रामभद्राचार्य बोले- प्रेमानंद पर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की:मिलेंगे तो गले लगाऊंगा; वह मेरे बालक के समान; सनातन धर्म पर हमले हो रहे

रामभद्राचार्य बोले- प्रेमानंद पर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की:मिलेंगे तो गले लगाऊंगा; वह मेरे बालक के समान; सनातन धर्म पर हमले हो रहे

संत प्रेमानंद महाराज पर टिप्पणी के बाद मथुरा के संतों में उबाल है। विवाद बढ़ता देख तुलसी पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा- मैंने प्रेमानंद पर कोई अभद्र टिप्पणी नहीं की है। वह मेरे बालक के समान हैं। वह जब भी मेरे पास मिलने आएंगे। मैं उनको गले से लगाऊंगा, उन्हें आशीर्वाद दूंगा। साथ ही भगवान रामचंद्र से उनकी दीर्घायु की कामना करूंगा। मैंने किसी तंत्र के खिलाफ टिप्पणी नहीं की है और न करता हूं। मैं आचार्य होने के नाते सबको यह कहता हूं कि संस्कृत पढ़ना चाहिए। चोला पहनकर जो लोग कथा कहते हैं, उनको कुछ आता-जाता नहीं है। उनको पढ़ना सीखना चाहिए। इससे पहले रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास ने भी सफाई दी थी। उन्होंने कहा था, जगद्गुरु सबके गुरु होते हैं। सारी प्रजा उनके पुत्र के समान होती है। जगद्गुरु की बातों को इस तरह से प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए। प्रेमानंद जी से गुरुदेव (जगद्गुरु रामभद्राचार्य) को किसी प्रकार की ईर्ष्या नहीं है। प्रेमानंद महाराज या बाकी कथावाचक पिछले काफी समय से मंच से तमाम तरह की बातें बोल रहे थे। कभी बच्चियों के बारे में कभी माताओं के बारे में, इसे लेकर मीडिया में डिबेट चल रही थी। इसी बात को लेकर जगद्गुरु रामभद्राचार्य के मन में पीड़ा थी। अब विस्तार से पढ़िए विवाद की पूरी कहानी… पहले रामभद्राचार्य का वो बयान पढ़िए, जिस पर विवाद ”अगर प्रेमानंद महाराज में चमत्कार है, तो वे उनके सामने एक अक्षर संस्कृत का बोलकर दिखाएं। मेरे द्वारा कहे गए किसी भी श्लोक का अर्थ समझाएं। उनकी लोकप्रियता क्षणभंगुर है। प्रेमानंद ‘बालक के समान’ हैं।” तुलसी पीठाधीश्वर पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज ने यह बातें एक इंटरव्यू में कहीं थीं, जो सोशल मीडिया पर वायरल है। इस बयान पर ब्रज के साधु-संतों में नाराजगी है। अब वो बयान पढ़िए, जो प्रेमानंद महाराज ने दिया था- आज के समय में 100 में से मुश्किल से दो-चार लड़कियां ही पवित्र होती हैं, बाकी सभी ब्वॉयफ्रेंड-गर्लफ्रेंड के चक्कर में लगी हुई हैं। अगर कोई युवक 4 लड़कियों से संबंध बनाता है, तो वह अपनी पत्नी से संतुष्ट नहीं रह पाएगा, क्योंकि उसे व्यभिचार की आदत लग चुकी होती है। ऐसे ही लड़की चार पुरुषों से संबंध बना चुकी है, उसके अंदर एक पति को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं रहती। 100 में से मुश्किल से दो-चार कन्याएं ही ऐसी होती हैं, जो पवित्र जीवन जीकर किसी एक पुरुष को समर्पित होती हैं। कैसे वो सच्ची बहू बनेगी जो चार लड़कों से मिल चुकी है, कैसे लड़का अच्छा पति बनेगा जब चार लड़कियों से मिल चुका है। अब पढ़िए रामभद्राचार्य की पूरी बात… रामभद्राचार्य ने कहा- मैंने अपने उत्तराधिकारी रामचंद्र दास को भी कई बार इस बात को लेकर कहा हूं कि संस्कृत सबको पढ़नी चाहिए। संस्कृत भाषा भारत की है। मैंने कभी चमत्कार को नमस्कार नहीं किया। यह बात मैं प्रेमानंद जी के लिए नहीं कहा हूं। मैं अपने शिष्य धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को