उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद यूपी ही नहीं, हरियाणा और राजस्थान में जाट समाज की नाराजगी बढ़ने लगी है। दरअसल, मीडिया में धनखड़ से इस्तीफा लिए जाने की खबरें चल रही हैं। इसके बाद जाट समाज के नेता खुले तौर पर नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। यूपी में आगामी पंचायत चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक में जाट समाज को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। इसीलिए भाजपा आलाकमान अब बाहरी नेताओं की जगह कैडर के जाट नेताओं को ही महत्व देकर समाज, संगठन और सरकार में उनका महत्व बढ़ाने पर मंथन कर रहा है। यूपी में जाट आबादी कितनी है? भाजपा के कितने जाट विधायक हैं? पार्टी किन जाट नेताओं को आगे बढ़ा सकती है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… 2014 से जिन जाट नेताओं को आगे बढ़ाया, फिर उनका इस्तीफा
भाजपा ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, हरियाणा और यूपी के जाट वोटबैंक को साधने की कोशिश की थी। इसके लिए राजस्थान से जगदीप धनखड़, यूपी से सत्यपाल मलिक और हरियाणा से वीरेंद्र सिंह चौधरी को भाजपा में शामिल कराया था। जगदीप धनखड़ को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया। उसके बाद देश के उपराष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण पद को संभालने का मौका दिया। धीरे-धीरे धनखड़ के सरकार विरोधी बगावती सुरों ने उनका इस्तीफा करा दिया। सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया था। लेकिन, बाद में वह भाजपा से बगावत कर गए। मलिक को हटाया, इसलिए धनखड़ बने उपराष्ट्रपति
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, भाजपा ने जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक की बगावत के बाद उनसे किनारा कर लिया था। मलिक को दूसरी बार मौका नहीं दिया। इतना ही नहीं, उनके कार्यकाल की जांच भी शुरू हुई। मलिक ने कृषि कानूनों समेत अन्य मुद्दों पर भाजपा की खिलाफत की थी। मलिक को हटाने से जाटों की नाराजगी थी। इसलिए केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति बना दिया था। वीरेंद्र सिंह चौधरी भी भाजपा छोड़कर फिर से कांग्रेस में जा चुके हैं। भाजपा के 3 आयातित जाट नेताओं के भाजपा को बीच मझधार में छोड़कर जाने के बाद एक ओर जहां अंदर ही अंदर पार्टी के नेतृत्व पर सवाल खड़े होने लगे हैं। वहीं, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद पश्चिमी यूपी में भी जाट समाज की नाराजगी धीरे-धीरे बढ़ रही है। ऐसे में पार्टी कैडर के जाट नेताओं की उम्मीद जगी है कि भाजपा की राजनीति में एक बार उनके अच्छे दिन आ सकते हैं। समाज की नाराजगी दूर करने के लिए पार्टी उन्हें मौका देगी। भूपेंद्र और बालियान का महत्व बढ़ेगा
यूपी में जाट समाज की आबादी करीब 2.5 फीसदी है। समाज के 17 विधायक हैं। इनमें से 10 भाजपा के, 4 रालोद और 3 समाजवादी पार्टी के हैं। यूपी में यूं तो योगी सरकार में गन्ना विकास मंत्री चौधरी लक्ष्मी नारायण भी जाट नेता हैं। लेकिन, लक्ष्मी नारायण अपने राजनीतिक सफर में कांग्रेस, सपा, बसपा होते हुए भाजपा में आए हैं। लिहाजा, मौजूदा दौर में वह पार्टी नेतृत्व की कसौटी पर खरे नहीं उतरते। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ऐसे जाट नेताओं को आगे बढ़ाकर जाटों की नाराजगी दूर करना चाहती है, जो समाज में प्रभावशाली होने के साथ ही पार्टी के लिए वफादार हों। यूपी में पार्टी की इस कसौटी पर प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और मांट के विधायक राजेश चौधरी ही खरे उतरते हैं। यूपी में भूपेंद्र चौधरी का सिक्का चमकेगा
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी पार्टी कैडर के जाट चेहरे हैं। वह भाजपा के जिलाध्यक्ष से लेकर पश्चिम के क्षेत्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। योगी सरकार 1.0 और 2.0 में मंत्री भी रहे। यूपी में पार्टी के सबसे बड़े जाट नेता हैं। ऐसा माना जाता है कि यूपी में चौधरी से मजबूत कोई दूसरा जाट चेहरा भाजपा के पास नहीं है। यूं तो चौधरी के अध्यक्ष पद का 3 साल का कार्यकाल अब समाप्ति की ओर है। लेकिन, चौधरी केंद्रीय नेतृत्व के करीबी हैं। ऐसे में पार्टी उनका सरकार और संगठन में कहां समायोजन करेगी, यह तय नहीं था। लेकिन जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद माना जा रहा है कि जाट वोट बैंक को साधने के लिए भूपेंद्र चौधरी की राजनीति का सिक्का चमकेगा। संजीव बालियान का भी महत्व बढ़ेगा
पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान ने पशु चिकित्सक की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा था। 2 बार केंद्र सरकार में मंत्री रहे बालियान भी भाजपा के मूल कैडर के जाट नेता हैं। मुजफ्फरनगर दंगों में भी बालियान के खिलाफ मुकदमा दर्ज है। उनकी गिनती भी हिंदुत्ववादी जाट नेताओं में होती है। बालियान ने 2 बार रालोद के अध्यक्ष अजीत सिंह को चुनाव हराया था। लिहाजा, पश्चिमी यूपी में बालियान की गिनती भी भाजपा के बड़े जाट नेताओं में होती है। मौजूदा राजनीतिक हालात में बालियान का भी महत्व बढ़ गया है। राजेश चौधरी को भी मिल सकता है मौका
मांट से विधायक राजेश चौधरी ने भी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से छात्र राजनीति की शुरुआत की। राजेश भारतीय जनता युवा मोर्चा के पदाधिकारी भी रहे। मांट सीट पर कई साल से बसपा के श्याम सुंदर शर्मा का कब्जा रहा। 2022 में पहली बार भाजपा के राजेश चौधरी यहां से विधायक चुने गए। चौधरी ना केवल क्षेत्र में सक्रिय हैं, बल्कि ब्रज के जाट समाज में भी उनकी मजबूत पकड़ है। राजेश केंद्रीय नेतृत्व के भी भरोसेमंद हैं। अपने नेताओं की जमीन मजबूत करनी चाहिए
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं, भाजपा ने जाट वोट बैंक के लिए रालोद से गठबंधन किया है। रालोद अध्यक्ष जयंत चौधरी को केंद्र सरकार में मंत्री भी बनाया है। फिर भी जाट वोट बैंक में पकड़ बनाने के लिए कैडर के जाट नेताओं की जमीन मजबूत करनी चाहिए। भाजपा के ही संजीव बालियान ने 2014 और 2017 में मुजफ्फरनगर से रालोद के अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह को हराया था। भाजपा के सत्यपाल सिंह ने जयंत चौधरी को हराया था। जाट नेताओं को एडजस्ट नहीं किया तो नाराजगी बढ़ेगी
राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र प्रताप राणा कहते हैं- भाजपा और जयंत चौधरी के गठबंधन में जगदीप धनखड़ की बड़ी भूमिका थी। धनखड़ उसके बाद चौधरी चरण सिंह की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए थे। पश्चिमी यूपी में जाटों के नेता जयंत चौधरी ही हैं। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद से जाटों में नाराजगी अवश्य है। यह नाराजगी जेएंडके के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक से शुरू हुई थी। जो हरियाणा में दुष्यंत चौटाला से लेकर जगदीप धनखड़ तक पहुंच गई है। भूपेंद्र चौधरी भाजपा के जाट नेता हैं। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन में जाट किसान ज्यादा थे। जाट नाराज थे, इसलिए भूपेंद्र चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। भूपेंद्र चौधरी ने पश्चिमी यूपी के जाट नेताओं को भाजपा में जोड़ने में बड़ा रोल निभाया है। राजनीतिक विश्लेषक पुष्पेंद्र शर्मा कहते हैं- किसी भी जाट नेता ने प्रतिक्रिया नहीं दी है। छोटे जाट नेता कहते हैं कि भाजपा का दबाव था, इसलिए इस्तीफा दिया। जयंत चौधरी, संजीव बालियान, सतपाल सिंह और भूपेंद्र सिंह चौधरी ने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। कभी-कभी माना जाता है कि चुप्पी भी नाराजगी का संदेश दे रही है। लेकिन, वो बोलना नहीं चाहते हैं। ————————- ये खबर भी पढ़ें… मस्जिद में डिंपल की एंट्री- अखिलेश खामोश क्यों, मौलाना को सरेआम सपाइयों ने मारे थप्पड़ सपा सांसद डिंपल यादव की मस्जिद में एंट्री। पहनावे पर सवाल उठाकर कंट्रोवर्सी में घिरे मौलाना साजिद रशीदी के साथ थप्पड़-कांड। सियासी बयानबाजी और पूरे मुद्दे पर पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव की खामोशी। यूपी से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक चर्चा का मुद्दा बनी है। मुस्लिम धर्मगुरु डिंपल की आलोचना कर रहे हैं। सपा के कद्दावर नेता भी चुप्पी साधे हैं। सेकेंड लाइन के नेता भी बचाव में संभलकर बयानबाजी कर रहे हैं। खतरा, कहीं मुस्लिम वोट बैंक न छिटक जाए। पढ़ें पूरी खबर
धनखड़ के इस्तीफे के बाद जाटों की नाराजगी बनी चुनौती:यूपी में 2.5% जाट आबादी, चुनाव से पहले समाज के नेताओं पर भाजपा करेगी फोकस
