अश्विन अमावस्या यानी पितृ अमावस्या पर रविवार को बाबा नगरी देवघर की पावन शिवगंगा में श्रद्धालुओं का जनसैलाब उमड़ पड़ा। सुबह से ही हजारों लोग पवित्र जल में स्नान और तर्पण करने पहुंचे। पितृपक्ष के अंतिम दिन हर उम्र के श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए विधि-विधान से जल अर्पण किया। तर्पण और स्नान के दौरान गूंजा मंत्रोच्चार सुबह की पहली किरण के साथ ही श्रद्धालुओं की भीड़ शिवगंगा परिसर में जुट गई। आस्था से ओतप्रोत वातावरण में हर ओर वैदिक मंत्रोच्चार गूंजते रहे। श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान कर पितरों को स्मरण किया और पुरोहितों की सहायता से तर्पण किया। महिलाएं, पुरुष और बुजुर्ग कतारों में खड़े होकर विधिवत पूजा-अर्चना में शामिल हुए। पुरोहितों ने बताया पितृपक्ष का महत्व पुरोहितों के अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होकर अश्विन अमावस्या को समाप्त होता है। यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है, जिन्हें अपने पितरों की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं होती। ऐसे लोग महालय अमावस्या पर श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। पंडित सुनील नारायण मिश्र ने कहा कि पितृपक्ष आत्मीय रिश्तों की स्मृति का अवसर है, जबकि पंडित बसंत नारायण मिश्र ने बताया कि इसके साथ ही देवी पक्ष की शुरुआत हो जाती है। नवरात्र की तैयारियों की ओर कदम पितृपक्ष के समापन के साथ ही श्रद्धालु अब नवरात्र की तैयारियों में जुटने लगे हैं। मंदिरों और घरों में देवी प्रतिमाओं की स्थापना और पूजन की योजनाएं बनने लगी हैं। पुरोहितों का मानना है कि पितरों को तर्पण करने के बाद ही देवी पूजा की शुरुआत शुभ मानी जाती है। धर्म और संस्कृति का संगम बना देवघर रविवार को शिवगंगा और उसके आसपास का क्षेत्र पूरी तरह आस्था और भक्ति में रंगा नजर आया। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ ने देवघर को धर्म, संस्कृति और परंपरा के जीवंत संगम स्थल के रूप में प्रस्तुत किया। पूरे दिन श्रद्धालुओं की आवाजाही जारी रही और शहर भक्ति से सराबोर रहा।
महालया पर देवघर में उमड़ा आस्था का सैलाब:शिवगंगा में हजारों लोगों ने किया पितरों का तर्पण, अज्ञात मृत्यु तिथि वाले पूर्वजों का विशेष श्राद्ध