भी कहता हूं और डांटता हूं। मैं आज भी संस्कृत 18 घंटे पढ़ता हूं और पढ़ता रहूंगा। प्रेमानंद से मेरा कोई द्वेष भाव नहीं है। वह मेरे बेटे के समान है। रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी की पूरी बात… बच्चियों-माताओं के बारे में टिप्पणी की, इसको लेकर पीड़ा थी जब रामभद्राचार्य और प्रेमानंद मामले में विवाद बढ़ा तो आचार्य रामचंद्र दास ने कहा, कुछ कूप-मंडूक दो महापुरुषों के विषय में बात कर रहे हैं। उन्हें पहले स्वाध्याय यानी खुद अध्ययन करना चाहिए। गुरुदेव का सहज स्वभाव है। गुरुजी सार्वजनिक मंचों से ही अपनी बात कहते हैं। प्रधानमंत्री हों या राष्ट्रपति या स्थानीय लोग हों, किसी से भी कुछ कहना हो, वे अपनी बात बेहिचक रखते हैं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा कि वर्तमान के संतों को स्वाध्याय करना चाहिए और ग्रन्थों का आश्रय लेना चाहिए। हमारे यहां 5-5 साल के बच्चे प्रवचन कर रहे हैं, जिन्हें खुद का आत्मबोध नहीं है। इसी नाते उन्होंने समाज के लिए, उन्हें जो करना चाहिए, उन्होंने वही किया है। सोशल मीडिया जिहाद चल रहा
आचार्य रामचंद्र ने आगे कहा, सनातन संगठित हो रहा है, इससे लोगों को दिक्कत हो रही है। सोशल मीडिया पर एक जिहाद चल रहा है। लोग फर्जी तरह की आईडी बनाकर विवाद को बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। हमारे सनातन में विवाद की नहीं, संवाद की परंपरा रही है। रामजन्मभूमि के लिए मैं खड़ा रहा। जब मथुरा और विश्वनाथ बाबा की बात आएगी, तब मैं खड़ा मिलूंगा। उन्होंने प्रेमानंद जी की कोई निंदा नहीं की। उन्हें अपना बालक बताया है और कहा कि उनसे कोई विवाद नहीं हैं। हमारे यहां शिष्य और पुत्र कितना भी बड़ा हो जाए, लेकिन उसे डांटने की परंपरा रही है। हमें भी गुरुजी सार्वजनिक मंचों से कहते हैं कि रामचंद्र दो अक्षर पढ़ लो। हमारे गुरुभाई धीरेंद्र शास्त्री को भी गुरुदेव कहते हैं कि कुछ पढ़ लो। गुरुदेव चमत्कार में भरोसा नहीं करते हैं। उन्होंने आग्रह किया कि इसे विवाद का विषय न बनाएं। अब आचार्य रामचंद्र दास की पोस्ट पढ़िए…
मीडिया से बातचीत से पहले आचार्य रामचंद्र दास ने फेसबुक पर एक लंबी पोस्ट लिखी। जिसमें कहा, वर्तमान समय में पूज्यपाद जगद्गुरु जी के एक साक्षात्कार को लेकर जो विवाद खड़ा किया जा रहा है, वह नहीं खड़ा किया जाना चाहिए था। पूज्य गुरुदेव ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि श्री प्रेमानंद जी से उन्हें किसी प्रकार की ईर्ष्या नहीं है। वे एक अच्छे संत हैं और भगवान का नाम जपने वाला प्रत्येक व्यक्ति गुरुदेव की दृष्टि में सम्मान के योग्य होता है। अपने प्रवचनों में गुरुदेव बार-बार यह बात कहते हैं कि जो राम-कृष्ण को भजता है, वह चाहे जिस धर्म, वर्ण, अवस्था अथवा लिंग का हो, वह आदर के योग्य है। हम साल बेग (एक मुस्लिम, जिसकी मजार के सामने भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा रुकती है) को अपना मानते हैं, तो प्रेमानंद महाराज जैसे नाम-जापक संत को पराया कैसे मान सकते हैं? पिता के मुख से निकला वाक्य कठोर लगता है
