वृंदावन में संत प्रेमानंद महाराज 10 दिन बाद पदयात्रा पर निकले। महाराज की झलक पाकर भक्तों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े और हजारों की भीड़ जोर-जोर से ‘राधे-राधे’ का जयकारा लगाने लगी। प्रेमानंद महाराज 2 अक्टूबर से पदयात्रा नहीं कर रहे थे। केली कुंज आश्रम ने इसके पीछे उनके स्वास्थ्य का हवाला दिया था। हालांकि, इस दौरान वे आश्रम में ही एकांतिक वार्ता (भक्तों से बातचीत) करते रहे। रात 3 बजे आश्रम से निकले बाहर
रविवार तड़के 3 बजे संत प्रेमानंद महाराज केली कुंज आश्रम से बाहर निकले। उनकी एक झलक पाने को हजारों भक्त पहले से ही खड़े थे। महाराज को देखते ही भक्तों के चेहरे खिल उठे। भक्तों ने कहा, ‘जब से हमने सुना था कि महाराज जी की तबीयत खराब है, हम बहुत चिंतित थे। लेकिन अब उन्हें स्वस्थ देखकर मन को सुकून मिला। वे हम सबको आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ गए।’ 2 किमी पैदल चलकर जाते हैं महाराज
प्रेमानंद महाराज वृंदावन में श्रीकृष्ण शरणम् सोसाइटी से रमणरेती स्थित आश्रम हित राधा केली कुंज के लिए निकलते हैं। 2 किमी पैदल चलकर जाते हैं। उनके दर्शन के लिए रात को हजारों की संख्या में भक्त पहुंचते हैं। आम दिनों में यह संख्या करीब 20 हजार के करीब होती है। वीकेंड पर दर्शन करने वाले भक्तों की संख्या लाखों में पहुंच जाती है। वहीं, बड़े पर्वों पर 3 लाख से ज्यादा हो जाती है। अब पढ़ते हैं प्रेमानंद की बीमारी के बारे में 2006 में पेट में दर्द हुआ तो पता चला किडनी खराब हैं
प्रेमानंद महाराज को पॉलीसिस्टिक किडनी डिजीज की बीमारी है। इसकी जानकारी 19 साल पहले 2006 में उनको तब हुई जब उनके पेट में दर्द हुआ। वह कानपुर में डॉक्टर को दिखाने पहुंचे। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनको किडनी की आनुवांशिक बीमारी है। फिर वह दिल्ली गए। वहां एक डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनकी दोनों किडनी खराब हैं। जीवन सीमित है। इसके बाद वह वृंदावन आ गए। पहले वह काशी रहे और शिव भक्ति की। वृंदावन में उन्होंने राधा नाम का जप शुरू किया। तब से वह लगातार राधा नाम का जप कर रहे हैं। प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी किडनी का नाम कृष्णा और राधा रखा है। फ्लैट में ही होती है डायलिसिस
प्रेमानंद महाराज वृंदावन की श्री कृष्ण शरणम् सोसाइटी में रहते हैं। इस सोसाइटी में उनके 2 फ्लैट, 209 और 212 उनके पास हैं। इनमें से एक फ्लैट में वह रहते हैं। जबकि दूसरे फ्लैट में डायलिसिस का इंतजाम है। इसी फ्लैट में उनका डायलिसिस होता है। किडनी की बीमारी से जूझ रहे संत प्रेमानंद महाराज की पहले कभी-कभी डायलिसिस होती थी। फिर यह हफ्ते में होने लगी। इसके बाद कभी 3 दिन, कभी 5 दिन और कभी-कभी हर दिन होती है। डायलिसिस की यह प्रक्रिया 4 से 5 घंटे चलती है। ऑस्ट्रेलिया से आकर कर रहे महाराज जी की सेवा
कई डॉक्टर संत प्रेमानंद महाराज के भक्त हैं। ऑस्ट्रेलिया में हार्ट स्पेशलिस्ट एक डॉक्टर इस कदर प्रेमानंद से प्रभावित हुए कि वह अपनी प्रोफेसर पत्नी के साथ वहां से नौकरी छोड़कर वृंदावन आ गए। यहां की एक सोसाइटी में फ्लैट लेकर रहने लगे। यह डॉक्टर प्रतिदिन महाराज की चिकित्सा सेवा में जाते हैं और उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखते हैं। कौन-कौन महाराज को किडनी देने की जता चुका इच्छा, जानिए प्रेमानंद जी के बचपन से लेकर प्रसिद्ध संत बनने तक की कहानी… 13 साल की उम्र में प्रेमानंद महाराज ने घर छोड़ा
प्रेमानंद महाराज का कानपुर के नरवल स्थित अखरी गांव में जन्म और पालन-पोषण हुआ। यहीं से निकलकर वो इस देश के करोड़ों लोगों के मन में बस गए। उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे बताते हैं- मेरे पिता शंभू नारायण पांडे और मां रामा देवी हैं। हम 3 भाई हैं, प्रेमानंद मंझले हैं। प्रेमानंद हमेशा से प्रेमानंद महाराज नहीं थे। बचपन में मां-पिता ने बड़े प्यार से उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा था। हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत निकला
