चिन्मयानंद बोले- संत डांटेंगे नहीं तो कौन डांट लगाएगा:रामभद्राचार्य-प्रेमानंद जैसे ज्ञानियों के बीच बोलना उचित नहीं, समाज इतनी जल्दी उग्र न हो

चिन्मयानंद बोले- संत डांटेंगे नहीं तो कौन डांट लगाएगा:रामभद्राचार्य-प्रेमानंद जैसे ज्ञानियों के बीच बोलना उचित नहीं, समाज इतनी जल्दी उग्र न हो
Share Now

अब केवल संतों से उम्मीद बची है। संत डांट नहीं लगाएंगे तो कौन लगाएगा? शूर्पणखा कभी भी हमारे लिए पूजनीय नहीं हो सकती। हमारे देश में सीताजी ही पूजनीय हो सकती हैं…तो अपने आपको सीताजी के मार्ग पर रखो न… शूर्पणखा के मार्ग पर क्यों रखती हो। ये कहना है कथावाचक चिन्मयानंद बापू का। वे इन दिनों आगरा में हैं। यहां के बल्केश्वर पार्क में श्रीमद्भागवत कथा कर रहे हैं। दैनिक भास्कर से बातचीत में उन्होंने कहा- श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मामले में मुस्लिम पक्ष को खुद ही हट जाना चाहिए। जहां मोहम्मद साहब जन्मे हम वहां दावा नहीं कर रहे। ये कृष्ण की जन्मभूमि है, इसलिए दावा कर रहे। वहीं, जगद्गुरु रामभद्राचार्य की प्रेमानंद महाराज पर की गई टिप्पणी पर चिन्मयानंद बापू ने कहा- इन दोनों ज्ञानियों के बीच में हम लोगों को अपना वक्तव्य देने का कोई अधिकार नहीं है। समाज को संतों की बातों को लेकर इतनी जल्दी उग्र नहीं होना चाहिए। पढ़े दैनिक भास्कर के सवाल और चिन्मयानंद के जवाब… सवाल : संत और सनातन आए दिन विवादों के घेरे में रहते हैं?
जवाब : मेरी तो सभी महापुरुषों से यही प्रार्थना है कि आपसी वैमनस्यता से…द्वेष से…ईर्ष्या ​​से कहे शब्द अपने ही धर्म पर कुठाराघात करते हैं। अपने ही धर्म पर चोट पहुंचाते हैं। इसलिए मेरी सभी महापुरुषों से चरण छूकर प्रार्थना है कि वे एक-दूसरे को इस तरह से न बोलें। कई बार बोलने का भाव कुछ और होता है। लेकिन, समाज अभी इतना ज्ञानी नहीं है, जो ज्ञानियों के शब्दों को समझ पाए। इसलिए समाज को देखते हुए ही अपना वक्तव्य देना चाहिए। सवाल : जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने प्रेमानंद महाराज पर जो टिप्पणी की है, उस पर कुछ कहेंगे?
जवाब : उन्होंने टिप्पणी नहीं की। उन्होंने संस्कृत की बात उठाई। मगर, समाज को इतनी जल्दी उग्र नहीं होना चाहिए था। दो ज्ञानियों की आपस में क्या बातें होती हैं। उन्हें ज्ञानी ही समझ सकता है। रामभद्राचार्य जी भी समाज के लिए आदरणीय और वंदनीय हैं। उन्होंने राममंदिर निर्माण में अपना सहयोग दिया। उनकी इस तपस्या को भूल नहीं जाना चाहिए। वहीं, प्रेमानंद महाराज ने करोड़ों लोगों को मार्गदर्शन दिया। उनको धर्म के मार्ग से जोड़ा। उनकी भी तपस्या को नहीं भूलना चाहिए। सवाल : संस्कृत भाषा को लेकर प्रेमानंद महाराज पर निशाना साधना कितना उचित है?
जवाब : संस्कृत भाषा हमारे लिए वंदनीय है। कई भाषाओं की जननी है संस्कृत। जैसे कि सुखदेवजी ने परीक्षित के बहाने समाज को संदेश दिया था। तो हो सकता है कि उस वक्त रामभद्राचार्य जी के मन में ऐसा भाव हो। क्योंकि आज पूरी दुनिया प्रेमानंदजी महाराज को सुन रही है, तो हो सकता है कि उनका नाम लेकर उन्होंने जगत को संदेश दिया हो। ज्ञानियों की बातों को समझने के लिए हमारे अंदर क्षमता होनी चाहिए। सवाल : BJP विधायक श्याम प्रकाश ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य पर कमेंट किया, क्या कहेंगे?
जवाब : किसी भी महापुरुष को राजनीति की दृष्टि से देखेंगे तो वे अलग ही दिखाई देंगे। संतों को देखने के लिए हमारे भीतर भाव होना चाहिए। वैसे आक्षेप लगाने वाले तो तुलसीदास पर भी आक्षेप लगा देते हैं। दोनों महापुरुष आदरणीय हैं। जिस भाव और परिस्थिति में उन्होंने कहा, उसे समझना होगा। सवाल : अनिरुद्धाचार्य ने महिलाओं को लेकर टिप्पणी की, क्या उचित है?
