यूपी की योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री और सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की जमकर तारीफ कर रहे हैं। दावा करते हैं, मायावती के शासनकाल में अफसर हनुमान चालीसा पढ़ते थे। विकास के काम आंधी की तरह होते थे। 9 अक्टूबर को लखनऊ में मायावती की प्रस्तावित रैली से ठीक पहले राजभर के इस बयान के राजनीतिक मायने खोजे जा रहे हैं। क्या यह बसपा और सुभासपा के बीच नए गठबंधन का संकेत है? बसपा की नर्सरी से निकले ओमप्रकाश राजभर क्या दलित-अति पिछड़ों का नया समीकरण तैयार करने की जुगत में हैं? 2027 में ये समीकरण आगे बढ़ा, तो किसका फायदा और किसका नुकसान होगा? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… राजभर का इंटरव्यू बसपा के सोशल प्लेटफार्म पर शेयर हो रहा
ओम प्रकाश राजभर का एक इंटरव्यू इन दिनों बसपा के सोशल प्लेटफार्म पर शेयर हो रहा है। इसमें राजभर ने मायावती के शासन की यादें ताजा कीं। उन्होंने कहा- मायावती कुशल शासक रहीं हैं। आज भी लोग पूछते हैं कि मायावती का राज कैसा था? मैं यही कहता हूं कि उनके राज में अधिकारी हनुमान चालीसा पढ़ते थे। जब उनका दौरा लगता था, तो वे जिस मंडल या जिले में जाती थी, वहां के अधिकारियों के हाथ-पांव फूले रहते थे। डर रहता था कि पता नहीं किस बात पर बहनजी नाराज हो जाएंगी। वह बिना बताएं किसी भी ब्लॉक या गांव में दौरा करती थीं। इससे पूरे जिले में अधिकारी मिलकर विकास के काम आंधी की तरह करते थे। मायावती पता नहीं किस गांव में चली जाएं, कौन नप जाए, यह डर ही विकास की गति बढ़ा देता था। राजभर ने आगे कहते हैं कि मायावती के समय कानून का राज था। उनके समय में अपराधी पार्टी का कोई नेता ही क्यों न हो, सबके लिए कानून का एक ही मापदंड रहता था। मायावती ने 2007 में सीएम रहते अपने ही सांसद रहे उमाकांत यादव को घर बुलाकर गिरफ्तार करा दिया था। उस समय उमाकांत यादव मछलीशहर के सांसद थे। उन पर आजमगढ़ की एक महिला की जमीन कब्जाने का आरोप लगा था। निचली अदालत ने उमाकांत को दोषी करार दिया था। पुलिस तलाशने लगी तो उमाकांत गिरफ्तारी से बचने के लिए मायावती के पास पहुंचे। लेकिन, उन्होंने पुलिसवालों को अपने घर बुलाकर उमाकांत यादव को गिरफ्तार करा दिया। उमाकांत इसके बाद कभी चुनाव नहीं लड़ पाए। मायावती के साथ बसपा की विरासत पर भी बोले
राजभर मायावती की तारीफ के साथ बसपा की विरासत पर भी बोलते हैं। कहते हैं- डॉ. भीमराव अंबेडकर की विरासत को कांशीराम ने आगे बढ़ाया। उन्होंने मायावती को और अब मायावती अपने भतीजे आकाश आनंद को अपनी देख-रेख में आगे बढ़ा रही हैं। अंबेडकर की तरह आकाश आनंद भी लंदन से पढ़े-लिखे हैं। बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक का दायित्व देने से साफ है कि आगे आकाश ही दलित समाज की लीगेसी को लेकर आगे बढ़ेंगे। राजभर ने आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के अध्यक्ष एवं नगीना से सांसद चंद्रशेखर और आकाश की तुलना पर कहा कि दोनों में जमीन-आसमान का फर्क है। आकाश आनंद आकाश में हैं, जबकि चंद्रशेखर अभी जमीन पर हैं। उनके सांसद चुने जाने पर कहा कि अंधे के हाथ बटेर लगा है। अगर वहां कांग्रेस प्रत्याशी का पर्चा खारिज नहीं हुआ होता, तो परिणाम जुदा होता। सपा-कांग्रेस ने गठबंधन प्रत्याशी का पर्चा खारिज होने से चंद्रशेखर जीत गए। लेकिन, दलित समाज आज भी अंबेडकर और कांशीराम की विरासत को मायावती और उनके बाद आकाश में ही देख रहा है। मायावती ने सीएम रहते जो काम किया, वह उनका तेवर दिखाता है। जब वे बोलती हैं, तो आग बरसाती हैं। चंद्रशेखर कभी भी दलित समाज के भविष्य नहीं बन सकते। जिस तरीके से कांशीराम के संघर्षों का फायदा