सपा के पूर्व मंत्री आजम खान को उनके आखिरी केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 सितंबर को जमानत दी। तब लगा कि अब आजम के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन तभी रामपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने जौहर यूनिवर्सिटी से जुड़े शत्रु संपत्ति मामले में नई धाराएं जोड़ते हुए उन्हें 20 सितंबर को तलब कर लिया है। क्या यह किसी रणनीति के तहत हुआ? या महज इत्तफाक था? क्या सरकार आजम खान की रिहाई में अड़चन डाल रही है? आजम खान से भाजपा क्या डर रही है? 2027 विधानसभा चुनावों पर इसका क्या असर पड़ेगा? दैनिक भास्कर की इस खबर में इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे। पढ़िए… भाजपा क्यों नहीं चाहती आजम की रिहाई?
वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं- आजम खान अपनी तल्ख भाषा शैली को लेकर जाने जाते हैं। रामपुर में मुस्लिम वोट बैंक लगभग 55 प्रतिशत है, जिसपर आजम खान का कब्जा रहा है। 2019 लोकसभा में उन्होंने जया प्रदा को 1 लाख वोटों से हराया। लेकिन, 2022 उपचुनाव में आजम के जेल जाने से भाजपा को फायदा पहुंचा। पहले लोकसभा और फिर विधानसभा की खाली हुई सीट पर भाजपा ने कब्जा कर लिया। भाजपा आजम खान को गिरफ्तार रखकर अपने वोटरों को संदेश देना चाहती है कि मुस्लिमों के सबसे बड़े नेता को उन्होंने जेल में बंद रखा हुआ है। 2024 लोकसभा में सपा ने 37 सीटें जीतीं, जिसमें पश्चिमी यूपी में पार्टी का प्रदर्शन पहले के मुकाबले बेहतर रहा था, आजम खान बाहर आते हैं तो निश्चित रूप से इसमें बढ़ोत्तरी होगी। क्या पड़ेगा राजनैतिक दलों पर असर?
आजम खान अगर जेल से बाहर आते हैं तो सबकी निगाह उनके बयान पर रहेगी। देखना दिलचस्प होगा कि उनके तेवर सरकार के खिलाफ उसी तरह तल्ख रहते हैं या फिर कुछ नरम पड़ते हैं। सपा और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बारे में उनकी क्या राय रहती है। रिहाई के बाद उनके बयान और उनके निर्णय ये तय करेंगे कि वे किस तरह से खासकर मुस्लिमों के बीच अपनी बात रखते हैं। एक पक्ष ये कहता रहा है कि अखिलेश यादव ने अगर साथ दिया होता तो आजम खान काफी पहले ही जेल से बाहर आ गए होते। लेकिन, उनके बेटे अब्दुल्लाह आजम खान कह चुके हैं कि अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी ने उनकी पूरी मदद की है। आजम खान जेल के अंदर चंद्रशेखर से मुलाकात कर चुके हैं, जिसके बाद कई तरह के कयास लगाए गए थे। बसपा भी मुस्लिम वोटरों के बीच ये प्रचारित करती रही है कि सपा खुद आजम खान को बाहर नहीं आने देना चाहती। आजम खान पर कितने मुकदमे?
आजम के खिलाफ कुल 104 मुकदमे दर्ज हैं। इसमें अकेले रामपुर में 93 मामले दर्ज हैं, बाकी दूसरे जिलों में दर्ज हैं। 12 मुकदमों में फैसला आ चुका है। कुछ में सजा हुई है और कुछ में वे बरी हो गए हैं। लगभग सभी मामलों में उन्हें जमानत मिल चुकी है। लेकिन एक पुराने में मामले में नई धारा जोड़े जाने के बाद उन्हें अब उसमें नए सिरे से जमानत लेनी पड़ेगी। वरिष्ठ वकील इमरान उल्लाह कहते हैं, ये सभी मामले राजनीतिक साजिश हैं। आजम खान ने कभी अपनी ताकत का दुरुपयोग नहीं किया। सबूतों की कमी से जमानत मिली है। लेकिन रामपुर पुलिस ने शत्रु संपत्ति मामले में नई धाराएं (IPC 467, 471, 201) जोडी जिसमें उम्रकैद तक की सजा है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये धाराएं कोर्ट में टिक नहीं पाएंगी, क्योंकि ये पुराने केस को नया रूप देने की कोशिश लगती हैं। भड़काऊ भाषण के मामले में सजा होने से चली गई थी विधायकी
आजम खान को सबसे बड़ा झटका उस समय लगा था, जब 2022 में भड़काऊ भाषण देने के एक मामले में अदालत ने दो साल की सजा सुनाई थी। जिसके बाद आजम की विधायकी चली गई थी। हालांकि आजम खान की मुश्किलें 2019 से बढ़नी शुरू हो गईं थी। उन्होंने लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी और वर्तमान में मुरादाबाद मंडल के मंडलायुक्त आंजनेय कुमार सिंह समेत तमाम अधिकारियों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया था। जिसके बाद उनके खिलाफ भडकाऊ भाषण देने के आरोप में मुकदमा भी दर्ज हुआ था। इसी मामले में कोर्ट ने उन्हें तीन साल की कैद और छह हजार रुपए जुर्माना अदा करने की सजा सुनाई है। उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं और थानों में सौ से अधिक मुकदमे दर्ज हैं। कब-कब किस जेल में रहे?