जवाब : उन्होंने क्या गलत कहा था, चोर को चोर नहीं कहा जाएगा तो कहा जाएगा। शास्त्रों के शब्दों को उन्होंने इस तरह से रखा है। उनके इस वक्तव्य से वही लोग उछल रहे हैं जो गलत मार्ग पर हैं। सवाल : बाद में महिलाओं पर प्रेमानंद महाराज ने भी टिप्पणी की, आखिर संत ऐसा क्यों बोल रहे?
जवाब : प्रेमानंद महाराज महिलाओं को भी बोलते हैं…पुरुषों को भी बोलते हैं…बच्चों को भी बोलते हैं। अब कौन सी बात मीडिया में फैला दी जाती है, ये वो लोग जानें। उन्होंने तो सबके लिए बोला है। प्रेमानंद महाराज को मैं भी सुनता हूं, उन्होंने बच्चों को डांट लगाई है, उन्होंने बड़ों को भी डांट लगाई है। माताओं को भी डांट लगाई है। चरित्र को शुद्ध करने के लिए… सही मार्ग पर चलने के लिए संत नहीं कहेंगे तो कौन कहेगा। सवाल : देवकीनंदन ठाकुर ने सनातन बोर्ड की मांग उठाई है?
जवाब : बिल्कुल मैं पक्ष में हूं। हमारे हिंदुस्तान में वक्फ बोर्ड की आवश्यकता क्या थी? यदि उन्हें जरूरत है तो हम सनातनियों का भी सनातन बोर्ड देना चाहिए। हमें भी अधिकार चाहिए। ये धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है, तो किसी एक धर्म विशेष को दर्जा क्यों? हम सब संतों की मांग यही है कि सबको समान रूप से देखना तो सबको समान रूप देखिए। आप उनको मदरसे बनाने के लिए इजाजत देते हैं। हमारे स्कूलों में भगवत गीता पढ़ाने की अनुमति नहीं देते हैं। ये तो अन्याय हुआ है, ये कहां धर्मनिरपेक्षता हुई। सवाल : मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद पर क्या कहेंगे?
जवाब : मथुरा मामले का भी पटाक्षेप होना चाहिए। भाई, जहां मोहम्मद साहब जन्मे हैं, हम वहां थोड़े ही दावा कर रहे हैं कि वहां हमारे मंदिर होने चाहिए। हमारे भगवान जहां प्रकट हुए हैं, हम वहां दावा कर रहे हैं। ये दावा तो होना ही चाहिए। उनको खुद ही हट जाना चाहिए। हमारे भगवान कृष्ण की भूमि हमें देनी चाहिए। सवाल : संतों की जाति उजागर करने का सिलसिला चल पड़ा है क्या?
जवाब : संतों की कोई जाति नहीं होती। समाज के सभी लोगों से मेरा निवेदन है कि यदि आप साधु की जाति देखेंगे तो आप साधु की साधुता से वंचित रह जाएंगे। जातिवाद को तो देखना ही नहीं चाहिए और जो देखते हैं वो निंदनीय काम कर रहे हैं। समाज को बांटने का काम कर रहे हैं। चाहे वह नेता, अभिनेता या समाज का कोई भी व्यक्ति हो। ऐसे लोगों का समाज से बहिष्कार करना चाहिए। ——————————— ये खबर भी पढ़ें…. अनिरुद्धाचार्य बोले- वेश्या को वेश्या ही कहेंगे: पूज्य प्रेमानंदजी ने भी यही कहा, बुराई उनकी भी हुई; कुछ लोगों का एजेंडा- संतों की बुराई 25 साल की लड़की चार जगह मुंह मार चुकी होती है। सब नहीं, पर बहुत लड़कियां। 25 साल में वो पूरी जवान हो जाती हैं। तो कहीं न कहीं तो उनकी जवानी फिसल ही जाएगी…। ये वो बातें हैं, जिसके बाद यूपी के कथावाचकों में अनिरुद्धाचार्य एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं। ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में अनिरुद्धाचार्य महाराज ने कहा- हमने कुछ गलत नहीं कहा, हमने वही कहा, जो पुराणों में लिखा हुआ है। आप ब्रह्म वैवर्त पुराण को पढ़िएगा। उसमें लिखा है- जो स्त्री चार पुरुषों से संबंध रखती है, वो व्यभिचारी होती है, उसे पुराणों में वेश्या लिखा गया है। हमने यही बात कही है। शास्त्रों में जो लिखा है, वही तो कहा जाएगा। पढ़िए पूरा इंटरव्यू…


Share Now

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *