सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने बुधवार को एक रक्षा समझौते पर साइन किए। इस समझौते के तहत एक देश पर हमला दूसरे पर भी हमला माना जाएगा। सऊदी प्रेस एजेंसी के मुताबिक, दोनों देशों ने एक जॉइंट स्टेटमेंट में कहा कि यह समझौता दोनों देशों की सुरक्षा बढ़ाने और विश्व में शांति स्थापित करने की प्रतिबद्धता को दिखाता है। इस समझौते के तहत दोनों देशों के बीच डिफेंस कॉर्पोरेशन भी डेवलप किया जाएगा। रॉयटर्स के मुताबिक इस समझौते के तहत मिलिट्री सहयोग किया जाएगा। इसमें जरूरत पड़ने पर पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का इस्तेमाल भी शामिल है। सऊदी अरब और पाकिस्तान के रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि भारत सरकार को इसकी जानकारी पहले से थी। समझौते के वक्त पाकिस्तानी सेना प्रमुख भी मौजूद थे शहबाज शरीफ के साथ पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर, उप प्रधानमंत्री इशाक डार, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ, वित्त मंत्री मोहम्मद औरंगजेब और हाई लेवल डेलिगेशन सऊदी पहुंचा है। जिस वक्त इस रक्षा समझौते पर साइन किए जा रहे थे, तब पाकिस्तानी सेना प्रमुख आसीम मुनीर भी वहां मौजूद थे। एक अधिकारी ने रॉयटर्स को बताया कि यह समझौता किसी खास देश या घटना के खिलाफ नहीं हुआ है, बल्कि दोनों देशों के बीच लंबे समय तक चलने वाले गहरे सहयोग का आधिकारिक रूप है। पाकिस्तान ने नाटो जैसी फोर्स बनाने का सुझाव दिया था इजराइल ने 9 सितंबर को कतर की राजधानी दोहा में हमास चीफ खलील अल-हय्या को निशाना बनाकर हमला किया था। इस हमले में अल-हय्या बच तो गया था, लेकिन 6 अन्य लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद 14 सितंबर को दोहा में मुस्लिम देशों के कई नेता इजराइल के खिलाफ एक खास बैठक के लिए इकट्ठा हुए थे। यहां पाकिस्तान ने सभी इस्लामी देशों को NATO जैसी जॉइंट फोर्स बनाने का सुझाव दिया था। पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री मोहम्मद इशाक डार ने एक जॉइंट डिफेंस फोर्स बनाने की संभावना का जिक्र करते हुए कहा था कि न्यूक्लियर पावर पाकिस्तान इस्लामिक समुदाय (उम्माह) के साथ अपनी जिम्मेदारी निभाएगा। एक्सपर्ट बोले- यह समझौता औपचारिक ‘संधि’ नहीं है अफगानिस्तान और इराक में अमेरिका के राजदूत रह चुके जलमय खलीलजाद ने भी इस समझौते पर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि यह समझौता हालांकि औपचारिक ‘संधि’ नहीं है, लेकिन इसकी गंभीरता को देखते हुए यह एक बड़ी रणनीतिक साझेदारी मानी जा रही है। खलीलजाद ने आगे कहा कि क्या यह समझौता कतर में इजराइल हमले के जवाब में किया गया है? या ये लंबे समय से चली आ रही अफवाहों की पुष्टि करता है कि सऊदी अरब, पाकिस्तान के एटमी हथियार प्रोग्राम का अघोषित सहयोगी रहा है। खलीलजाद ने पूछा कि क्या इस समझौते में सीक्रेट क्लॉज हैं, अगर हां, तो वे क्या हैं? क्या ये समझौता बताता है कि सऊदी अरब अब अमेरिका की सुरक्षा गारंटी पर पूरी तरह निर्भर नहीं रहना चाहता है। उन्होंने बताया कि पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार और ऐसे मिसाइल सिस्टम हैं जो पूरे मिडिल ईस्ट और इजराइल तक मार कर सकते हैं। कुछ रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तान ऐसे हथियार भी डेवलप कर रहा है जो अमेरिका तक पहुंच सकते हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता बोले- भारत पर असर की जांच करेंगे सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच रक्षा समझौते पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा यह समझौता दोनों देशों के बीच पहले से मौजूद संबंधों को औपचारिक रूप देता है। इससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा, क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता पर क्या असर पड़ेगा, इसकी जांच की जाएगी। भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। अमेरिका के साथ भी पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता किया था पाकिस्तान ने सऊदी जैसा रक्षा समझौता अमेरिका के भी साथ किया था। 1979 में ये समझौता टूट गया था। उससे पहले भारत पाकिस्तान के बीच 2 जंग हुईं लेकिन एक में भी अमेरिका ने उसकी सीधे मदद नहीं की। पाकिस्तान-अमेरिका का पुराना रक्षा समझौता: 1950 में कोल्ड वॉर के दौरान, अमेरिका ने सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के लिए दक्षिण एशिया में सहयोगियों की तलाश की। इस समय पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ सैन्य गठबंधन को अपनाया। 1979 में समझौता क्यों टूटा? CENTO का अंत 1979 में हुआ, हालांकि MDAA द्विपक्षीय था, लेकिन CENTO के ढांचे से जुड़ा था। समझौते के बाद भी अमेरिका ने मदद नहीं दी CENTO 16 मार्च 1979 को पूरी तरह खत्म हुआ। हालांकि, अमेरिका-पाकिस्तान संबंध बाद में अफगान युद्ध (1979 के बाद) में फिर मजबूत हुए, लेकिन पुराना म्यूचुअल डिफेंस फ्रेमवर्क टूट चुका था। इससे पहले 1947, 1965 और 1971 में भारत पाक जंग में भी में अमेरिका ने पाकिस्तान की सीधी सैन्य मदद नहीं की, भले ही म्यूचुअल डिफेंस प्रावधान थे। अमेरिका ने इन जंग को क्षेत्रीय विवाद माना, न कि गठबंधन के तहत सामूहिक रक्षा का मामला। MDAA/SEATO/CENTO खासतौर पर सोवियत/कम्युनिस्ट खतरों के खिलाफ थे, न कि भारत किसी और गुट के खिलाफ। इसलिए, पाकिस्तान को अपेक्षित मदद नहीं मिली, जिससे गठबंधन पर सवाल उठे। ————————————————— यह खबर भी पढ़ें… इजराइल के खिलाफ कतर में जुटे 50 मुस्लिम देश:ईरान बोला- इस्लामी देश इजराइल से रिश्ता तोड़ें, पाकिस्तान की NATO जैसी फोर्स बनाने की सलाह कतर की राजधानी दोहा में आज मुस्लिम देशों के 50 नेता इजराइल के खिलाफ एक खास बैठक के लिए इकट्ठा हुए हैं। यह बैठक अरब लीग और ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) ने बुलाई है।इसका मकसद 9 सितंबर को कतर पर हुए इजराइली हमले का जवाब देना है। इस हमले में हमास के 5 मेंबर और एक कतरी सुरक्षा अधिकारी मारा गया था। यहां पढ़ें पूरी खबर…
सऊदी-PAK के बीच रक्षा समझौता, मिलकर हमले का जवाब देंगे:दावा- एटमी हथियार का भी इस्तेमाल शामिल; भारत बोला- पहले से जानकारी थी