फरवरी 2020 में गिरफ्तारी के बाद उन्हें पहले रामपुर जेल में रखा गया, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्हें सीतापुर जेल में शिफ्ट कर दिया गया। मई 2022 में उन्हें जमानत मिल गई थी। इसके बाद एक मामले में सजा होने के बाद 18 अक्तूबर, 2023 को आजम खान ने सरेंडर कर दिया था, जिसके बाद उन्हें पहले रामपुर जेल भेजा गया, फिर सीतापुर जेल शिफ्ट कर दिया गया। आजम, तंजीन और अब्दुल्लाह का चुनाव में हिस्सा लेना मुश्किल
वरिष्ठ वकील जुबैर खान कहते हैं- आजम खान जेल से बाहर आते हैं तो भी वे 2027 का चुनाव नहीं लड़ सकेंगे। इसी तरह उनकी पत्नी तंजीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम को भी सजा हो चुकी है, ऐसे में ये लोग भी अगला चुनाव नहीं लड़ सकते। साजिश या न्याय, कोर्ट में टिक पाएंगी नई धाराएं?
सरकार ने इसी समय पर दुश्मन संपत्ति मामले में नई धाराएं क्यों जोड़ी? इस सवाल रामपुर पुलिस का दावा है कि नए सबूत मिले हैं, जिसके आधार पर नई धाराएं जोड़ी गई हैं। लेकिन सपा इसे ‘राजनीतिक हथकंडा’ बता रही। सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमीक जामेई कहते हैं कि भाजपा को आजम खान से डर लगता है, इस लिए वे उन्हें बाहर नहीं आने देना चाहती। लेकिन समाजवादी पार्टी के लोगों को अदालत पर पूरा भरोसा है। आजम खां को जेल में बनाए रखने के लिए ये पूरा खेल किया गया है। अदालत इसमें भी न्याय करेगी। 2027 के चुनाव पर क्या पड़ेगा असर?
आजम खान बाहर आते हैं तो सपा को इसका फायदा मिलेगा। आजम खान जेल के किस्से सुना कर अपने प्रति लोगों की सहानुभूति लेंगे। वहीं इसका नुकसान भी हो सकता है। भाजपा के वोटर एक जुट होंगे। क्योंकि ये पता है कि आजम न तो विधायक बन सकते हैं और न ही मंत्री बनेंगे, ऐसे में उनका प्रभाव निश्चित रूप से कम रहेगा। समाजवादी पार्टी रामपुर में आजम खान के कहने पर ही टिकट देती रही है, लेकिन लोकसभा चुनाव में पार्लियामेंट मस्जिद के इमाम मोहीबुल्ला नदवी को चुनाव लड़ाया था, जिसका विरोध जेल से रहते हुए आजम खान ने किया था। देखना दिलचस्प होगा कि रामपुर में अब भी आजम खान का दखल उतना ही रहता है, या कुछ बदलाव नजर आता है। भाजपा बोली- आजम के बाहर आने से हमें कोई डर नहीं भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हीरो वाजपेयी ने कहा- आजम के बाहर आने से भाजपा को कोई डर नहीं है, जो अपराध करेगा, उसे डर लगेगा। आजम खान ने जो अपराध किया है, उसके अनुसार पुलिस धाराएं लगा रही होगी। इससे भाजपा का कोई लेना-देना नहीं है। भाजपा को किसी से डर नहीं लगता है। कानून अपना काम कर रहा है। चार बार प्रदेश सरकार में मंत्री रहे
आजम खान सपा सरकार में कई-कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। 1989 में उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने और श्रम, रोजगार, मुस्लिम वक्फ और हज जैसे विभागों में कामकाज किया। 1993 में वे एक बार फिर राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। आजम खां उत्तर प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता भी रहे हैं। जबकि, 2003 से 2007 तक कैबिनेट मंत्री के रूप में संसदीय मामलों, शहरी विकास, जल आपूर्ति, शहरी रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन विभागों का कामकाज देखा। 2012 में अखिलेश यादव की सरकार के दौरान आजम खान नगर विकास समेत कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बने। सपा के संस्थापक सदस्यों में से थे एक
आजम खान को मुलायम सिंह यादव के सबसे करीबी नेताओं में से गिना जाता था। वे सपा के संस्थापक सदस्य भी हैं। उन्होंने कभी सपा का साथ नहीं छोड़ा। लिहाजा, मुलायम सिंह यादव ने भी आजम खान को आगे बढ़ाया। मुलायम सिंह यादव और आजम खान की दोस्ती के किस्से आज भी सियासी गलियारों में सुनाए जाते हैं। …………………. ये खबर भी पढ़ें… शिवपाल ने 20 कॉल की, महिला DM ने नहीं उठाई:विधानसभा अध्यक्ष से की शिकायत, नोटिस जारी हुआ तो बोलीं- सॉरी सपा महासचिव शिवपाल यादव का फोन न उठाना बुलंदशहर डीएम श्रुति को भारी पड़ गया। शिवपाल ने उन्हें 20–25 बार कॉल किया, लेकिन डीएम ने रिसीव नहीं किया। इससे नाराज होकर शिवपाल ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना से शिकायत कर दी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर शिवपाल अपने रुख पर अडिग रहते, तो डीएम को विधानसभा में पेश होना पड़ सकता था। पढ़िए पूरी खबर…
आजम खान के जेल से बाहर आने से किसे नुकसान?:भाजपा को डर या राजनीतिक कारणों से जेल में रखना चाहती है सरकार