मायावती को मिला। उसी तरह मायावती की देख-रेख में आकाश भी आगे बढ़ रहे हैं। राजभर ने आकाश को सुझाव देते हुए कहा कि वे मायावती की देख-रेख में जिला, मंडल और प्रदेश स्तर की बैठकें करें। नेताओं से मिलें, उनके दुख-सुख सुनें। तो वे बसपा को बहुत आगे ले जा सकते हैं। आज भी दलित समाज इंतजार कर रहा है कि बसपा का कोई नेता उनके बीच सक्रिय रहे। चंद्रशेखर के उभरने की वजह भी यही रही। मायावती एक कमरे तक सिमट गई थीं। सिर्फ चुनाव में निकलती थीं। अब उन्हें चाहिए कि वे आकाश को सक्रिय करें। आकाश के लिए प्लस पॉइंट यही है कि उन्हें मायावती जैसे परिपक्व नेता के साथ काम करने और उनकी छत्रछाया में आगे बढ़ने का मौका मिला है। यूपी की राजनीति में जारी रहेगा गठबंधन का दौर
ओपी राजभर ने कहा- देश और प्रदेश वर्तमान समय में गठबंधन के दौर से गुजर रहा है। बिना गठबंधन कोई भी अकेले सरकार बनाने की बात कर रहा है, तो वह सपना देख रहा है। सपा भले ही पीडीए का नारा लगा रही है, लेकिन आज भी 38 फीसदी अति पिछड़े मायावती के साथ जाने को तैयार हैं। ये अति पिछड़ा समाज कभी भी सपा के साथ सहज नहीं रहा। वह बसपा के साथ ही सहज महसूस करता है। सपा-बसपा की तुलना करते हुए राजभर समझाते हैं कि किसी बस्ती में दलित और अति पिछड़े लोगों को एक जगह खड़े कर दो। वहां एक गाड़ी बसपा की और दूसरी सपा की खड़ी कर दो। सहज रूप से लोग बसपा की गाड़ी में जाकर बैठ जाएंगे। बुलडोजर लगाकर भी सपा की गाड़ी नहीं भर पाएंगे। राजभर ने कहा कि आज भी 90 फीसदी दलित समाज मायावती और बसपा के साथ ही हैं। आप किसी भी अनुसूचित बस्ती में चले जाएं, वहां का 90 फीसदी वोटर यही बोलेगा कि वह बसपा को वोट करेंगे। चंद्रशेखर की मुखरता की वजह से भले कुछ दलित युवा उनकी ओर मुड़ गए हों। लेकिन, आकाश आनंद के सक्रिय होने के बाद वे भी बसपा से जुड़ जाएंगे। क्या ओपी राजभर बसपा के साथ जा सकते हैं
वरिष्ठ पत्रकार सुरेश बहादुर सिंह कहते हैं कि ओमप्रकाश राजभर जहां भी रहते हैं, उस पार्टी पर दबाव बनाने के लिए इस तरह के बयान देते रहते हैं। वे अपने दरवाजे हमेशा खुला रखना चाहते हैं। जब उन्हें लगता है कि उनकी उपेक्षा हो रही है, तो वह इसी तरह की रणनीति अपनाते हैं। मायावती की तारीफ करना भी इसी का हिस्सा है। जब वे मुलायम सिंह के साथ थे, तो समय-समय पर मायावती और भाजपा की तारीफ करते रहते थे। भाजपा के साथ हैं, तो कह रहे कि आप पीडीए की बात मत करिए, आपने मुझे निकाल दिया था। ओपी राजभर की पूरी राजनीति ही इसी तरह की रही है। यही सवाल जब ओमप्रकाश राजभर से किया गया, तो वे कहते हैं कि मैं हमेशा सच बोलता हूं। अभी तो मैं एनडीए का हिस्सा हूं। आगे का अभी से कैसे बता सकता हूं? अपने वोटरों को बांध कर रखने के लिए सच बोलना चाहिए। जिससे उनको भी समय-समय पर ऐसा लगे कि मेरा नेता हमारे साथ है। OBC में अति और सर्वाधिक पिछड़ों को अलग से मिले आरक्षण
ओम प्रकाश राजभर ने दैनिक भास्कर से खास बातचीत में कहा- प्रदेश में आज भी ओबीसी में कई ऐसी जातियां हैं, जो आरक्षण का फायदा नहीं ले पाई हैं। अभी यूपी पुलिस की 60,244 भर्ती हुई, उनमें 19 हजार अकेले यादव का सिलेक्शन हुआ है। मैंने तो सीएम योगी से कहा कि अगर राजनाथ सिंह के समय गठित सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के अनुसार 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण में बंटवारा हुआ होता, तो 20 फीसदी अति पिछड़ों की भर्ती हुई होती। ये अति पिछड़े आपकी सरकार के साथ होते। आपकी जय जयकार करते। आपको वोट देते। राजभर ने कहा- बिहार समेत देश के 13 प्रदेशों में ओबीसी में अति पिछड़ों को अलग से आरक्षण मिला है। लेकिन, यूपी में अभी ये अति पिछड़ा समाज सोया हुआ है। हमने