झारखंड हाईकोर्ट में शुक्रवार को जेल में बंद कैदी के एचआईवी संक्रमित होने के मामले की सुनवाई हुई। जस्टिस एसएन प्रसाद और जस्टिस संजय प्रसाद की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को इस मामले में ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया। सुनवाई के दौरान अदालत में स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह, गृह विभाग की प्रधान सचिव वंदना दादेल, निदेशक इन चीफ स्वास्थ्य सेवाएं डॉ. सिद्धार्थ सान्याल सहित अन्य अधिकारी अदालत में उपस्थित हुए। सरकार की ओर से 21 अप्रैल 2017 को अधिसूचित मानव इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस और एड्स निवारण एवं नियंत्रण अधिनियम 2017 की कॉपी प्रस्तुत की गई। यह अधिनियम एचआईवी एड्स संक्रमण की रोकथाम और प्रभावित व्यक्तियों के मानवाधिकारों की रक्षा से संबंधित है। इसके धारा 5 में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति पर उसकी सहमति के बिना एचआईवी टेस्ट नहीं किया जा सकता है। उपस्थित अधिकारियों की ओर से अदालत को बताया गया कि राज्य सरकार इस विषय पर एड्स कंट्रोल सोसाइटी के साथ विचार-विमर्श करके आवश्यक गाइडलाइन तैयार करेगी। इस पर अदालत ने कहा कि कैदियों की सेहत और उनके मानवाधिकारों की सुरक्षा राज्य की जिम्मेदारी है। अदालत ने कहा कि एचआईवी एवं एड्स रोकथाम और नियंत्रण के प्रावधानों का सख्ती से पालन होना चाहिए। हाईकोर्ट में शुक्रवार को फॉरेस्ट गार्डों को नियमित करने के एकल पीठ के आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान आैर जस्टिस राजेश शंकर की अदालत ने सुनवाई के बाद वन विभाग के सचिव को अगली सुनवाई में तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी। मालूम हो कि प्रार्थी फॉरेस्ट गार्ड रामबली दास व अन्य ने नियमित करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट के एकलपीठ में याचिका दाखिल की थी। सुनवाई के दौरान उनकी आेर से बताया गया था कि वे दैनिक वेतनभोगी के रूप में फॉरेस्ट गार्ड के पद पर 1983 से काम कर रहे हैं, इसलिए नियमित किया जाए।
कैदियों की सेहत और सुरक्षा सरकार की जवाबदेही, लापरवाही नहीं बरतें : हाईकोर्ट