गणेश पांडे ने बताया- हमारे पिताजी पुरोहित का काम करते थे। मेरे घर की हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत होकर निकलता है। पीढ़ी दर पीढ़ी अध्यात्म की ओर झुकाव होने के चलते अनिरुद्ध भी बचपन से ही आध्यात्मिक रहे। बचपन में पूरा परिवार रोजाना एक साथ बैठकर पूजा-पाठ करता था। अनिरुद्ध यह सब बड़े ध्यान से देखा-सुना करता था। शिव मंदिर में चबूतरा बनाने से रोका, तो घर छोड़ दिया
बचपन में अनिरुद्ध ने अपनी सखा टोली के साथ शिव मंदिर के लिए एक चबूतरा बनाना चाहा। इसका निर्माण भी शुरू करवाया, लेकिन कुछ लोगों ने रोक दिया। इससे वह मायूस हो गए। उनका मन इस कदर टूटा कि घर छोड़ दिया। घरवालों ने उनकी खोजबीन शुरू की। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि वो सरसौल में नंदेश्वर मंदिर पर रुके हैं। घरवालों ने उन्हें घर लाने का हर जतन किया, लेकिन अनिरुद्ध नहीं माने। फिर कुछ दिनों बाद बची-कुची मोह माया छोड़कर वह सरसौल से भी चले गए। नंदेश्वर से महाराजपुर, कानपुर और फिर काशी पहुंचे
आज जिन प्रेमानंद महाराज के भक्तों में आम आदमी से लेकर सेलिब्रिटी तक शुमार हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई सिर्फ 8वीं कक्षा तक हुई है। 9वीं में भास्करानंद विद्यालय में एडमिशन दिलाया गया था, लेकिन 4 महीने में ही उन्होंने स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद वह भगवान की भक्ति में लीन हो गए। सरसौल नंदेश्वर मंदिर से जाने के बाद वह महाराजपुर के सैमसी स्थित एक मंदिर में कुछ दिन रुके। फिर कानपुर के बिठूर में रहे। बिठूर के बाद प्रेमानंद जी काशी चले गए। संन्यासी जीवन में कई दिन भूखे रहे
काशी में प्रेमानंद महाराज जी ने करीब 15 महीने बिताए। उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज से गुरुदीक्षा ली। वाराणसी में संन्यासी जीवन के दौरान वो रोज गंगा में तीन बार स्नान करते। तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान-पूजन करते। वह दिन में केवल एक बार भोजन करते थे। प्रेमानंद महाराज भिक्षा मांगने की जगह भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे। अगर इतने समय में भोजन मिला तो उसे ग्रहण करते, नहीं तो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते थे। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज ने कई दिन बिना कुछ खाए-पीए बिताए। ……………………………….. ये खबर भी पढ़िए- रैपर-सिंगर बादशाह पहुंचे स्वामी प्रेमानंद की शरण में:पूछा- सत्य बोलने से रिश्ते और प्यार दूर होते हैं; संत बोले- भगवान साथ देता है बॉलीवुड रैपर-सिंगर बादशाह वृंदावन में मशहूर संत स्वामी प्रेमानंद के आश्रम में पहुंचे। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया गया है। इसमें सिंगर बादशाह अपने सहयोगी के साथ स्वामी प्रेमानंद के सामने घुटनों पर बैठे हैं। इस दौरान बादशाह एकटक संत को निहारते रहे, जबकि उनकी ओर से सहयोगी ने मन की दुविधा संत के सामने रखी। पूरे समय बादशाह शांत मुद्रा में बैठे दिखे और संत की बात को एकाग्र होकर सुनते रहे। पढ़ें पूरी खबर ——————– ये खबर भी पढ़िए- यूपी में बिक रहा नकली आलू: पुराने आलू को केमिकल में डालकर तैयार कर रहे, एक किलो पर 20 रुपए मुनाफा कमा रहे अगर आप नया आलू खरीद रहे हैं, तो सावधान हो जाइए। नए आलू के नाम पर धड़ल्ले से जहरीला आलू बिक रहा। बाजारों में ऐसे आलू करीब 50 रुपए किलो के रेट पर मिल रहा है। मतलब 30 रुपए किलो का आलू 20 रुपए मुनाफे पर बेचा जा रहा है। पढ़ें पूरी खबर…
प्रेमानंद महाराज को देखकर भक्त रोने लगे:राधे-राधे के जयकारे लगाए; 10 दिन बाद पदयात्रा पर निकले थे