अर्क-वंशी को जगाया तो एक टिकट उसको मिला। बंजारा-बहेलिया को जगाया, तो वो गरमा रहा है। कचीर को जगा रहे हैं। सपेरा को जगा रहे हैं। तमाम ऐसी छोटी-छोटी जातियां हैं, जिनकी आबादी अच्छी है। अभी मैं कुछ दिन पहले एटा गया था। वहां 16 हजार बंजारा जुटे थे। सभी अपने पैसे और संसाधन से पहुंचे थे। मैंने पहले ही बोल दिया था कि मेरे पास पैसा और संसाधन नहीं हैं, लेकिन मैं आपकी आवाज उठाने जरूर आऊंगा। अलीगढ़ में 32 हजार बंजारा जुटे थे। सिद्धार्थनगर से लेकर प्रदेश के कई जिलों में बंजारा समाज की अच्छी खासी आबादी है। अति पिछड़ों को उनका हक दिलाने ही भाजपा के साथ गठबंधन किया
राजभर ने कहा- यूपी में जब राजनाथ सिंह सीएम थे, तो उन्होंने अति पिछड़ों को उनका हक दिलाने सामाजिक न्याय समिति का गठन किया था। हुकुम सिंह के नेतृत्व में बनी समिति की जब तक रिपोर्ट आई, उनकी सरकार चली गई। इसके बाद सपा-बसपा की सरकार ने उस रिपोर्ट पर ध्यान ही नहीं दिया। फिर 2017 में सरकार में इसी उद्देश्य से भाजपा के साथ गठबंधन में आया कि ये सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करेंगे। इसी वजह से सरकार भी छोड़ दी, जब इन्होंने कहा कि हम इसे लागू नहीं करेंगे। इस पर मैंने भी कहा कि अब हम साथ नहीं रहेंगे और उन्हें छोड़ दिया था। राजभर कहते हैं- सरकार में रहते जब हमने दबाव बनाया, तो अमित शाह ने आश्वासन दिया कि वो रिपोर्ट पुरानी हो चुकी है। इसकी समीक्षा होनी चाहिए। मैं इसके लिए भी तैयार हो गया। इसके बाद राघवेंद्र सिंह के नेतृत्व में एक कमेटी बनी। इस कमेटी ने भी 27 फीसदी ओबीसी के आरक्षण को 3 श्रेणी 7, 9 और 11 प्रतिशत में बांटने का सुझाव दिया है। 7 फीसदी में वो पिछड़े, जो आरक्षण का फायदा पा चुके हैं। 9 फीसदी वो अति पिछड़े, जिसे आरक्षण का कम फायदा मिला है और 11 फीसदी वो सर्वाधिक पिछड़े, जिसे आरक्षण का फायदा अब तक नहीं मिला है। इसी को लागू करने के लिए मैंने दबाव बनाया था। दलित-अति पिछड़े एकजुट हो जाएं तो किसका फायदा, किसे नुकसान
वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं- 2007 में बसपा को इसी समीकरण का फायदा मिला था। हालांकि इस समीकरण में मुस्लिम और ब्राह्मण वोटर भी शामिल थे। प्रदेश में ओबीसी की आबादी लगभग 50 फीसदी है। इस लिहाज से देखें, तो अति पिछड़ों की आबादी 38 फीसदी है। दलितों की 21 फीसदी है। सिर्फ दलित और अति पिछड़ी जातियां एकजुट हो जाएं, तो 58 प्रतिशत वोट बैंक होता है। यह किसी भी गठबंधन या दल के लिए क्या मायने रखता है, ये समझा जा सकता है। जहां तक ओपी राजभर के अति पिछड़ों की चिंता करना और मायावती की तारीफ की बात है, तो उनकी राजनीति का ये हिस्सा है। ओपी राजभर की राजनीति बसपा से ही शुरू हुई है। बाद में मायावती के मतभेदों के चलते उन्होंने अलग राह पकड़ ली। 2027 में भाजपा, सपा और बसपा सभी की उम्मीदें इसी अति पिछड़ों पर टिकी हैं। अति पिछड़े कभी सपा के साथ जाना पसंद नहीं करते। ऐसे में उनके सामने बसपा या भाजपा ही विकल्प है। जो भी दल अति पिछड़ों को साधेगी, उसी की 2027 में सरकार बनती दिखेगी। ———————– ये खबर भी पढ़ें- बसपा को सत्ता में लाने का मायावती का मास्टर प्लान, यूपी में चौपाल के जरिए लोगों को जोड़ेंगी यूपी की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) एक बार फिर अपनी पुरानी चमक लौटाने को बेताब नजर आ रही है। पार्टी सुप्रीमो मायावती, जो कभी यूपी की सत्ता की कुर्सी पर 4 बार विराजमान हो चुकी हैं, अब 2027 के विधानसभा चुनावों को लेकर जोर-शोर से तैयारी में जुट गई हैं। पढ़िए पूरी खबर…
क्या राजभर मायावती के साथ जाएंगे?:बोले- आकाश चंद्रशेखर से बहुत आगे, बसपा राज में अफसर हनुमान चालीसा पढ़ते थे