आचार्य रामचंद्र दास ने कहा, इंटरव्यू में पूज्य जगद्गुरु जी ने स्पष्ट कहा है कि अवस्था और धार्मिक व्यवस्था दोनों दृष्टियों से श्री प्रेमानंद जी उनके पुत्र के समान हैं। विचार कीजिए- पिता के मुख से निकला वाक्य यदि तत्काल कठोर प्रतीत हो, तब भी उसके हृदय का भाव पुत्र के लिए कल्याणकारी ही होता है। जगद्गुरु सबके गुरु होते हैं, सारी प्रजा उनके लिए पुत्र के समान होती है। अतः जिस प्रकार एक पिता अपनी संतान का अहित नहीं चाहता, उसी प्रकार किसी भी सनातनी का अहित पूज्य जगद्गुरु जी नहीं चाहते। आचार्य चाणक्य के अनुसार लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः । तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत् ॥ संतति और शिष्यों को वाणी के द्वारा निरंतर सचेत करते रहना चाहिए। तुलसीदास जी कहते हैं सचिव बैद गुरु तीनि जो, प्रिय बोलहिं भय आस। राज, धर्म, तन तीनि कर, होइ बेगिहीं नास।। यदि गुरु शिष्य को प्रसन्न करने के लिए मीठा-मीठा बोलने लगे, तो धर्म का नाश होना अवश्यंभावी है। अतः अपनी वाणी के माध्यम से गुरुदेव समय-समय पर जनमानस को सचेत करते रहते हैं। सेवा, शिक्षा और संस्कार के माध्यम से गुरुदेव निरंतर सनातनियों के लिए कार्य कर रहे हैं। तुलसी पीठ में पधारने वाले प्रत्येक संत की सेवा भोजन, आवास, वस्त्रादि आदि के माध्यम से की जाती है। लिखा- पढ़ने और पढ़ाने में व्यतीत होता है समय
आचार्य ने कहा, विद्यालय, विश्वविद्यालय, अपने ग्रंथों और प्रवचनों के माध्यम से गुरुदेव शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते हैं। वैदिक मर्यादा का पालन करके तथा करवा के, गुरुदेव संस्कारों का बीजारोपण जनसामान्य के अंतःकरण में करते रहते हैं। आज के समय में शास्त्रीय चिंतन का ह्रास देखकर गुरुदेव अत्यंत चिंतित होते हैं। वे वर्षों से बार-बार कहते आ रहे हैं कि “मैं चमत्कार में नहीं, बल्कि पुरुषार्थ में विश्वास करता हूं।” इतनी अवस्था होने पर भी आज भी गुरुदेव की दिनचर्या का अधिकांश समय पढ़ने और पढ़ाने में व्यतीत होता है। धर्मशास्त्रों के अध्ययन में जनता की रुचि कैसे उत्पन्न हो इसके लिए गुरुदेव सदा प्रयत्नशील रहते हैं। जो लोग इसे ईर्ष्या का नाम दे रहे हैं, उन्हें फिर से विचार करने की आवश्यकता है। मीडिया अपने लाभ के लिए निस्वार्थ संतों को भी अपने स्वार्थ सिद्धि का माध्यम बना लेती है। उनकी बातों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किया जाता है, ताकि संतों पर लोगों की श्रद्धा समाप्त हो जाए और उनकी टीआरपी बढ़ती रहे। इसलिए सचेत होने की आवश्यकता है। राम मंदिर केस में गवाही देने का जिक्र
आचार्य रामचंद्र दास ने कहा, राम मंदिर के लिए गवाही देने की बात हो अथवा 200 से अधिक ग्रंथों की रचना कर धर्म की महत्तम सेवा करने की बात, पूज्य गुरुदेव हरेक प्रकार से सनातनियों के लिए उपकारी ही सिद्ध हुए हैं। इसलिए ऐसे महापुरुष के लिए ईर्ष्यालु, अहंकारी जैसे आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करना क्या उचित है? घर के बड़े-बुजुर्ग यदि कटु वाक्य कह भी दें, तो क्या बदले में उन्हें भी कटु वाक्य कहकर प्रतिउत्तर देना चाहिए? सोचिएगा अवश्य। ————————————- यह खबर भी पढ़ें… ‘प्रेमानंद एक अक्षर संस्कृत बोलकर दिखाएं’:रामभद्राचार्य के इस बयान पर ब्रज के संत नाराज, बोले- उन्हें अहंकार, भक्ति का भाषा से क्या लेना-देना अगर प्रेमानंद महाराज में चमत्कार है, तो वे मेरे सामने एक अक्षर संस्कृत का बोलकर दिखाएं। मेरे द्वारा कहे गए किसी भी श्लोक का अर्थ समझाएं। उनकी लोकप्रियता क्षणभंगुर है। प्रेमानंद ‘बालक के समान’ हैं।तुलसी पीठाधीश्वर पद्म विभूषण जगद्गुरु रामभद्राचार्य महाराज के इस बयान पर साधु-संतों में नाराजगी है। दैनिक भास्कर ने मथुरा के संतों से बात की। उनका पक्ष जाना। पढ़िए पूरी बातचीत…

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