की दूरी साफ दिखी। लोग अब अपने धर्म के अनुसार दुकानों का चयन करने लगे हैं; हिंदू मुस्लिम की दुकानों से सामान नहीं खरीद रहे हैं और मुस्लिम भी ऐसा ही कर रहे हैं। यहां एक दुकान के मालिक मो. एहसान ने बताया, “हिंसा से पहले हमारी दुकान prosper थी, लेकिन अब वह समय पीछे छूट गया है। जबसे दंगा हुआ है, हम भी बाजार नहीं जा रहे हैं।”
इलेक्ट्रॉनिक्स के व्यापारी कपिल यादव के अनुसार, “बाजार में रौनक नहीं है। लोग अब दूर-दूर से खरीदारी के लिए बहराइच जा रहे हैं। प्रशासन ने शांति के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन इसका प्रभाव अदृश्य है।” वास्तव में, राम गोपाल के गांव से लोग अब महाराजगंज जाने में हिचक रहे हैं और सतर्कता बरत रहे हैं। राम गोपाल की पत्नी ने टिप्पणी की, “अब महाराजगंज का नाम सुनना भी गवारा नहीं लगता।”
दूसरी तरफ, डॉ. आसिफ ने सरकारी सहायता के अभाव की बात की। “मेरे अस्पताल में मरम्मत के लिए हम अब दूसरी बार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई सहायता नहीं मिली है। सरकार ने कहा कि हमारा अस्पताल अवैध है। आजकल केवल 25 प्रतिशत मरीज आ रहे हैं।” उन्होंने कहा कि उनके मरीजों के एक ऑपरेशन मशीन की कीमत 80-90 हजार रुपये थी, जो अब चोरी हो गई है। आसिफ ने बताया कि उनके बगल में स्थित हीरो मोटरसाइकिल शोरूम को भी आग के हवाले कर दिया गया था। 30 से अधिक वाहन नुकसान के शिकार हुए।
कुछ स्थानीय किसानों ने बताया कि हिंसा के बाद स्थिति बिगड़ी थी, लेकिन अब वे लोग अपनी सामान्य जिंदगी में लौट आए हैं। “बुद्ध सागर” नामक किसान ने कहा, “इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति की संभावना कम है। लोग अब धीरे-धीरे वापस लौट रहे हैं।” हालांकि, वहां के अल्पसंख्यक समुदाय के 14 घरों में तोड़फोड़ कर आगज़नी की गई थी, लेकिन एकमात्र हिंदू परिवार को छोड़ दिया गया। अब वे लोग भी पहले की तरह जीवन जीने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हर बार जब कोई गाड़ी रास्ते पर रुकती है, तो वे अभी भी आशंका में रहते हैं कि शायद सरकार की मदद आई है।
इस प्रकार, बहराइच में हिंसा के बाद का माहौल भले ही धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है, लेकिन समाज में दरारों की गहरी छाप अभी भी कायम है। लोग फिर से एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन अच्छे समीकरण स्थापित करने में समय लगेगा।